आदिवासी क्षेत्रों के लिए विज्ञापित भर्ती से वैध उम्मीद पैदा होती है, राज्य बिना किसी कारण उम्मीदवार को कहीं और पोस्ट नहीं कर सकता: राजस्थान हाईकोर्ट

Amir Ahmad

27 Nov 2025 12:14 PM IST

  • आदिवासी क्षेत्रों के लिए विज्ञापित भर्ती से वैध उम्मीद पैदा होती है, राज्य बिना किसी कारण उम्मीदवार को कहीं और पोस्ट नहीं कर सकता: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य भर्ती के समय एक आकर्षक वादा करके बाद में बिना किसी उचित कारण के उससे पूरी तरह पीछे नहीं हट सकता।

    जस्टिस फरजंद अली की बेंच ने कहा कि सेवा में शामिल होने के समय उम्मीदवारों के मन में निश्चित रूप से एक वैध उम्मीद पैदा हो सकती है कि उनकी पोस्टिंग उन क्षेत्रों में या उसके आसपास होगी जिनके लिए भर्ती की गई थी खासकर जब विज्ञापन इस तरह से बनाया गया था जो ऐसे क्षेत्रों से जुड़ाव दिखाता था।

    2013 में मिनरल्स प्रोटेक्शन फोर्स में कांस्टेबल के पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया, जिसमें 80 पद TSP (ट्राइबल सब-प्लान) क्षेत्र के लिए आरक्षित थे। याचिकाकर्ताओं ने TSP श्रेणी के तहत आवेदन किया और उनका चयन हो गया। हालांकि अनुसूचित/TSP क्षेत्र के निवासी होने के बावजूद उनकी नियुक्तियां नॉन-TSP कैडर के तहत की गईं।

    2018 में एक सरकारी नोटिफिकेशन भी जारी किया गया जिसमें TSP क्षेत्रों के निवासी लेकिन नॉन-TSP क्षेत्रों में तैनात कर्मचारियों को ट्रांसफर के लिए आवेदन जमा करने का निर्देश दिया गया, जो याचिकाकर्ताओं ने किया था। हालांकि उन पर कोई फैसला नहीं बताया गया। इसलिए कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं।

    राज्य का कहना था कि याचिकाकर्ताओं को उस समय योग्यता रिक्तियों की उपलब्धता और प्रशासनिक आवश्यकताओं के अनुसार नॉन-TSP क्षेत्रों में नियुक्त किया गया। 2018 में जारी किए गए ऑप्शन फॉर्म से ट्रांसफर का कोई पूर्ण अधिकार नहीं बनता था बल्कि वे सेवा की जरूरतों और संगठनात्मक आवश्यकता के अधीन थे।

    दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सभी याचिकाकर्ता TSP क्षेत्र के थे और विज्ञापन खान और भूविज्ञान में कांस्टेबल मिनरल प्रोटेक्शन फोर्स के नाम से जारी किया गया। भर्ती में आदिवासी क्षेत्रों से संबंधित उम्मीदवारों के लिए आरक्षण भी था। और याचिकाकर्ताओं ने इसी आरक्षण के तहत भाग लिया।

    कोर्ट ने आगे राज्य की इस बात को भी उजागर किया कि भले ही भर्ती का नाम मिनरल प्रोटेक्शन फोर्स था और TSP क्षेत्रों के लिए आरक्षण दिया गया लेकिन असल में एक भी भर्ती किए गए कर्मचारी को मिनरल प्रोटेक्शन फोर्स में तैनात नहीं किया गया।

    इस आलोक में कोर्ट ने राय दी कि याचिकाकर्ताओं ने इस वैध विश्वास के तहत भर्ती में भाग लिया कि उनकी तैनाती भी आदिवासी/खनिज समृद्ध क्षेत्रों में होगी।

    कोर्ट ने कहा,

    “एक कैंडिडेट के मन में नौकरी में आते समय एक सही उम्मीद ज़रूर पैदा हो सकती है। खासकर जब विज्ञापन इस तरह से बनाया गया हो, जो साफ़ तौर पर आदिवासी/मिनरल इलाकों से जुड़ाव दिखाता हो कि उनकी पोस्टिंग उन इलाकों में या उसके आस-पास होगी जिनके लिए भर्ती की गई। कमज़ोर आदिवासी समुदायों से आने वाले याचिकाकर्ताओं को कम-से-कम थोड़ी हमदर्दी तो मिलनी ही चाहिए थी। राज्य भर्ती के समय एक आकर्षक वादा करके बाद में बिना किसी सही वजह के उससे पूरी तरह पीछे नहीं हट सकता।”

    इसलिए बराबरी बनाए रखने और यह पक्का करने के लिए कि याचिकाकर्ताओं को बिना किसी उपाय के न छोड़ा जाए राज्य को निर्देश दिया गया कि वह याचिकाकर्ताओं को महाराणा प्रताप बटालियन प्रतापगढ़ में शिफ्ट करने पर विचार करे।

    इसके अलावा प्रशासनिक ज़रूरतों के मामले में याचिकाकर्ताओं को समय-समय पर ज़रूरत के हिसाब से TSP इलाकों में आने वाले किसी भी ज़िले में एडजस्ट ट्रांसफर तैनात या अस्थायी रूप से रखा जा सकता है।

    इसी के अनुसार याचिका का निपटारा कर दिया गया।

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