विचाराधीन कैदी को 10 साल की वैधता देने से मना करना वैधानिक आधार का अभाव, निर्दोषता की धारणा को कमजोर करता है: राजस्थान हाईकोर्ट

Amir Ahmad

14 Sep 2024 7:44 AM GMT

  • विचाराधीन कैदी को 10 साल की वैधता देने से मना करना वैधानिक आधार का अभाव, निर्दोषता की धारणा को कमजोर करता है: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि बिना किसी ठोस कारण के विचाराधीन कैदी के पासपोर्ट की वैधता अवधि को निर्धारित 10 साल से घटाकर केवल 1 साल करना अनुच्छेद 21 के तहत निहित निर्दोषता की धारणा के सिद्धांत पर मनमाना प्रतिबंध है। यह न्याय, समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

    जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर पत्नी के साथ क्रूरता करने के लिए IPC के तहत आरोप लगाया गया। उसने अपने पासपोर्ट के लिए आवेदन किया। काफी मशक्कत के बाद याचिकाकर्ता को पासपोर्ट जारी किया गया लेकिन इसकी वैधता केवल एक साल की था। इसलिए व्यक्ति ने राज्य सरकार के खिलाफ पासपोर्ट नियम, 1980 (नियम) के तहत निर्धारित 10 साल की वैधता के साथ पासपोर्ट जारी करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।

    न्यायालय ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता सऊदी अरब को निर्यात किए जाने वाले उत्पादों की खेती करने वाला किसान है। इसलिए उसे इन व्यावसायिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए विदेश यात्रा करनी पड़ी।

    इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने पाया कि यात्रा करने का अधिकार आजीविका कमाने के अधिकार में अंतर्निहित रूप से निहित है, जो मौलिक अधिकार है। इस ज्ञात तथ्य के मद्देनजर कि अल्पकालिक पासपोर्ट कुछ देशों के वीजा प्राप्त करने में कठिनाइयां पेश करता है। एक साल का पासपोर्ट याचिकाकर्ता के व्यावसायिक संचालन पर एक अनुचित बोझ था।

    “सऊदी अरब को 'किन्नू' उत्पाद के निर्यात में शामिल कृषक के रूप में याचिकाकर्ता की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्रा करने की क्षमता चाहे वह सऊदी अरब हो या कोई अन्य देश सीधे उसकी आजीविका और आर्थिक स्थिरता से जुड़ी हुई है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पासपोर्ट की एक साल की वैधता पर प्रतिबंध लगाने से उसके व्यवसायिक कार्यों पर अनुचित बोझ पड़ता है, जिससे न केवल उसकी आय प्रभावित होती है, बल्कि उसके अधीन काम करने वाले लोगों की आजीविका भी प्रभावित होती है।”

    न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता कोई अपराधी नहीं है बल्कि विचाराधीन कैदी है। उसके पासपोर्ट की वैधता अवधि को कम करना याचिकाकर्ता को पहले से ही दंडित करने जैसा प्रतीत होता है। इस प्रकार अनुच्छेद 21 के तहत निर्दोषता की धारणा को कमजोर करता है।

    न्यायालय ने पाया कि न्यायालय के समक्ष कोई ठोस सबूत या उचित आशंका नहीं रखी गई कि याचिकाकर्ता के भागने का कोई जोखिम है। इसलिए 10 साल का पासपोर्ट जारी करने से प्रतिवादी या शिकायतकर्ता को कोई नुकसान नहीं हुआ या किसी भी तरह से चल रही आपराधिक कार्यवाही में बाधा नहीं आई।

    न्यायालय ने पासपोर्ट एक्ट 1967 या नियमों के तहत विचाराधीन व्यक्तियों के लिए पासपोर्ट की वैधता अवधि कम करने के ऐसे किसी प्रावधान की अनुपस्थिति की ओर भी ध्यान दिलाया। माना कि राज्य सरकार के इस कृत्य में किसी भी तरह का वैधानिक समर्थन नहीं है। यह अधिनियम तथा नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन है।

    न्यायालय ने कहा,

    “याचिकाकर्ता को हर साल अपने पासपोर्ट को बार-बार रिन्यू करने की आवश्यकता होने से न केवल उस पर बल्कि न्यायिक और प्रशासनिक संसाधनों पर भी अनुचित बोझ पड़ता है, जिससे अनावश्यक मुकदमेबाजी होती है और सार्वजनिक धन और समय की बर्बादी होती है।”

    तदनुसार, याचिका स्वीकार कर ली गई। राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को 10 वर्षीय पासपोर्ट जारी करने के लिए आवश्यक NOC जारी करने का निर्देश दिया गया।

    केस टाइटल- अभयजीत सिंह बनाम राजस्थान राज्य

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