राजस्थान हाईकोर्ट ने जांच में कथित लापरवाही के लिए सर्किल अधिकारी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करने वाले ट्रायल कोर्ट का आदेश खारिज किया
Amir Ahmad
4 March 2025 10:05 AM

राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने ट्रायल कोर्ट का आदेश खारिज किया, जिसमें संबंधित सर्किल अधिकारी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की गई थी और डीजीपी को एक मामले की जांच के दौरान कथित लापरवाही के लिए अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया गया था।
ऐसा करते हुए अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता-सर्किल अधिकारी मामले में जांच अधिकारी नहीं था। प्रतिकूल टिप्पणी पारित करने से पहले उसे सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने कहा कि यह तय है कि किसी को भी बिना सुने दोषी नहीं ठहराया जा सकता। याचिकाकर्ता के सेवा करियर पर कलंक लगाने वाली ऐसी प्रतिकूल टिप्पणी पारित करने से पहले पीठासीन अधिकारी याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर देने के लिए बाध्य था।
रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता जांच अधिकारी नहीं था और उसने मामले की कोई जांच नहीं की है। वह केवल सर्किल अधिकारी है और फिर भी याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई नोटिस जारी किए बिना और उसे सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना प्रतिकूल टिप्पणी पारित की गई।
अदालत ने कहा,
"यह वास्तव में कानून का एक स्थापित प्रस्ताव है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का हिस्सा है कि किसी व्यक्ति को बिना सुने दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी पारित करने से पहले पीठासीन अधिकारी का कर्तव्य था कि वह याचिकाकर्ता को नोटिस जारी करे और उसे सुनवाई का उचित अवसर प्रदान करे, लेकिन वर्तमान मामले में उपर्युक्त प्रक्रिया का पालन किए बिना, सीधे ही विवादित आदेश पारित कर दिया गया, जिसने याचिकाकर्ता के सेवा जीवन पर कलंक लगाया है। इस न्यायालय की सुविचारित राय में विवादित आदेश पारित करने से पहले, याचिकाकर्ता को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाना चाहिए था।”
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि भले ही वह मामले में आईओ नहीं था उसके खिलाफ एकतरफा टिप्पणी पारित की गई। उसे कोई नोटिस जारी किए बिना या सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना अनुशासनात्मक जांच का आदेश दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है।
रिकॉर्ड देखने के बाद न्यायालय ने याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमति जताई और इस बात पर प्रकाश डाला कि वह उस मामले में आईओ नहीं बल्कि केवल एक सर्किल अधिकारी था।
इस प्रकार उसने ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज करने की याचिका स्वीकार कर ली। उसने याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर देने के बाद मामले को नए सिरे से आदेश पारित करने के लिए ट्रायल कोर्ट को भेज दिया।
केस टाइटल: मनोज शर्मा बनाम राजस्थान राज्य