असफल अभ्यर्थी यह दावा करते हुए बाद में विशेषज्ञों की राय को चुनौती नहीं दे सकता कि स्व-मूल्यांकन में उसके उत्तर सही थे: राजस्थान हाईकोर्ट

Amir Ahmad

22 Jan 2025 6:35 AM

  • असफल अभ्यर्थी यह दावा करते हुए बाद में विशेषज्ञों की राय को चुनौती नहीं दे सकता कि स्व-मूल्यांकन में उसके उत्तर सही थे: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने दोहराया कि असफल अभ्यर्थी बाद में विशेषज्ञों की राय को इस आधार पर चुनौती नहीं दे सकता कि अपने स्व-मूल्यांकन में अभ्यर्थी को लगता है कि उसका उत्तर सही है, जो कि विशेषज्ञ की राय के विरुद्ध है।

    ऐसा करते हुए हाईकोर्ट ने ऐसे व्यक्ति की याचिका खारिज की, जो असिस्टेंट इंजीनियर (यांत्रिक) परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर सका था लेकिन उसने बोनस अंक या उन प्रश्नों को हटाने की मांग की थी, जिन्हें वह हल नहीं कर सका था यह दावा करते हुए कि उसे स्टीम टेबल और साइकोमेट्रिक चार्ट उपलब्ध नहीं कराया गया था।

    जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा,

    "यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन यह कानून की स्थापित स्थिति है कि असफल अभ्यर्थी बाद में विशेषज्ञों की राय को इस आधार पर चुनौती नहीं दे सकता कि अपने स्व-मूल्यांकन में उसे लगता है कि उसका उत्तर सही है, न कि विशेषज्ञों ने जो कहा है।"

    अदालत ने कहा कि शिकायतें और आपत्तियां या तो परीक्षा के तुरंत बाद या परिणाम घोषित होने से पहले उठाई जानी चाहिए थीं लेकिन परीक्षा के 18 महीने बाद और परिणाम घोषित होने के 43 दिन बाद दायर की गईं।

    अदालत ने कहा,

    "याचिकाकर्ता के पास नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू होने से पहले यानी 04.03.2021 को परिणाम घोषित होने के बाद अपने स्वयं के आकलन के आधार पर उन प्रश्नों के उत्तरों को चुनौती देने का विकल्प खुला था, जिनसे वह व्यथित महसूस करता था।"

    याचिकाकर्ता ने सहायक अभियंता (यांत्रिक) के पद के लिए आवेदन किया। परीक्षा के दौरान वह दो प्रश्नों का प्रयास नहीं कर सका और आरोप लगाया गया कि उन्हें हल करने के लिए आवश्यक सामग्री यानी स्टीम टेबल और साइकोमेट्रिक चार्ट उपलब्ध नहीं कराया गया। इसलिए वह परीक्षा पास नहीं कर सका और उसने हाईकोर्ट का रुख किया।

    याचिकाकर्ता के दावों को नकारते हुए राज्य द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता को इतनी देरी से शिकायत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और इसे परीक्षा के तुरंत बाद उठाया जाना चाहिए। राज्य ने तर्क दिया कि इस तरह की देरी के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं था और आपत्तियां बाद में लगाई गई लगती हैं, क्योंकि याचिकाकर्ता परीक्षा उत्तीर्ण करने में विफल रहा।

    इस तर्क को सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के लिए परीक्षा के दौरान अपेक्षित सामग्री उपलब्ध न कराने को चुनौती देना खुला थास चाहे वह परीक्षा के तुरंत बाद हो या परिणाम घोषित होने से पहले।

    न्यायालय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने अपनी गलती मान ली। असफल होने के बाद ही देरी से उसे चुनौती दी। किसी भी मामले में अपेक्षित सामग्री की अनुपलब्धता सभी उम्मीदवारों के लिए एक समान थी। इसलिए याचिकाकर्ता को इसके आधार पर बोनस अंक देकर अलग करना उन लोगों के खिलाफ शत्रुतापूर्ण भेदभाव होगा, जो इस न्यायालय के समक्ष नहीं हैं।

    तदनुसार देरी, लापरवाही और योग्यता की कमी के आधार पर याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: कल्याण चौधरी बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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