जिस फैसले के आधार पर नौकरी मिली, वह रद्द होने पर नियुक्ति भी रद्द: राजस्थान हाईकोर्ट

Amir Ahmad

17 Sept 2025 12:17 PM IST

  • जिस फैसले के आधार पर नौकरी मिली, वह रद्द होने पर नियुक्ति भी रद्द: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अगर किसी व्यक्ति को अदालत के एक फैसले के आधार पर नौकरी मिलती है और बाद में वह फैसला रद्द हो जाता है तो उसकी नियुक्ति भी बरकरार नहीं रह सकती।

    जस्टिस रेखा बोराना याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें याचिकाकर्ता की नियुक्ति रद्द करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता को यादवेंद्र शांडिल्य बनाम राज्य मामले में दिए गए फैसले के आधार पर भर्ती प्रक्रिया में बोनस अंक और बाद में नौकरी मिली थी।

    कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब याचिकाकर्ता ने यादवेंद्र शांडिल्य मामले के फैसले से लाभ उठाया तो अब वह यह दावा नहीं कर सकता कि उसका मामला उस फैसले से अलग है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह कानून की स्थापित स्थिति है कि यदि कोई वादी किसी अन्य फैसले के आधार पर राहत का दावा करता है और उसे राहत मिल भी जाती है तो वह बाद में मुड़कर यह तर्क नहीं दे सकता कि उसका मामला उस फैसले से अलग है।"

    याचिकाकर्ता ने कंपाउंडर/नर्स जूनियर ग्रेड के पद के लिए भर्ती प्रक्रिया में भाग लिया था। भर्ती की एक शर्त के अनुसार कार्य अनुभव वाले उम्मीदवारों को बोनस अंक दिए जाने थे। शुरुआत में याचिकाकर्ता को बोनस अंक नहीं मिले और उसकी रिट याचिका खारिज कर दी गई।

    उसकी अपील पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने उसे इस आधार पर पुनर्विचार याचिका दायर करने की अनुमति दी कि सिंगल जज ने यादवेंद्र शांडिल्य मामले में दिए गए फैसले पर विचार नहीं किया था।

    पुनर्विचार याचिका यादवेंद्र मामले के आधार पर स्वीकार कर ली गई, जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता को बोनस अंक मिले और उसे नौकरी दे दी गई।

    राज्य सरकार ने यादवेंद्र शांडिल्य मामले के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसने उस फैसले को रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से फैसले के लिए हाईकोर्ट की खंडपीठ के पास वापस भेज दिया। बाद में खंडपीठ ने 12.12.2023 को उस याचिका को भी खारिज कर दिया।

    इसके बाद राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता की नियुक्ति रद्द कर दी, क्योंकि उसे मिले बोनस अंक यादवेंद्र शांडिल्य फैसले के आधार पर दिए गए, जो अब रद्द हो चुका था। याचिकाकर्ता ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी।

    याचिकाकर्ता का तर्क था कि यादवेंद्र मामले को दो आधारों पर चुनौती दी गई थी। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे केवल एक आधार पर रद्द किया, इसलिए उसका मामला दूसरे आधार के तहत आता है, जो अभी भी मान्य है।

    कोर्ट ने अन्य मामले नरेंद्र कुमार चोबदार बनाम राजस्थान राज्य के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया कि जब किसी व्यक्ति को किसी अन्य मामले में दिए गए आदेश के आधार पर राहत मिलती है तो उसे उस मामले के साथ तैरना या डूबना होता है।

    अदालत ने कहा,

    "उपरोक्त स्थापित कानून की स्थिति को देखते हुए यह अदालत इस स्पष्ट राय पर है कि याचिकाकर्ता को यादवेंद्र शांडिल्य मामले के खंडपीठ के फैसले के आलोक में उसकी पुनर्विचार याचिका के आधार पर राहत दी गई। जब 26.02.2016 के बाद वह फैसला रद्द हो गया तो वह निश्चित रूप से उसी के तहत शासित होगा।"

    तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।

    Next Story