सैनिक को व्हाट्सएप पर भेजा गया समन वैध नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने भरण-पोषण का एकतरफा आदेश रद्द किया
Amir Ahmad
15 Oct 2025 12:46 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी कि सशस्त्र बलों में तैनात सैनिक, नाविक या वायुसैनिक को व्हाट्सएप नंबर पर समन भेजना पर्याप्त नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह सामान्य नियम (सिविल और आपराधिक) 2018 के आदेश 31 नियम 5 और CPC के आदेश V नियम 28 के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन है।
कोर्ट ने इस आधार पर पति के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर भरण-पोषण मामले में फैमिली कोर्ट द्वारा पारित एकतरफा आदेश रद्द कर दिया।
जस्टिस अनूप कुमार ढंड की पीठ सिपाही द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो भारतीय सेना में सेवारत है। फैमिली कोर्ट ने तीन बार समन भेजा जो अतामिल (Unserved ) लौट आए। इसके बाद फैमिली कोर्ट ने पति के WhatsApp नंबर पर संदेश भेजा और इसे पर्याप्त तामील (Sufficient Service) मानते हुए उसके खिलाफ एकतरफा कार्यवाही शुरू कर दी, जिसके बाद आदेश पारित किया गया।
हाईकोर्ट ने कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करते हुए बताया कि सीमा के आदेश 31, नियम 5 और CPC के आदेश V, नियम 28 के तहत सैनिक, नाविक और वायुसैनिक को समन उनके कमांडिंग ऑफिसर को भेजा जाना अनिवार्य है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई कि संबंधित व्यक्ति को सशस्त्र बलों के संचालन से मुक्त होने की व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
कोर्ट ने कहा,
"सेना, वायु सेना और नौसेना सामूहिक रूप से सशस्त्र बल कहलाती हैं, जो अत्यधिक संगठित और अनुशासित बल हैं, जब उनके खिलाफ उनकी व्यक्तिगत क्षमता में कोई मामला दायर किया जाता है तो विधायिका ने उन पर समन तामील करने के लिए विशेष प्रक्रियाएं बनाई हैं।"
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के कमांडिंग ऑफिसर द्वारा जारी किए गए प्रमाण पत्र पर प्रकाश डाला, जिसके अनुसार प्रासंगिक समय पर याचिकाकर्ता बटालियन में खतरनाक ऊंचाई वाले क्षेत्र (Treacherous High Altitude Area) में तैनात है।
इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने फैसला सुनाया,
"अतः ऐसी परिस्थितियों में याचिकाकर्ता के मोबाइल नंबर पर समन की तामील को सामान्य नियम (सिविल और आपराधिक), 2018 के आदेश 31 नियम 5 और CPC के आदेश V नियम 28 के शासनादेश के आलोक में पर्याप्त नहीं माना जा सकता।"
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता को कोर्ट के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश होने का पर्याप्त अवसर नहीं मिला। फैमिली कोर्ट द्वारा अनिवार्य प्रावधानों का पालन करने में विफलता के परिणामस्वरूप प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन हुआ।
तदनुसार, एकतरफा आदेश रद्द कर दिया गया और मामले को आगे की कार्यवाही के लिए फैमिली कोर्ट वापस भेज दिया गया।

