पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने महिला से बार-बार बलात्कार करने के लिए पुलिसकर्मी की सजा पर रोक लगाने से इनकार किया
Amir Ahmad
29 Jun 2024 4:06 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति समुदाय की महिला से बार-बार बलात्कार करने के लिए हरियाणा के पुलिस अधिकारी की सजा पर रोक लगाने से इनकार किया।
शेक्सपियर के मैकबेथ से न्यायाधीश ने यह कहते हुए उद्धृत किया कि भले ही सज़ा दी जाए और गलती करने वाले व्यक्ति से कुछ हद तक पश्चाताप किया जाए लेकिन जनता का हिला हुआ विश्वास फिर से नहीं लौट सकता।
सजा पर रोक लगाने से इनकार करते हुए जस्टिस सुमित गोयल ने कहा:
"आवेदक-अपीलकर्ता जो पुलिस अधिकारी के रूप में काम कर रहा था, उसको ट्रायल कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करके किया हुआ पाया। पीड़ित अनुसूचित जाति समुदाय से है। इसके अलावा आवेदक-अपीलकर्ता एक विवाहित व्यक्ति था जिसके तीन बच्चे हैं। इस तथ्यात्मक पृष्ठभूमि में आवेदक-अपीलकर्ता का आचरण एक पुलिस अधिकारी के लिए बिल्कुल अनुचित है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के मामले में पुलिस अधिकारी के सेवा में बने रहने में असमर्थ होने का कारण सजा पर रोक लगाने का कोई ठोस आधार नहीं है। खासकर तब जब आवेदक-अपीलकर्ता पहले से ही सेवा से बर्खास्त है।
ये टिप्पणियां हरियाणा पुलिस के अधिकारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) (एन) के तहत दोषी ठहराया गया और दस साल की अवधि के लिए कठोर कारावास और पच्चीस हजार रुपये का जुर्माना भारतीय दंड संहिता की धारा 506 के तहत दो साल की अवधि के लिए कठोर कारावास और पांच हजार रुपये का जुर्माना भारतीय दंड संहिता की धारा 201 के तहत एक साल की कैद और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) की धारा 3(1)(डब्ल्यू)(आई) के तहत दो साल की अवधि के लिए कठोर कारावास और पांच हजार रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई गई।
फरवरी में अपीलकर्ता को उसकी शेष सजा के निलंबन की रियायत दी गई। तदनुसार, उसे अपील के लंबित रहने के दौरान जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया।
वर्तमान आवेदन के माध्यम से उन्होंने एडिशनल सेशन जज, विशेष न्यायालय कैथल हरियाणा द्वारा पारित दोषसिद्धि के विवादित फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने इस प्रश्न पर विचार किया कि क्या दोषसिद्धि पर रोक लगाना आवेदक-अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने वाले सजा के निलंबन के आदेश के समान है।
उन्होंने उत्तर दिया:
"अपील न्यायालय की सजा के निलंबन का आदेश देने की शक्ति, ऐसे अपील न्यायालय की सजा पर रोक लगाने के आदेश देने की शक्ति से भिन्न है।"
न्यायालय ने आगे कहा कि दोषसिद्धि पर रोक लगाने का आदेश असाधारण परिस्थितियों में पारित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा,
"यदि कोई अपील न्यायालय सजा के निलंबन का आदेश देता है तो ऐसे आदेश का यह अर्थ नहीं है कि सजा के निलंबन के ऐसे आदेश के माध्यम से दोषसिद्धि पर रोक लगाने का आदेश भी स्वतः ही दिया गया, न ही यह कि दोषसिद्धि पर रोक लगाने का आदेश इस आधार पर अनिवार्य रूप से दिया जाना चाहिए। न्यायालय को सजा के निलंबन (और अपीलकर्ता को हिरासत से परिणामी रिहाई) देने वाले आदेश से अलग, दोषसिद्धि के निलंबन का आदेश पारित करना आवश्यक है। ऐसा आदेश सुविचारित आदेश होना चाहिए।”
न्यायालय ने कहा कि इस तरह की याचिका पर विचार करने के लिए आवश्यक कारक हैं, संभावित गंभीर और अपरिवर्तनीय परिणाम जो दोषी-अपीलकर्ता पर दोषसिद्धि के निर्णय के माध्यम से स्पष्ट अन्याय के रूप में पड़ सकते हैं।
ऐसी दोषसिद्धि के कारण दोषी-अपीलकर्ता द्वारा सामना की जा रही असाधारण कठिनाई उपलब्ध सामग्री जो यह दर्शा सकती है कि अभियोजन/शिकायतकर्ता द्वारा दोषी-अपीलकर्ता के विरुद्ध दुर्भावनापूर्ण तरीके से कार्यवाही की गई। अपीलकर्ता को जिस अपराध के लिए दोषी ठहराया गया, उसकी प्रकृति अपीलकर्ता का पूर्ववृत्त विचाराधीन दोषसिद्धि का संभावित प्रतिकूल सामाजिक/सार्वजनिक प्रभाव दोषसिद्धि के निर्णय की अवैधता और समान प्रकृति के अन्य कारक है।
न्यायालय ने कहा कि यह कारक कि दोषी-अपीलकर्ता अपनी नौकरी खो सकता है। सामान्यत दोषसिद्धि पर रोक लगाने के लिए अपने आप में आधार नहीं होगा। खासकर तब जब दोषी-अपीलकर्ता एक लोक सेवक है जिसे भ्रष्टाचार के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया।
इसके अलावा न्यायालय ने कहा:
“ऐसी दलील के लिए लिटम्स टेस्ट यह है कि न्यायालय को यह संतुष्ट होना चाहिए कि ऐसी दुर्लभ/असाधारण परिस्थितियां मौजूद हैं, जिनमें दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार करने से अपीलकर्ता को अपूरणीय क्षति होगी। साथ ही अपरिवर्तनीय परिणाम होंगे जिससे अन्याय होगा, बल्कि गंभीर अन्याय होगा।"
वर्तमान मामले में यह देखते हुए कि पुलिस अधिकारी को अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करके यौन उत्पीड़न के गंभीर अपराध के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया।
न्यायालय ने कहा,
"इस तथ्यात्मक पृष्ठभूमि में आवेदक-अपीलकर्ता का आचरण पुलिस अधिकारी के लिए बिल्कुल अनुचित है।"
जस्टिस गोयल ने कहा:
"इस तरह के मामले में आवेदक-अपीलकर्ता के सेवा में बने रहने में असमर्थ होने का कारण दोषसिद्धि पर रोक लगाने का कोई बाध्यकारी आधार नहीं है, खासकर तब, जब आवेदक-अपीलकर्ता पहले से ही सेवा से बर्खास्त है।”
उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में दोषसिद्धि के फैसले पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं बनता, बल्कि उचित कारण तो बिल्कुल नहीं है। इसलिए न्यायालय ने कहा कि प्रस्तुत आवेदन अस्वीकार किए जाने योग्य है।
उपरोक्त के आलोक में याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल- XXX बनाम XXX