अवैध शराब बनाने से समाज में तबाही मच सकती है: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने नकली शराब के 7 मामलों में दोषी महिला को अग्रिम जमानत देने से किया इनकार

Amir Ahmad

8 Jun 2024 11:28 AM GMT

  • अवैध शराब बनाने से समाज में तबाही मच सकती है: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने नकली शराब के 7 मामलों में दोषी महिला को अग्रिम जमानत देने से किया इनकार

    यह देखते हुए कि नकली शराब बनाने से समाज में तबाही मच सकती है, पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने महिला की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी, जिस पर अपने घर में अवैध शराब बनाने और उसे ऊंचे दामों पर बेचने का आरोप है।

    अदालत ने यह भी कहा कि महिला का आपराधिक इतिहास बहुत बड़ा है, जिसमें उस पर अवैध शराब के व्यापार का मामला दर्ज किया गया।

    जस्टिस अनूप चितकारा ने कहा,

    "यह सर्वविदित है कि नकली शराब विनाशकारी आघात और बड़ी त्रासदी का कारण बन सकती है। गरीब लोगों को प्रभावित कर सकती है, जो शराब के सस्ते विकल्प की तलाश करते हैं। आमतौर पर एथिल अल्कोहल के बजाय ऐसी शराब में मिथाइल अल्कोहल होता है, जो प्रकृति में घातक होता है। यही कारण है कि शराब का निर्माण और विपणन खाद्य गुणवत्ता मानकों के अनुसार किया जाता है लेकिन एक बार जब याचिकाकर्ता जैसे लोग अपने स्तर पर इसका कारोबार करना शुरू कर देते हैं तो यह समाज में तबाही मचा सकता है। इसलिए याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत का हकदार नहीं है।"

    यह उल्लेख करना उचित है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में अवैध शराब के बड़े पैमाने पर निर्माण और बिक्री से निपटने में राज्य सरकार के उपकरणों की निष्क्रियता पर पंजाब सरकार की खिंचाई की थी।

    हाल ही में हाइकोर्ट ने नकली शराब की बिक्री की जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका पर भी नोटिस जारी किया, जिसके कारण पंजाब में कथित तौर पर 21 लोगों की मौत हो गई।

    वर्तमान मामले में महिला ने पंजाब आबकारी अधिनियम 1914 की धारा 61, 14 के तहत अवैध शराब बनाने और उसका व्यापार करने के आरोप में गिरफ्तारी से पहले जमानत याचिका दायर की।

    राज्य के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ 21 मामलों का आपराधिक इतिहास है, जिनमें से 07 मामलों में उसे आबकारी अधिनियम के तहत दोषी ठहराया जा चुका है।

    याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उपरोक्त एफआईआर सरपंच के कहने पर दर्ज की गई, जो याचिकाकर्ता के प्रति शत्रुतापूर्ण है। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान एफआईआर के अलावा अन्य सभी एफआईआर सरपंच के कारण दर्ज की गई हैं, ऐसे में याचिकाकर्ता को जमानत दी जानी चाहिए।

    राज्य के वकील ने बड़ी संख्या में लंबित मामलों के आधार पर जमानत का विरोध किया और याचिकाकर्ता का पिछले 21 वर्षों से अवैध शराब से जुड़े होने का इतिहास है। राज्य के वकील ने आगे कहा कि बड़ी संख्या में ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें नकली शराब पीने से निर्दोष लोगों की मौत हुई है और याचिकाकर्ता को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।

    दलील सुनने के बाद न्यायालय ने कहा,

    "इन सभी मामलों को पंचायत सरपंच के कहने पर दर्ज किए जाने के आरोपों के संबंध में यह अत्यधिक असंभव है कि उक्त सरपंच पिछले 20 वर्षों से याचिकाकर्ता के विरुद्ध मामले दर्ज कर रहा है और याचिकाकर्ता ने कोई शिकायत भी दर्ज नहीं की है।”

    न्यायालय ने कहा,

    "यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि सरपंचों को जनता द्वारा वोट देकर चुना जाता है और याचिकाकर्ता के पास सरपंच के विरुद्ध अपनी शिकायत दर्ज कराने का पर्याप्त अवसर था, न केवल अधिकारियों के समक्ष बल्कि वह लोगों के ध्यान में भी ला सकती थी, जो उसने नहीं किया।"

    परिणामस्वरूप न्यायाधीश ने कहा,

    "उपर्युक्त आरोपों और इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के साथ-साथ उल्लिखित व्यापक आपराधिक इतिहास की पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत के लिए मामला बनाने में विफल रहा है।"

    तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल- उषा रानी बनाम पंजाब राज्य

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