बिना वजह बैंक अकाउंट को फ्रीज करना चिंता का विषय, व्यापार और व्यक्तियों पर भारी वित्तीय असर: राजस्थान हाईकोर्ट

Amir Ahmad

21 Jun 2025 3:55 PM IST

  • बिना वजह बैंक अकाउंट को फ्रीज करना चिंता का विषय, व्यापार और व्यक्तियों पर भारी वित्तीय असर: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने जांच एजेंसियों द्वारा यांत्रिक (मैकेनिकल) तरीके से बिना उचित कारण के बैंक अकाउंट को फ्रीज किए जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की।

    जस्टिस मनोज कुमार गर्ग की एकल पीठ ने कहा कि यह एक बढ़ती हुई समस्या है, जिससे भारतीय व्यापारिक संस्थाओं और व्यक्तियों को गंभीर वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

    कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें याचिकाकर्ताओं ने अपने बैंक अकाउंट के फ्रीज किए जाने के विरुद्ध पहले आवेदन और फिर पुनरीक्षण याचिका दायर की थी, जो दोनों ही खारिज कर दी गई।

    याचिकाकर्ता मुख्य आरोपी की पत्नी और दो पुत्र हैं जिन पर कोई आरोप नहीं है।

    मुख्य आरोपी पर गबन का आरोप है और उसके खिलाफ जांच के दौरान पुलिस ने याचिकाकर्ताओं के भी बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिए।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि उनके विरुद्ध कोई FIR दर्ज नहीं है और न ही उन पर किसी अपराध में संलिप्तता का आरोप है। इसके बावजूद जांच एजेंसी ने बिना किसी साक्ष्य या संबंध के उनके खाते सीज कर दिए।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह कार्यवाही उनके वैध व्यापारिक गतिविधियों के अधिकार से अनुचित रूप से वंचित करने के समान है और यह दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 102(3) का उल्लंघन है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि जब कोई संपत्ति जब्त की जाती है तो पुलिस को इसकी जानकारी मजिस्ट्रेट को देना अनिवार्य है।

    कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की,

    "बिना ठोस कारण के जांच एजेंसियों द्वारा बैंक अकाउंट को फ्रीज करना एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जो भारतीय व्यवसायों और कॉर्पोरेट इकाइयों के लिए चुनौती का कारण बन रही है। केवल संदेह या आरोप के आधार पर जिसमें खाताधारकों के खिलाफ न तो कोई FIR है और न ही उन्हें आरोपी बनाया गया है, उनके बैंक खातों को फ्रीज कर देना अनुचित है। यह व्यवसाय के संचालन को प्रभावित करता है और संबंधित पक्षों को गंभीर वित्तीय संकट में डाल देता है।"

    अदालत ने आगे कहा कि धारा 102 के तहत सबसे अधिक अनदेखा किया गया प्रावधान मजिस्ट्रेट को जानकारी देना है।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पुलिस द्वारा जब्ती की सूचना मजिस्ट्रेट को बिल्कुल भी नहीं दी जाती है तो यह कार्रवाई विधिसम्मत नहीं मानी जाएगी।

    कोर्ट ने कहा,

    "ऐसी स्थिति में जैसे कि वर्तमान मामला, जहां याचिकाकर्ताओं के बैंक खातों को फ्रीज करने की जानकारी अब तक मजिस्ट्रेट को नहीं दी गई, यह कार्य कानूनी रूप से अस्थायी नहीं बल्कि असंवैधानिक है।"

    न्यायालय ने यह भी कहा,

    "ऐसे खाताधारकों, जिन्हें अपराध में आरोपी तक नहीं बनाया गया, उन्हें अनिश्चितकाल तक इस आशा में नहीं छोड़ा जा सकता कि कभी पुलिस धारा 102(3) का पालन करेगी और मजिस्ट्रेट को सूचित करेगी।"

    इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने याचिका स्वीकार की और याचिकाकर्ताओं के बैंक अकाउंट डि-फ्रीज (खोलने) के निर्देश दिए।

    केस टाइटल: कैलाश कंवर राठौड़ एवं अन्य बनाम राज्य सरकार, राजस्थान

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