बाजार में जनता के लिए बना मंदिर निजी नहीं, इसके आसपास मांस की दुकानों के संचालन पर प्रतिबंध लागू: राजस्थान हाईकोर्ट
Amir Ahmad
11 Sept 2025 2:32 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 269 सहपठित धारा 340 के तहत जारी 22 मार्च 2021 के मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के खंड 4 के अनुसार पूजा स्थलों के 50 मीटर के दायरे में स्थापित मांस की दुकानों के लाइसेंस रद्द करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज की।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा मंदिर के कुछ दुकानदारों की निजी संपत्ति होने के तर्क को खारिज किया। साथ ही कहा कि जब तक अन्यथा साबित न हो प्रत्येक मंदिर एक सार्वजनिक संपत्ति है चूंकि और विचाराधीन मंदिर एक खुले क्षेत्र में स्थित है जहां सभी पहुंच सकते हैं। इसलिए इसे एक सार्वजनिक मंदिर माना जाता है।
याचिकाकर्ताओं को मांस की दुकानें चलाने का लाइसेंस तब दिया गया, जब 2024 में कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। उसके बाद 2025 में एक आदेश पारित किया गया, जिसके तहत उनके लाइसेंस इस आधार पर रद्द कर दिए गए कि दुकानें एक मंदिर से 50 मीटर के दायरे में स्थित थीं, जो मानक संचालन प्रक्रिया (SIP) के विपरीत था।
इस आदेश को जयपुर के जिला कलेक्टर के समक्ष असफल चुनौती दी गई। इसलिए न्यायालय में याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि पहली बात तो यह कि मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का कोई वैधानिक बल नहीं है। दूसरी बात यह कि मंदिर एक निजी मंदिर है न कि देवस्थान विभाग में पंजीकृत सार्वजनिक मंदिर।
इसके विपरीत प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) अधिनियम की धारा 269 सहपठित धारा 340 के तहत जारी की गई। इसके अलावा, मंदिर किसी घर के अंदर नहीं बल्कि बाजार के खुले क्षेत्र में स्थित था और नियमित रूप से जनता द्वारा पूजा-अर्चना के लिए उपयोग किया जाता था। इसलिए इसे निजी मंदिर नहीं माना जा सकता।
दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने माना कि मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के खंड 4 का उद्देश्य पूजा स्थलों और स्कूल जैसे शैक्षणिक संस्थानों के प्रति सद्भाव और सम्मान बनाए रखना है। इसलिए इसके उल्लंघन की स्थिति में अधिकारियों को लाइसेंस रद्द करने का अधिकार है।
साथ ही यह भी रेखांकित किया गया,
"खाद्य सुरक्षा एवं मानक (खाद्य व्यवसायों का लाइसेंस एवं पंजीकरण), विनियम 2011 के भाग IV के अंतर्गत अनुसूची-4 के साथ अध्याय 2 के अंतर्गत विनियम 2.1.2(1)(5) के अनुसार लाइसेंस प्राप्त मांस की दुकान और किसी भी पूजा स्थल के बीच न्यूनतम दूरी 50 मीटर से कम नहीं होनी चाहिए।"
इसके अलावा, न्यायालय ने मंदिर के निजी संपत्ति होने के तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि मंदिर का अर्थ एक ऐसा स्थान है, जहां कोई भी पूजा कर सकता है और आम जनता के लिए सुलभ है, चाहे वह किसी भी नाम से जाना जाए। इसलिए जब तक अन्यथा साबित न हो हर मंदिर एक सार्वजनिक संपत्ति है।
यदि कोई मंदिर खुले क्षेत्र में स्थित हो और आम जनता के लिए सुलभ हो जैसा कि वर्तमान मामले में है तो किसी भी तरह से उसे उन दुकानदारों का निजी मंदिर नहीं माना जा सकता, जिनकी दुकानें उस मंदिर के सामने स्थित हैं।
न्यायालय ने कहा कि जब तक याचिकाकर्ता द्वारा मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के खंड 4 की वैधता को चुनौती नहीं दी जाती। उसे रद्द नहीं कर दिया जाता, तब तक किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

