वाहक चेक के फिजिकल कब्जे में व्यक्ति को इसका लाभार्थी माना जाता है, जब तक साबित न हो जाए: राजस्थान हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी की FIR खारिज की
Amir Ahmad
16 Oct 2024 12:19 PM IST
राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने धोखाधड़ी और जालसाजी के लिए दर्ज तीन लोगों के खिलाफ़ दर्ज की गई FIR खारिज की। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि पूर्व ने गलत तरीके से एक खाली हस्ताक्षरित चेक का इस्तेमाल किया, जो उसके साहूकार को सुरक्षा के रूप में दिया गया था और नकली मूल्य भरकर इसे किसी और को दे दिया।
जस्टिस अरुण मोंगा की एकल पीठ ने फैसला सुनाया कि वाहक चेक परक्राम्य साधन हैं, जो व्यक्ति इन चेकों के फिजिकल कब्जे में था। उसे इसके लाभार्थी मालिक माना जाता है, जब तक कि साबित न हो जाए।
शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उसे पैसे की ज़रूरत थी। इसलिए उसने अपने साले से संपर्क किया, जिसने उसे साहूकार से मिलवाया। शिकायतकर्ता ने साहूकार से पैसे लिए और सुरक्षा के तौर पर दो खाली हस्ताक्षरित चेक दिए। आखिरकार शिकायतकर्ता ने ऋणदाता को पैसे लौटा दिए जिस पर केवल 35,000 रुपये का ब्याज बकाया था।
एक दिन शिकायतकर्ता को अपने फ़ोन पर संदेश मिला कि उनमें से एक सुरक्षा चेक किसी संस्था द्वारा प्रस्तुत किया गया। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसे पता चला कि उसके साले और साली (याचिकाकर्ता) ने सुरक्षा चेक जारी करने के लिए साहूकार को बकाया भुगतान किया और नकली राशि भरने के बाद, चेक किसी अन्य व्यक्ति को दे दिए।
इसके बाद चेक बाउंस हो गया और शिकायतकर्ता के खिलाफ संस्था द्वारा धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) के तहत मामला दर्ज किया गया। इस पृष्ठभूमि में शिकायतकर्ता ने धारा 156 CrPC के तहत अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, जिसके अनुसार याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी के लिए FIR दर्ज की गई। इसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने इसे रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।
मामले के रिकॉर्ड को देखने के बाद न्यायालय ने पाया कि शिकायतकर्ता का एकमात्र तर्क यह था कि धारक चेक याचिकाकर्ताओं को नहीं बल्कि किसी अन्य व्यक्ति को जारी किए गए। हालांकि चूंकि धारक चेक धारक के लाभकारी स्वामित्व को मानते हैं। इसलिए कोई आपराधिक दोष नहीं लगाया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने आगे कहा,
"शिकायतकर्ता पर संबंधित चेक के लिए कोई वैध ऋण बकाया है या नहीं, इसका निर्णय NI Act की धारा 138 के तहत पहले से ही विचाराधीन कार्यवाही में किया जाएगा। मेरा मानना है कि जब शिकायतकर्ता ने शुरू में पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया तो उन्होंने FIR दर्ज न करने का सही दृष्टिकोण अपनाया। शिकायतकर्ता ने धारा 156 CrPC के तहत एडिशन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से संपर्क किया और शिकायत दर्ज की और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ FIR दर्ज करने के निर्देश जारी करने के लिए अदालत को गुमराह करने में कामयाब रहा।”
अदालत ने कहा कि FIR में आरोपों की सामग्री स्पष्ट रूप से अपराध करने का कोई मामला नहीं बनाती, जैसा कि इसमें आरोप लगाया गया। इसके बाद इसने याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और FIR रद्द कर दी।
केस टाइटल: विनय सूरी बनाम राजस्थान राज्य और अन्य संबंधित याचिका