न्यायिक फैसले रेत के टीले नहीं, जिन्हें हल्के में डगमगाया जा सके : राजस्थान हाईकोर्ट ने निष्पादित निर्णयों को दोबारा खोलने पर पक्षकारों की आलोचना की

Amir Ahmad

1 July 2025 12:10 PM IST

  • न्यायिक फैसले रेत के टीले नहीं, जिन्हें हल्के में डगमगाया जा सके : राजस्थान हाईकोर्ट ने निष्पादित निर्णयों को दोबारा खोलने पर पक्षकारों की आलोचना की

    राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि न्यायिक निर्णयों की पहचान उनकी स्थिरता और अंतिमता है और इन्हें हल्के में अस्थिर नहीं किया जाना चाहिए।

    न्यायिक फैसले रेत के टीले नहीं हैं, जो हवा और मौसम की मार से बदल जाएं, जस्टिस अनुप कुमार ढांड ने यह टिप्पणी शारीरिक प्रशिक्षण अनुदेशक (Physical Training Instructor) पद पर नियुक्ति रद्द किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की।

    याचिकाकर्ता ने 19 सितंबर 2022 को पात्रता परीक्षा दी थी जिसमें वह एक विषय में असफल हो गई थी और उस पेपर को पुनर्मूल्यांकन के लिए प्रस्तुत किया। पुनर्मूल्यांकन का परिणाम 23 नवंबर, 2022 को घोषित हुआ, जिसमें वह उत्तीर्ण हो गई। हालांकि उसकी नियुक्ति यह कहते हुए रद्द कर दी गई कि लिखित परीक्षा की तिथि (25 सितंबर 2022) तक उसके पास आवश्यक योग्यता नहीं थी।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पुनर्मूल्यांकन का परिणाम उसके मूल परिणाम के रूप में माना जाए, जो परीक्षा की तिथि 19 सितंबर 2022 से प्रभावी हो। इस प्रकार वह 25 सितंबर, 2022 की परीक्षा तिथि से पहले पात्र थी।

    कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Jenany J.R. बनाम S. Rajeevan एवं अन्य मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि पुनर्मूल्यांकन के बाद प्राप्त संशोधित अंक मूल परिणाम की तिथि से लागू नहीं माने जाएंगे यदि उम्मीदवार को पहले असफल घोषित किया गया हो।

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए कई फैसलों पर ध्यान दिया, जिनमें कहा गया था कि यदि पुनर्मूल्यांकन में उम्मीदवार पास हो जाता है तो यह परिणाम मूल परिणाम की तिथि से प्रभावी होगा। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन फैसलों में सुप्रीम कोर्ट के Jenany J.R. मामले के निर्णय का संज्ञान नहीं लिया गया, इसलिए वे फैसले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की जानकारी के बिना दिए गए।

    “सिर्फ वही दृष्टिकोण प्रभावी रहेगा कि पुनर्मूल्यांकन का परिणाम मूल परिणाम की तिथि से लागू नहीं होगा। इसलिए कोई भी व्यक्ति खुद को विज्ञापित पद के लिए पात्र नहीं ठहरा सकता यदि वह अंतिम तिथि के बाद पास घोषित हुआ हो।”

    कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून के शासन से संचालित देश में निर्णय की अंतिमता अनिवार्य है और निष्पादित निर्णयों को दोबारा खोलना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इससे न्याय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

    कोर्ट ने कहा,

    “कोर्ट और विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को हल्के में अस्थिर नहीं किया जा सकता और न ही किया जाना चाहिए। निष्पादित फैसलों को दोबारा खोलना कानून और न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और इससे न्याय प्रशासन पर दूरगामी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।”

    अतः कोर्ट ने अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का पालन करते हुए याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल: किरण यादव बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य

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