कानून का गतिशील है समाजिक यथार्थों के अनुरूप बदलना आवश्यक: विवाह के बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने दुष्कर्म मामला किया ख़ारिज
Amir Ahmad
15 Nov 2025 12:17 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए दुष्कर्म के मामले को ख़ारिज कर दिया कि किसी भी सभ्य समाज का कानून स्थिर नहीं हो सकता और उसे समय–समय पर बदलती सामाजिक परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुरूप ढलना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि कानून का उद्देश्य केवल स्वीकार्य सामाजिक मानकों को निर्धारित करना ही नहीं, बल्कि यह भी तय करना है कि समाज को कब अपने हित में बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की सिंगल बेंच उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोपी ने अपने खिलाफ दर्ज दुष्कर्म और पॉक्सो के प्रकरण को रद्द करने की मांग की थी। आरोपी और पीड़िता जो अब वयस्क हो चुकी है, उसका विधिवत विवाह हो चुका है। अदालत ने कहा कि दुष्कर्म का अपराध नारी गरिमा पर सबसे गंभीर प्रहार है। ऐसे मामलों में अदालतों का दायित्व अत्यंत संवेदनशील और सतर्क रहने का होता है। हालांकि, इस प्रकरण में पीड़िता स्वयं अपनी वैवाहिक जिंदगी को शांतिपूर्ण तरीके से जारी रखना चाहती है और उसने अदालत के समक्ष अपने स्पष्ट इरादे रखे।
कोर्ट ने माना कि सामान्य परिस्थितियों में दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराध की कार्यवाही को केवल समझौते के आधार पर BNSS की धारा 528 का प्रयोग कर समाप्त नहीं किया जा सकता, किंतु पीड़िता के वर्तमान और भावी जीवन की सुरक्षा उसकी इच्छा और उसके वैवाहिक जीवन की स्थिरता को नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि यदि आरोपी को जेल भेजा जाता है तो यह न केवल उनके परिवारिक जीवन को प्रभावित करेगा बल्कि स्वयं पीड़िता के हितों को भी चोट पहुंचेगी, जो संविधान प्रदत्त संरक्षण के दायरे में आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के उन निर्णयों का उल्लेख करते हुए, जिनमें समान परिस्थितियों में राहत दी गई थी। अदालत ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका समाज की सोच और उसकी प्रत्यक्ष वास्तविकताओं के प्रति संवेदनशील है। ऐसी स्थिति में विवाह की स्थिरता और पीड़िता की इच्छा को दरकिनार कर दंडात्मक प्रक्रिया को आगे बढ़ाना न्यायसंगत नहीं होगा।
अंततः अदालत ने आरोपी की याचिका स्वीकार की और उसके विरुद्ध लंबित आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया। इसके साथ ही न्यायालय ने यह स्पष्ट चेतावनी भी दी कि इस निर्णय को ऐसे मामलों में मिसाल की तरह न लिया जाए, जहां केवल समझौते के आधार पर दुष्कर्म के प्रकरण को ख़ारिज करने की मांग की जाती है।

