जब तथ्यों से प्रथम दृष्टया आपराधिक अपराध का पता चलता है तो सिविल उपाय का लाभ उठाना आपराधिक कार्यवाही रद्द करने का आधार नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

Shahadat

19 Jun 2024 8:56 AM GMT

  • जब तथ्यों से प्रथम दृष्टया आपराधिक अपराध का पता चलता है तो सिविल उपाय का लाभ उठाना आपराधिक कार्यवाही रद्द करने का आधार नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि सिविल उपाय का लाभ उठाना अपने आप में उन तथ्यों के संबंध में दायर आपराधिक शिकायत रद्द करने का आधार नहीं बनता है, जो न केवल सिविल गलत बल्कि आपराधिक अपराध भी बनाते हैं।

    न्यायालय ने कहा,

    "केवल इस तथ्य के आधार पर कि शिकायतकर्ता के पास सिविल उपाय था और उसने उस उपाय का लाभ भी उठाया, याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की शुरुआत को आरोपित एफआईआर में जांच के प्रारंभिक चरण में रद्द करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

    जस्टिस सुदेश बंसल की पीठ याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग करने वाली धारा 482 सीआरपीसी के तहत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एफआईआर याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच बिक्री के समझौते की पृष्ठभूमि में उत्पन्न हुई, जिसके अनुसार याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को 75 लाख रुपये में भूखंड में अपना हिस्सा बेचने पर सहमति व्यक्त की।

    इनमें से 10 लाख रुपये याचिकाकर्ता को मिले। एफआईआर में यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता ने गलत आश्वासन दिया कि संपत्ति निर्विवाद है और याचिकाकर्ता इसका एकमात्र मालिक है और रजिस्ट्री के समय इसका कब्जा सौंप दिया जाएगा। हालांकि, याचिकाकर्ता से शिकायतकर्ता को एक जवाबी नोटिस मिला, जिसमें पता चला कि याचिकाकर्ता और उसके भाई के बीच संपत्ति पर एक लंबित विवाद था।

    इस कारण से याचिकाकर्ता शिकायतकर्ता को संपत्ति सौंपने में असमर्थ था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने धोखाधड़ी करके और शिकायतकर्ता के विश्वास को तोड़कर 10 लाख रुपये प्राप्त किए। इसलिए धारा 420, 406 और 120-बी के तहत मामला दर्ज किया गया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता ने विशिष्ट प्रदर्शन के लिए मुकदमा भी दायर किया, जो उसके पक्ष में तय किया गया। इसलिए शिकायतकर्ता की शिकायत सिविल कोर्ट द्वारा हल किए जाने के मद्देनजर, एफआईआर रद्द कर दिया जाना चाहिए। वकील ने यह भी तर्क दिया कि एफआईआर के मात्र अवलोकन से ही पता चलता है कि पक्षों के बीच दीवानी प्रकृति का विवाद है। ऐसे दीवानी विवादों को निपटाने के लिए एफआईआर दर्ज करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

    दूसरी ओर, शिकायतकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पक्षों के बीच विवाद दीवानी अपराध हो सकता है, लेकिन साथ ही इसमें आपराधिक अपराध के तत्व भी शामिल हैं। इसलिए, केवल दीवानी उपाय का लाभ उठाना आपराधिक कार्यवाही रद्द करने का आधार नहीं हो सकता।

    दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पक्षों के बीच विवाद दीवानी प्रकृति के विवाद को जन्म देने के अलावा, धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के आरोपों से भी जुड़ा हुआ है। न्यायालय ने यह भी देखा कि यह स्थापित स्थिति है कि किसी दिए गए मामले में दीवानी और आपराधिक कार्यवाही एक साथ चल सकती है।

    न्यायालय ने वेसा होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम केरल राज्य के सुप्रीम कोर्ट के मामले का उल्लेख किया जिसमें निम्नलिखित टिप्पणी की गई,

    “यह सच है कि तथ्यों का निश्चित समूह दीवानी अपराध के साथ-साथ आपराधिक अपराध भी हो सकता है। केवल इसलिए कि शिकायतकर्ता के पास दीवानी उपाय उपलब्ध हो सकता है, यह अपने आप में आपराधिक कार्यवाही रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। असली परीक्षा यह है कि शिकायत में लगाए गए आरोप धोखाधड़ी के आपराधिक अपराध का खुलासा करते हैं या नहीं।

    इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी देखा कि सुप्रीम कोर्ट के कई मामलों में यह तय हो चुका है कि भले ही हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियां व्यापक आयाम की हों, लेकिन इनका इस्तेमाल दुर्लभतम मामलों में संयम से किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि एफआईआर, शिकायत या आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल किसी भी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने या न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए किया जाना चाहिए।

    कानून की इन स्थितियों की पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि आरोपों में आपराधिकता के तत्व शामिल हैं, खासकर धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के अपराध के आलोक में। इस प्रकार इसने माना कि शिकायत को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि शिकायतकर्ता ने सिविल उपाय का लाभ उठाया है।

    न्यायालय ने कहा कि तथ्यों की संपूर्णता और घटनाओं का सही विवरण तभी सामने आएगा, जब जांच पूरी होने दी जाएगी। तदनुसार, आपराधिक शिकायत रद्द किए बिना याचिका का निपटारा कर दिया गया।

    केस टाइटल: दुर्गा लाल वर्मा बनाम राजस्थान राज्य

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