हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) आदिवासी महिलाओं के लिए पिता की संपत्ति पर दावा करने में बाधा: राजस्थान हाईकोर्ट ने संशोधन का सुझाव दिया
Amir Ahmad
4 Aug 2025 12:30 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि जब गैर-अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों की बेटियां पिता की संपत्ति में समान हिस्से की हकदार हैं तो ST समुदाय की बेटियों को समान अधिकार से वंचित करने का कोई कारण नहीं है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2 अधिनियम के लागू होने का दायरा निर्धारित करती है। उक्त धारा 2(2) यह प्रावधान करती है कि अधिनियम में निहित कोई भी बात संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड (25) के अर्थ में किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं होगी, जब तक कि केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्देश न दे।
यह देखते हुए कि अधिनियम की धारा 2(2) महिला आदिवासियों के अपने पिता की संपत्ति में अपने अधिकारों का दावा करने के रास्ते में बाधा के रूप में कार्य करती है जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने कहा कि केंद्र सरकार के लिए इस प्रावधान पर पुनर्विचार करना सही समय है। यदि उचित समझा जाए तो अनुसूचित जनजाति समुदाय की महिला सदस्यों के अधिकारों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देने के लिए इसमें संशोधन किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
“महिला आदिवासी बिना वसीयत के उत्तराधिकार के मामलों में पुरुष आदिवासी के समान समानता की हकदार हैं। आजादी के सात दशक से भी अधिक समय बाद भी आदिवासी समुदायों की बेटियों को समान अधिकारों से वंचित करना स्पष्ट रूप से अनुचित है। यह न्यायालय आशा और विश्वास करता है कि केंद्र सरकार इस मामले पर विचार करेगी, कमला नेती (सुप्रा) मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के आलोक में उचित निर्णय लेगी और आदिवासी महिलाओं के पक्ष में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत प्रदत्त समानता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गैर-भेदभाव आदि के मौलिक अधिकारों को ध्यान में रखते हुए उचित कदम उठाएगी।”
न्यायालय राजस्व बोर्ड के उस आदेश के विरुद्ध दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें याचिकाकर्ता के पिता की भूमि में खातेदारी अधिकारों की घोषणा की मांग करने वाले आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि चूँकि याचिकाकर्ता अनुसूचित जनजाति की सदस्य है। उसका कोई भाई नहीं है, इसलिए उसे पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार का कोई अधिकार नहीं है।
दलीलों को सुनने के बाद न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के कमला नेती (मृत) बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी (2023) और अन्य, तीर्थ कुमार एवं अन्य बनाम दादू राम एवं अन्य (2024) के निर्णयों का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया कि जब तक कानून में निर्धारित न हो महिला उत्तराधिकारी को संपत्ति में अधिकार से वंचित करना केवल लैंगिक विभाजन और भेदभाव को बढ़ाता है, जिसे कानून द्वारा समाप्त किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सुप्रीम कोर्ट ने इन निर्णयों में यह माना था,
“1956 के अधिनियम की धारा 2(2) के अंतर्गत निहित प्रावधानों पर राज्य सरकार द्वारा विचार किया जाना आवश्यक है, क्योंकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कमला नेती (सुप्रा) मामले में, जो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों से संबंधित है, उपयुक्त संशोधन लाने का निर्देश जारी किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 और 21 के तहत गारंटीकृत समानता के अधिकार का उल्लंघन न हो।”
इस संदर्भ में राजस्व बोर्ड के आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली।
इसके अलावा कमला नेती मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला रेखांकित करते हुए न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 अन्य बातों के अलावा जाति के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। इसलिए जब पिता की संपत्ति में गैर-अनुसूचित जनजाति की बेटियों को समान हिस्सा उपलब्ध था तो अनुसूचित जनजाति की बेटियों को इससे वंचित करना स्पष्ट रूप से अनुचित था।
न्यायालय ने भारत संघ को अधिनियम के प्रावधानों पर पुनर्विचार करने और अनुसूचित जनजाति समुदाय की महिला सदस्यों के अधिकारों की रक्षा और संवर्धन के लिए उनमें संशोधन करने का सुझाव दिया।
केस टाइटल: मन्नी देवी बनाम रमा देवी एवं अन्य।

