40 साल तक फरार आरोपी को न पकड़ पाने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने फटकार लगाई, भगोड़ों की तलाश के लिए विशेष सेल बनाने का आदेश
Amir Ahmad
15 Nov 2025 2:09 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में अपराध के मामलों में फरार चल रहे आरोपियों और घोषित अपराधियों को पकड़ने में पुलिस की लापरवाही पर सख्त रुख अपनाते हुए गृह विभाग के प्रधान सचिव और पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि ऐसे भगोड़ों का पता लगाने और उन्हें ट्रायल का सामना करवाने के लिए एक विशेष सेल का गठन किया जाए, ताकि पीड़ितों को समय पर न्याय मिल सके।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की सिंगल बेंच ऐसे मामले पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें FIR वर्ष 1983 में दर्ज हुई थी और 1987 में आरोपी के जमानती बांड जब्त कर लिए गए। इसके बाद गिरफ्तारी वारंट जारी हुए लेकिन पुलिस आज तक आरोपी को गिरफ्त में नहीं ले सकी। आरोपी इन चालीस वर्षों से उसी गांव में रह रही थी फिर भी पुलिस उसे अज्ञात या अनट्रेस बताती रही।
हाईकोर्ट ने कड़े शब्दों में टिप्पणी की कि पुलिस की यह असफलता न्याय प्रणाली की बेहद निराशाजनक तस्वीर पेश करती है। अदालत ने कहा कि आरोपी पिछले 38 वर्षों से अदालत से अनुपस्थित है, जो कानून की प्रक्रिया का गंभीर दुरुपयोग है।
आरोपी ने अब अदालत से गुहार लगाई कि गैर-जमानती वारंट को जमानती वारंट में बदला जाए। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि वह ग्रामीण महिला है और उसे मुकदमे की जानकारी नहीं थी तथा उसके पति जो मामला देख रहे थे का 2019 में निधन हो गया।
अदालत ने यह दलील सिरे से खारिज करते हुए कहा कि चार दशक तक अदालत से भागे रहना न केवल जांच और ट्रायल को बाधित करता है बल्कि गवाहों पर दबाव डालने या उनकी स्मृति कमजोर होने की आशंका भी पैदा करता है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि अगर ऐसे तर्क मान लिए जाएं तो यह कानून और न्याय का उपहास होगा और अपराधी कभी भी न्यायिक प्रक्रिया से बच निकलेंगे।
=अदालत ने यह भी व्यक्त किया कि इस तरह के कई मामले लंबित पड़े हैं, जिनमें वारंट जारी होने के बावजूद पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर पाई। इससे मामलों की सुनवाई अनिश्चितकाल के लिए लंबित रहती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वारंट कोई वैकल्पिक आदेश नहीं बल्कि एक कानूनी निर्देश है जिसे पुलिस को हर हाल में लागू करना ही चाहिए।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और पुलिस को निर्देश दिया कि फरार आरोपियों और घोषित अपराधियों को खोजकर अदालतों के सामने पेश करने के लिए विशेष सेल बनाया जाए ताकि न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता और गति दोनों बहाल हो सकें।

