वर्दीधारी व्यक्ति द्वारा अनाधिकृत रूप से ड्यूटी से अनुपस्थित रहना, अपनी मृत्यु की झूठी सूचना भेजना घोर कदाचार: राजस्थान हाईकोर्ट
Amir Ahmad
7 March 2025 11:07 AM IST

राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने CRPF कांस्टेबल की बर्खास्तगी को बरकरार रखा, जो अधिकारियों को कोई सूचना दिए बिना स्वीकृत अवकाश से 65 दिन अधिक समय तक जानबूझकर ड्यूटी से अनुपस्थित रहा और जब उसे ड्यूटी पर वापस आने के लिए नोटिस जारी किया गया तो उसने अपनी मृत्यु की गलत सूचना भेजी।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने अपने आदेश में कहा,
"इस न्यायालय का यह सुविचारित मत है कि वर्दीधारी व्यक्ति को अधिक अनुशासन बनाए रखना चाहिए और अनधिकृत रूप से ड्यूटी से अनुपस्थित रहना कदाचार का सबसे गंभीर कृत्य है। अनुशासित बल से संबंधित व्यक्ति द्वारा स्वीकृत अवकाश की समाप्ति के बाद ड्यूटी से अनुपस्थित रहना घातक है।”
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के आचरण से पता चलता है कि वह अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा बनाए रखने में विफल रहा और अनुशासित बल का सदस्य होने के नाते याचिकाकर्ता की ओर से ऐसी अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने कहा,
“अनुशासन अनुशासित बलों की पहचान है। इसके सदस्य से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह अपनी मृत्यु के संबंध में गलत सूचना भेजकर अनुशासन का उल्लंघन करे खासकर तब जब दोषी अधिकारी जीवित हो और अनधिकृत रूप से ड्यूटी से अनुपस्थित हो।”
न्यायालय सत्य नारायण गुर्जर की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें 65 दिनों तक स्वीकृत अवकाश के बिना ड्यूटी से अनुपस्थित रहने के कारण उसे सेवा से बर्खास्त करने के आदेश को चुनौती दी गई।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि 15 दिनों की स्वीकृत छुट्टी के बाद वह दुर्घटना का शिकार हो गया और उसका इलाज चल रहा था, जिसके कारण वह वापस सेवा में शामिल नहीं हो सका। इसलिए यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता द्वारा दी गई 15 साल की सेवा को देखते हुए बर्खास्तगी का दंड असंगत था।
इसके विपरीत राज्य ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा दुर्घटना या उसके इलाज के संबंध में कोई संतोषजनक दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया। इसके अलावा, कई नोटिस भेजे जाने के बावजूद चल रहे इलाज के बारे में कोई सूचना नहीं दी गई, इसके बजाय उसकी खुद की मृत्यु के बारे में गलत जानकारी दी गई। याचिकाकर्ता के खिलाफ वारंट जारी होने के बाद ही वह वापस सेवा में शामिल हुआ।
दलीलों को सुनने और रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सामग्रियों को ध्यान में रखने के बाद न्यायालय ने कहा कि एक अनुशासित बल का वर्दीधारी सदस्य होने के नाते याचिकाकर्ता द्वारा सेवा से अनुपस्थित रहना, अपने सीनियरों के आदेशों की अवहेलना करना और अपनी मृत्यु के बारे में गलत जानकारी देना घोर कदाचार है।
कोर्ट ने कहा,
“रिकॉर्ड से पता चलता है कि जब याचिकाकर्ता अपनी स्वीकृत छुट्टियों की समाप्ति के बाद ड्यूटी पर रिपोर्ट नहीं किया तो उसे ड्यूटी पर रिपोर्ट करने के निर्देश के साथ नोटिस भेजा गया। उक्त नोटिस के जवाब में याचिकाकर्ता की ओर से गलत सूचना भेजी गई कि याचिकाकर्ता की मृत्यु हो गई। इसके बाद इस तथ्य को प्रतिवादियों द्वारा सत्यापित किया गया, जिसमें वह जीवित पाया गया। इसलिए याचिकाकर्ता का ऐसा कृत्य अनुशासनहीनता के बराबर है। याचिकाकर्ता अनुशासित बल का सदस्य है और उसे अनुशासित तरीके से कार्य करना और व्यवहार करना चाहिए। यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ने अपने सीनियर अधिकारियों के आदेशों की अवहेलना की और 65 दिनों की अवधि के लिए बल को छोड़ दिया।”
अदालत ने कहा,
"इस तरह का परित्याग घोर कदाचार का कृत्य है।"
इसके अनुसार याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: सत्य नारायण बनाम भारत संघ और अन्य।

