झगड़ा क्षणिक आवेश में हुआ, कोई पूर्व-योजना नहीं थी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हत्या की सजा को गैर-इरादतन हत्या में बदला
Amir Ahmad
29 March 2024 2:48 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या के मामले में दोषसिद्धि को आईपीसी की धारा 304 के तहत गैर-इरादतन हत्या में बदला है, यह देखते हुए कि दोषी और मृतक के बीच जो झगड़ा हुआ था वह पूर्व-योजनाबद्ध नहीं था।
जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस कीर्ति सिंह की खंडपीठ ने कहा,
"यह न्यायालय इस तथ्य से अवगत है कि यह घटना वर्ष 2006 में हुई, जब अभियुक्त और मृतक के बीच अचानक झगड़ा हुआ। यह कोई पूर्व-योजना नहीं थी और अपराध क्षण भर में किया गया। अपीलकर्ता निहत्था था और चोट ईंट के वार से लगी थी। इस न्यायालय का मानना है कि अपीलकर्ता की सजा आईपीसी की धारा 302 के तहत नहीं बल्कि आईपीसी की धारा 304 भाग-I के तहत आएगी।"
न्यायालय लुधियाना के सत्र न्यायाधीश द्वारा वर्ष 2009 में पारित दोषसिद्धि के निर्णय के विरुद्ध अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसके तहत अपीलकर्ता हरे राम को आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध करने के लिए दोषी ठहराया गया। उसे आजीवन कारावास और 2000 रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई गई।
अभियोजन पक्ष के अनुसार मृतक के भाई ने शिकायत की कि वर्ष 2006 में उसने देखा कि उसके भाई और अपीलकर्ता के बीच झगड़ा हुआ। राम ने कथित तौर पर वज्र राय के माथे पर ईंट से वार किया और शोर मचाने पर वह ईंट फेंककर मौके से भाग गया।
यह कहा गया कि शिकायतकर्ता के भाई वज्र राय के माथे से खून बह रहा था, जो घटनास्थल पर ही आरोपियों के हाथों लगी चोटों के कारण दम तोड़ दिया।
यह कहा गया कि घटना के पीछे मकसद यह था कि मृतक और आरोपी दोनों एक ही डेयरी में काम करते थे और उनके द्वारा किए जाने वाले काम की प्रकृति को लेकर उनमें कुछ विवाद हो गया था।
जांच अधिकारी द्वारा जांच पूरी करने के बाद आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आरोपी के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 173 के तहत फाइनल रिपोर्ट दर्ज की गई।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार वज्र राय की मौत खून बहने की वजह और सदमे के कारण हुई, जो सामान्य तौर पर मौत का कारण बनने के लिए पर्याप्त चोटें थीं।
सेशन जज ने अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए पूरे सबूतों की जांच करने के बाद अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध का दोषी ठहराया।
सुनने के बाद न्यायालय ने सुधाकर बनाम महाराष्ट्र राज्य (2012) पर भरोसा किया। यह माना गया कि क्षण भर में पिता और पुत्र के बीच झगड़ा हुआ और पिता ने चाकू निकालकर वार कर घायल कर दिया। इस प्रकार, ऐसी परिस्थितियों में सजा को आईपीसी की धारा 302 से आईपीसी की धारा 304 भाग I में परिवर्तित कर दिया गया।
न्यायालय ने संजीव बनाम हरियाणा राज्य (2015) का भी उल्लेख किया, जहां यह माना गया कि यदि कोई पूर्व-योजना नहीं थी। आरोपी द्वारा क्षण भर में अपराध किया गया तो यह आईपीसी की धारा 300 के अपवाद 4 के अंतर्गत आएगा अर्थात गैर इरादतन हत्या जो हत्या के बराबर नहीं है। इसलिए यह आईपीसी की धारा 304 भाग-I के तहत दंडनीय है।
परिणामस्वरूप न्यायालय ने कहा कि घटना वर्ष 2006 में हुई, जब आरोपी और मृतक के बीच अचानक झगड़ा हुआ था। कोई पूर्व-योजना नहीं थी और अपराध क्षण भर में किया गया।
अपीलकर्ता निहत्था था और चोट ईंट के वार से लगी थी। इस न्यायालय का विचार है कि अपीलकर्ता की दोषसिद्धि आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत नहीं बल्कि आईपीसी की धारा 304 भाग-I के अंतर्गत आती है।
सजा की मात्रा पर न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता लगभग 14 वर्षों से लंबी आपराधिक कार्यवाही का सामना कर रहा है। उसे सजा के निलंबन का लाभ नहीं दिया गया और उसने वास्तव में 16 वर्षों से अधिक की सजा काटी है।
इसमें कहा गया कि ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि वह किसी अन्य आपराधिक मामले में शामिल है। घटना के बाद उसके आचरण के विरुद्ध कुछ भी प्रतिकूल नहीं है।
पीठ ने कहा,
"न्याय का उद्देश्य पूरा होगा यदि अपीलकर्ता की सजा को उसके द्वारा पहले से काटी गई अवधि तक घटा दिया जाए।"
परिणामस्वरूप अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया और निर्णय लिया गया कि अपीलकर्ता द्वारा काटी गई 16 वर्ष की सजा आईपीसी की धारा 304 के भाग-I के अंतर्गत अपराध के लिए पर्याप्त होगी।
केस टाइटल- हरे राम बनाम पंजाब राज्य