शिकायतकर्ता-आरोपी के अधिकारों पर गंभीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव, हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक के पास 7 साल से लंबित निरस्तीकरण रिपोर्ट पर चिंता जताई

Amir Ahmad

30 Aug 2024 6:00 AM GMT

  • शिकायतकर्ता-आरोपी के अधिकारों पर गंभीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव, हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक के पास 7 साल से लंबित निरस्तीकरण रिपोर्ट पर चिंता जताई

    यह देखते हुए कि यह शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों के अधिकारों पर गंभीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव डालता है, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा में संबंधित पुलिस अधीक्षकों के समक्ष वर्षों से विचाराधीन निरस्तीकरण रिपोर्ट के मुद्दे पर चिंता जताई।

    आरोपी के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने के लिए कोई सामग्री नहीं मिलती है तो जांच के बाद पुलिस द्वारा निरस्तीकरण रिपोर्ट दाखिल की जाती है।

    जस्टिस एन.एस. शेखावत ने कहा,

    “इस कोर्ट ने पाया कि हरियाणा राज्य में कई मामलों में निरस्तीकरण रिपोर्ट कई वर्षों तक जिले के संबंधित पुलिस अधीक्षक के पास विचार के लिए लंबित रही। इसके कारण शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों के अधिकारों पर गंभीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।"

    न्यायालय ने कहा कि इससे न केवल अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर होता है बल्कि आपराधिक मुकदमे का अंतिम निपटारा भी बिना किसी औचित्य के विलंबित हो जाता है।

    ये टिप्पणियां आत्महत्या के लिए उकसाने वाले मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो, नई दिल्ली या किसी अन्य स्वतंत्र जांच एजेंसी को सौंपने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं।

    बहस के दौरान राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि वर्तमान मामले में 15.12.2017 को एक निरस्तीकरण रिपोर्ट तैयार की गई। हालांकि उक्त निरस्तीकरण रिपोर्ट कानून के न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    "यह देखना चौंकाने वाला है कि निरस्तीकरण रिपोर्ट पिछले सात वर्षों से पुलिस अधीक्षक, जींद के समक्ष लंबित है।"

    पंकज कुमार बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2008) पर भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित जांच और ट्रायलों की आवश्यकता पर जोर दिया, क्योंकि दोनों ही कानून और दंड प्रक्रिया संहिता/BNSS के प्रावधानों की भावना और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित संवैधानिक संरक्षण द्वारा अनिवार्य हैं।

    उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक जींद को निर्देश दिया,

    "अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें, जिसमें (i) पुलिस अधीक्षक जींद के कार्यालय द्वारा जिला जींद के सभी पुलिस थानों से प्रत्येक निरस्तीकरण रिपोर्ट प्राप्त होने की तिथि (ii) पुलिस अधीक्षक कार्यालय द्वारा ऐसी निरस्तीकरण रिपोर्ट के अनुमोदन की तिथि तथा (iii) पिछले तीन वर्षों में सक्षम न्यायालय के समक्ष प्रत्येक निरस्तीकरण रिपोर्ट प्रस्तुत करने की तिथि का उल्लेख हो।

    मामले को 20 सितंबर के लिए स्थगित करते हुए न्यायालय ने कहा,

    "यदि हलफनामा अगली सुनवाई की तिथि को या उससे पहले दाखिल नहीं किया जाता है तो संबंधित पुलिस अधीक्षक अगली सुनवाई की तिथि पर व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित रहेंगे।"

    केस टाइटल- धर्म सिंह बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य

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