सरकारी फाइल में की गई टिप्पणी का कोई कानूनी महत्व नहीं, निलंबन रद्द नहीं किया जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट
Amir Ahmad
18 Sept 2025 4:06 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सरकारी अधिकारियों द्वारा फाइलों में की गई टिप्पणियां या टिपण्णी केवल उनके बीच का आंतरिक पत्राचार है, इसका कोई कानूनी महत्व नहीं होता।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसे एक प्रधान ने अपने निलंबन आदेश के खिलाफ दायर किया था। याचिकाकर्ता को राजस्थान पंचायती राज अधिनियम की धारा 38 के तहत निलंबित किया गया था। यह निलंबन 2017 में उसके सरपंच कार्यकाल के दौरान हुई एक घटना से संबंधित आरोप पत्र के बाद किया गया था।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि उस पर अवैध पट्टे (जमीन के दस्तावेज) जारी करने का आरोप 2017 का है, जबकि उसका सरपंच का कार्यकाल 2020 में खत्म हो गया था। इसलिए उसका पिछला कार्यकाल पूरा होने के बाद जाँच शुरू करने और उसे निलंबित करने का कोई कारण नहीं था।
यह भी कहा गया कि एक समय पंचायती राज विभाग के आयुक्त ने फाइल में यह टिप्पणी की थी कि मामले की जांच पहले ही पूरी हो चुकी है और नई जाँच शुरू करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा,
"यह न्यायालय याचिकाकर्ता के इस तर्क में कोई दम नहीं पाता कि आयुक्त ने खुद नोटशीट में यह टिप्पणी की थी कि याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसने राशि जमा कर दी थी। आयुक्त द्वारा फाइल में की गई ऐसी टिप्पणी केवल अधिकारियों के बीच का आंतरिक पत्राचार है और इसका कोई कानूनी महत्व नहीं है।"
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के पिंपरी चिंचवाड़ न्यू टाउनशिप डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम विष्णुदेव कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी (2018) के फैसले का भी उल्लेख किया गया। इस फैसले में यह माना गया कि किसी व्यक्ति से संबंधित किसी भी मामले से निपटते समय सरकारी फाइलों में की गई टिप्पणी केवल सरकार का आंतरिक मामला होती है, जिसका कोई कानूनी महत्व नहीं होता।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह स्थापित कानूनी स्थिति है कि पंचायती राज संस्था के कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी पिछले कार्यकाल के दुर्व्यवहार के लिए अधिनियम की धारा 38(1) के तहत जाँच शुरू की जा सकती है। यदि संबंधित व्यक्ति दोषी पाया जाता है तो उसे पद से निलंबित किया जा सकता है।
तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई और राज्य को निर्देश दिया गया कि वह याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही को तेजी से अधिमानतः 3 महीने के भीतर पूरा करे, क्योंकि एक निर्वाचित जन प्रतिनिधि को अनिश्चित काल तक निलंबित नहीं रखा जा सकता है।

