क्या ASI रैंक से नीचे का अधिकारी संज्ञेय अपराधों की जांच कर सकता है? राजस्थान हाइकोर्ट
Amir Ahmad
20 March 2024 6:14 PM IST
समन्वय पीठ द्वारा पहले दिए गए निर्णय से असहमत होते हुए राजस्थान हाइकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने इस मुद्दे को बड़ी पीठ को भेज दिया कि क्या ASI रैंक से नीचे का पुलिस अधिकारी संज्ञेय अपराध की जांच कर सकता है, या नहीं।
जस्टिस अनिल कुमार उपमन की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि राजस्थान पुलिस नियम 1961 (Rajasthan Police Rules 1962) के नियम 6.1 के साथ सीआरपीसी की धारा 157 का तात्पर्य है कि ASI रैंक से नीचे के पुलिस अधिकारी यानी वर्तमान मामले में हेड कांस्टेबल, संज्ञेय अपराध से जुड़े मामले की जांच करने के लिए सशक्त नहीं हैं।
जस्टिस उपमन ने कहा,
“मैं केरा एवं अन्य के मामले में की गई इस टिप्पणी से अपनी असहमति व्यक्त करता हूं कि संज्ञेय अपराध की जांच ASI से नीचे के रैंक के अधिकारी द्वारा की जा सकती है। हेड कांस्टेबलों द्वारा सीआरपीसी की धारा 157(1) के तहत अपने-अपने पुलिस थानों के प्रभारी अधिकारियों द्वारा दिए गए आदेशों के तहत मामलों की जांच करते समय न तो कोई अवैधता और न ही कोई अनियमितता की गई।”
जयपुर में बैठी पीठ ने यह राय देने से पहले टिप्पणी की कि इस मुद्दे का फैसला डिवीजन बेंच या बड़ी बेंच द्वारा किया जाना चाहिए।
सीआरपीसी की धारा 157 और राजस्थान पुलिस नियम, 1965 के नियम 6.1 के संयुक्त वाचन के बाद सिंगल जज की बेंच ने यह निष्कर्ष निकाला कि पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी को अपने अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के भीतर होने वाले संज्ञेय अपराध की जांच करने का अधिकार है।
सीआरपीसी की धारा 157(1) प्रभारी अधिकारी को घटनास्थल पर जाकर तथ्यों का पता लगाने तथा आवश्यकता पड़ने पर अपराधी की खोज और गिरफ्तारी के लिए उपाय करने का कार्य अधीनस्थ अधिकारी को सौंपने की अनुमति देती है।
अदालत ने रेखांकित किया कि हालांकि जब प्रभारी अधिकारी द्वारा ASI से नीचे के रैंक के पुलिस अधिकारी को प्रतिनियुक्त किया जाता है तो पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी या ASI को जांच शुरू करने और पहले अवसर पर इसे पूरा करने की आवश्यकता होती है।
जस्टिस उपमन ने याचिकाकर्ता द्वारा आरटीआई आवेदन के माध्यम से एकत्र की गई जानकारी पर ध्यान देते हुए कहा,
“इसके अलावा कार्यालय द्वारा प्रदान की गई जानकारी से यह भी पता चलता है कि ASI या उससे ऊपर के रैंक के पुलिस अधिकारी जांच कर सकते हैं। राज्य सरकार द्वारा हेड कांस्टेबलों को संज्ञेय अपराध से जुड़े मामले की जांच करने का अधिकार देने वाला कोई सामान्य या विशेष आदेश जारी नहीं किया गया।”
इस मामले में जयपुर के सांगानेर सदर पुलिस स्टेशन में हेड कांस्टेबल ने मामले की जांच की और आईपीसी की धारा 323, 341 और धारा 506 के तहत अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया। याचिकाकर्ताओं ने एफआईआर रद्द करने की मांग की, क्योंकि हेड कांस्टेबल द्वारा जांच करने के कारण पूरी जांच कथित रूप से खराब हो गई।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला,
हालांकि किसी भी पुलिस अधिकारी' को प्रतिनियुक्त किया जा सकता है, लेकिन एक बार यह पाया जाता है कि कोई संज्ञेय अपराध किया गया है तो प्रभारी अधिकारी या एएसआई को जांच करनी चाहिए।
इसलिए रजिस्ट्रार (न्यायिक), राजस्थान हाइकोर्ट को निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर देने के लिए उपयुक्त पीठ का गठन करने के लिए चीफ जस्टिस के समक्ष मामला रखने के लिए कहा गया:
"क्या पुलिस के ASI से नीचे के रैंक का कोई अधिकारी, संज्ञेय अपराध(ओं) से जुड़े मामले की जांच कर सकता है। यदि उसे ऐसे मामलों में जांच करने का अधिकार नहीं है तो ऐसे अधिकारी द्वारा की गई जांच के क्या परिणाम होंगे?"
केस टाइटल- भारत कुमार बनाम राजस्थान राज्य और अन्य