राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला: BNSS की धारा 170 के तहत एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को सीमित रोकथाम अधिकार, दंडात्मक हिरासत नहीं दी जा सकती

Amir Ahmad

19 Jun 2025 12:24 PM IST

  • राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला: BNSS की धारा 170 के तहत एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को सीमित रोकथाम अधिकार, दंडात्मक हिरासत नहीं दी जा सकती

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि भारतीय न्याय संहिता (BNSS) की धारा 170 एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को केवल सीमित रोकथाम अधिकार प्रदान करती है। इस प्रावधान का उपयोग दंड के रूप में या आपराधिक प्रक्रिया की जगह नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस फर्ज़ंद अली ने एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट द्वारा व्यक्तियों को हिरासत में लेने और जमानत देने के लिए चरित्र प्रमाण पत्र की अतिरिक्त-वैधानिक शर्त लगाने की कड़ी आलोचना की।

    अदालत ने टिप्पणी की कि मजिस्ट्रेट ने संवैधानिक लोकतंत्र के अंतर्गत मजिस्ट्रेट की भूमिका की बजाय एक राजा की तरह न्याय किया, जो कानून के शासन की भावना के विपरीत है।

    कोर्ट ने कहा,

    "एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट ने BNSS के तहत प्राप्त सीमित रोकथाम अधिकारों की अवहेलना करते हुए स्वयं को संप्रभु जैसा अधिकार दे दिया। यह किसी संवैधानिक लोकतंत्र के मजिस्ट्रेट की नहीं बल्कि मनमाने निर्णय लेने वाले राजा की भूमिका है।"

    अदालत ने यह भी कहा कि एक बार जब व्यक्तियों के खिलाफ अलग-अलग आपराधिक मुकदमे दर्ज हो चुके थे तो हिरासत जैसी कोई भी कार्रवाई उसी प्रक्रिया के तहत होनी चाहिए थी। धारा 170 के तहत समानांतर रोकथाम कार्यवाही करना डबल जियोपार्डी (दोहरी सजा) के समान है जो अनुचित है।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "जब पहले से ही आपराधिक मामला दर्ज है तो हिरासत वहीं होनी चाहिए थी। समानांतर रोकथाम कार्यवाही न केवल उत्पीड़न है, बल्कि वैधानिक विवेक का दुरुपयोग भी है। रोकथाम गिरफ्तारी दंड का साधन नहीं हो सकती।"

    इस मामले में याचिकाकर्ताओं को संपत्ति विवाद से जुड़ी घटना के बाद शांति बनाए रखने के नाम पर BNSS की धारा 170 के तहत गिरफ्तार किया गया। बाद में इसी संपत्ति को लेकर उनके खिलाफ दो FIR भी दर्ज हुईं। जबकि उनके पक्ष में दीवानी न्यायालय का निर्णय पहले से था।

    गिरफ्तारी के बाद एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी के समय उन्हें जमानत दी गई लेकिन शर्त रखी गई कि दो चरित्र प्रमाण पत्र जिनमें से एक करीबी पारिवारिक सदस्य से होना चाहिए। याचिकाकर्ता यह शर्त पूरी नहीं कर सके और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया, जिससे यह याचिका दायर की गई।

    अदालत ने कहा कि साधारण शांति भंग के मामलों में जहां कोई तात्कालिक हिंसा की आशंका नहीं है, वहां BNSS की धारा 170 का उपयोग आवश्यक नहीं है।

    इस प्रकार, के मनमाने और दोहराए गए उपयोग का कोई सार्वजनिक हित नहीं है और यह निवारक और दंडात्मक ढांचे की भावना को कमजोर करता है।

    अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं को पहले रोकथाम हिरासत में लिया गया। फिर अवैध शर्त लगाई गई और शर्त पूरी न करने पर न्यायिक हिरासत में भेजा गया। यह निवारक प्रावधानों का दुरुपयोग और कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन था।

    चरित्र प्रमाण पत्र जैसी शर्त को अदालत ने कानून से बाहर बताया और कहा कि यह निवारक कानून के सिद्धांतों के विपरीत है।

    अदालत ने एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया और राज्य सरकार को प्रशासनिक जांच शुरू करने का निर्देश दिया, जिसकी रिपोर्ट 6 माह में पेश करनी होगी। साथ ही आदेश की प्रतिलिपि डीजीपी और गृह विभाग के प्रमुख सचिव को भेजने का निर्देश भी दिया ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।

    केस टाइटल: मोहम्मद आबिद एवं अन्य बनाम राज्य राजस्थान

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