राजस्थान एचजेएस मूल्यांकन प्रक्रिया को चुनौती, हाइकोर्ट ने विशेषज्ञ समिति को कॉपियों का पुनर्मूल्यांकन कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया

Amir Ahmad

23 Feb 2024 2:17 PM GMT

  • राजस्थान एचजेएस मूल्यांकन प्रक्रिया को चुनौती, हाइकोर्ट ने विशेषज्ञ समिति को कॉपियों का पुनर्मूल्यांकन कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया

    जिला न्यायाधीश के कैडर में सीधी भर्ती के लिए मुख्य परीक्षा में अपनाई गई मूल्यांकन की प्रक्रिया पर विवाद के जवाब में राजस्थान हाइकोर्ट ने उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन के लिए प्रतिष्ठित न्यायविदों/प्रोफेसरों की एक विशेषज्ञ समिति के गठन का प्रस्ताव दिया।

    जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस भुवन गोयल की खंडपीठ ने उक्त समिति के गठन के लिए हाइकोर्ट के एग्जाम रूम को निर्देश देना उचित समझा। मुख्य परीक्षा में उपस्थित 85 उम्मीदवारों में से केवल 4 उम्मीदवार इंटरव्यू के लिए अर्हता प्राप्त कर पाए, जो कथित तौर पर अनावश्यक रूप से सख्त अंकन मानदंडों का परिणाम है।

    विशेषज्ञ समिति प्रत्येक पेपर की 20 प्रतियां बेतरतीब ढंग से उठाएगी और उसकी जांच और मूल्यांकन करेगी और उत्तर-पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करते समय विशेषज्ञ समिति पेपर की लंबाई और उत्तर देने के लिए दिए गए समय को ध्यान में रखने के लिए स्वतंत्र होगी। अदालत ने चार पेपरों के संबंध में आदेश में कहा कि उम्मीदवारों को सीमित प्रतियोगी परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहिए।

    डिवीजन बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि विशेषज्ञ समिति पेपर की लंबाई और प्रश्नों के उत्तर देने के लिए दिए गए समय पर भी गौर कर सकती है। समिति को सारणीबद्ध चार्ट तैयार करना आवश्यक है, जिसमें प्रत्येक कॉपी को पहले से दिए गए अंक और पुनर्मूल्यांकन के बाद दिए गए अंक दर्शाए जाएं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उम्मीदवारों द्वारा प्राप्त नंबरों को समिति को देने से पहले छुपाया जाना चाहिए।

    जयपुर स्थित पीठ परीक्षा में अपनाई गई चयन प्रक्रिया और मूल्यांकन पद्धति के खिलाफ अभ्यास कर रहे वकीलों द्वारा दी गई चुनौती पर सुनवाई कर रही थी।

    हाइकोर्ट यह निर्धारित करने से पहले ऊपर उल्लिखित प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त अंकों के अंतर की तुलना करेगा कि क्या बोनस अंक दिए जाने चाहिए, क्या परिणामों को संशोधित किया जाना चाहिए या क्या सभी उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    यह स्पष्ट किया जाता है कि इस आदेश के अनुसरण में किए गए अभ्यास का उन 4 उम्मीदवारों के परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जिन्हें पहले ही जिला न्यायाधीश कैडर में भर्ती किया जा चुका है। हम यह स्पष्ट करते हैं कि चुनी गई प्रतियों के संबंध में गोपनीयता बनाए रखी जाएगी।"

    अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि पुनर्मूल्यांकन में प्राप्त अंक या अंत में तैयार किए गए सारणीबद्ध चार्ट का विवरण किसी भी उम्मीदवार को नहीं बताया जाएगा। अदालत ने वर्तमान जैसे विवादों से बचने के लिए भविष्य की परीक्षाओं में विशेषज्ञ न्यायविदों/प्रोफेसरों द्वारा उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन की भी सिफारिश की है।

    याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलीलों में से एक यह है कि हितों का अंतर्निहित टकराव है, जब ज्यादातर पदोन्नत अधिकारी ही हैं, जिन्होंने सीमित प्रतियोगी परीक्षा में उपस्थित होने वाले उम्मीदवारों के प्रश्नपत्रों का मूल्यांकन किया। यह तर्क दिया गया कि जब सीधे भर्ती द्वारा भर्ती नहीं की जाती है तो ये पद पदोन्नत अधिकारियों द्वारा स्वयं तदर्थ आधार पर भरे जाते हैं।

    रण विजय सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2018) 2 एससीसी 357 और रजिस्ट्रार जनरल बनाम तीरथ सारथी मुखर्जी और अन्य के माध्यम से त्रिपुरा हाइकोर्ट (2019) 16 एससीसी 663 जैसे केस कानूनों का जिक्र करते हुए यह निष्कर्ष निकाला गया कि हाइकोर्ट पुनर्मूल्यांकन केवल दुर्लभ और असाधारण मामलों में अनुमति दे सकता है।

    हाईकोर्ट के दिनांक 18- 04- 2023 के आदेश के अनुसार सेवानिवृत्त न्यायाधीश गोविंद माथुर को इस पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया कि अंक ठीक से दिए गए हैं या नहीं। अदालत ने याचिकाकर्ता उम्मीदवार द्वारा अपने उत्तर पुस्तिका में दिए गए उचित उत्तरों के मामलों में भी अंकों में ओवरराइटिंग के साथ-साथ कटौती पाए जाने के बाद जस्टिस माथुर से सहायता मांगी थी।

    हालांकि, जस्टिस माथुर द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर गौर करने के बाद अदालत ने इसे गैर-विस्तृत और अनिर्णायक बताया।

    खंडपीठ ने बताया कि रिपोर्ट में रोल नंबर 510735 और 510777 की उत्तर पुस्तिकाओं से संबंधित किसी विशेष निष्कर्ष का उल्लेख नहीं है। हालांकि, अदालत ने जस्टिस माथुर से दोनों उत्तर पुस्तिकाओं की विशेष रूप से जांच करने के लिए कहा था। इसके अलावा, रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया कि मूल्यांकनकर्ताओं द्वारा दिए गए अंक उचित हैं या नहीं।

    विशेषज्ञ समिति के गठन का प्रस्ताव देने से पहले जस्टिस माथुर की रिपोर्ट में निष्कर्ष की कमी के अलावा अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि कई पीड़ित उम्मीदवारों ने अन्य राज्यों में परीक्षा सेल द्वारा आयोजित मुख्य परीक्षा और अधिसूचित रिक्तियों के अनिश्चित काल तक रिक्त रहने उत्तीर्ण की है।

    केस टाइटल- निशा गौड़ एवं अन्य रजिस्ट्रार (परीक्षा), राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर एवं अन्य एवं संबंधित मामले

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