गैस रेगुलेटर आवश्यक वस्तु नहीं, जब तक अधिसूचित न हों: राजस्थान हाईकोर्ट ने 27 साल पुरानी सजा रद्द की

Amir Ahmad

17 Dec 2025 1:29 PM IST

  • गैस रेगुलेटर आवश्यक वस्तु नहीं, जब तक अधिसूचित न हों: राजस्थान हाईकोर्ट ने 27 साल पुरानी सजा रद्द की

    राजस्थान हाईकोर्ट ने अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि गैस रेगुलेटर अपने आप में आवश्यक वस्तु नहीं माने जा सकते, जब तक कि उन्हें विधि द्वारा विशेष रूप से अधिसूचित न किया गया हो। इसी आधार पर अदालत ने वर्ष 1998 में आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत सुनाई गई सजा को निरस्त कर दिया।

    यह फैसला जस्टिस फरजंद अली की सिंगल बेंच ने सुनाया। मामला उस अपील से जुड़ा था, जिसमें अपीलकर्ता को बिना वैध लाइसेंस 38 गैस रेगुलेटर रखने के आरोप में आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया। इस सजा को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    अपीलकर्ता की ओर से दलील दी गई कि जांच और अभियोजन की प्रक्रिया में कई गंभीर अनियमितताएं थीं। इसके साथ ही यह भी तर्क रखा गया कि इसी तरह के एक अन्य मामले में जहां एक व्यक्ति के पास केवल तीन गैस रेगुलेटर पाए गए और उसे अदालत द्वारा बरी कर दिया गया। ऐसे में समानता के सिद्धांत के आधार पर अपीलकर्ता को भी बरी किया जाना चाहिए था।

    राज्य सरकार की ओर से इस दलील का विरोध करते हुए कहा गया कि अपीलकर्ता के पास बड़ी संख्या में गैस रेगुलेटर पाए गए, इसलिए वह समानता का दावा नहीं कर सकता। राज्य का कहना था कि मात्रा में अंतर होने के कारण दोनों मामलों को एक समान नहीं माना जा सकता।

    दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम केवल उन्हीं वस्तुओं पर लागू होता है, जिन्हें कानून में स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध किया गया हो या जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया हो। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष ऐसा कोई वैधानिक दस्तावेज या अधिसूचना प्रस्तुत करने में विफल रहा, जिससे यह सिद्ध हो सके कि गैस रेगुलेटर आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे में आते हैं।

    -अदालत ने अपने फैसले में कहा कि गैस रेगुलेटर केवल एक सहायक उपकरण है, जो तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) के उपयोग के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसे किसी विशेष कानूनी या कार्यकारी अधिसूचना के बिना आवश्यक वस्तु का दर्जा नहीं दिया जा सकता। न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ऐसे वैधानिक आधार के अभाव में आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत की गई पूरी अभियोजन कार्रवाई की नींव ही कमजोर हो जाती है।

    राज्य द्वारा मात्रा के आधार पर किए गए भेद को भी अदालत ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जब किसी वस्तु की आवश्यक प्रकृति ही स्थापित नहीं हो पाई हो तो उसकी संख्या का कोई महत्व नहीं रह जाता। यदि जब्त की गई वस्तु के कानूनी दर्जे पर ही संदेह हो तो उसकी संख्या पूरी तरह अप्रासंगिक हो जाती है।

    इन सभी पहलुओं और अभियोजन में पाई गई खामियों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता की सजा एक मूलभूत कानूनी भ्रांति और गंभीर साक्ष्यगत कमियों पर आधारित थी। परिणामस्वरूप अदालत ने अपील स्वीकार करते हुए 27 वर्ष पुरानी दोषसिद्धि को रद्द कर दिया।

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