अभियुक्त के दोषसिद्धि के बाद आत्मसमर्पण न करने पर भी सजा के निलंबन की याचिका सुनवाई योग्य: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Amir Ahmad

7 Aug 2025 4:03 PM IST

  • अभियुक्त के दोषसिद्धि के बाद आत्मसमर्पण न करने पर भी सजा के निलंबन की याचिका सुनवाई योग्य: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी आपराधिक मामले में दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली आपराधिक पुनर्विचार याचिका के साथ दायर की गई सजा के निलंबन की याचिका हाईकोर्ट के समक्ष सुनवाई योग्य है भले ही दोषी ने दोषसिद्धि के बाद आत्मसमर्पण न किया हो।

    जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा,

    "दोषसिद्धि के निर्णयों के विरुद्ध आपराधिक पुनर्विचार याचिका (साथ ही सजा के निलंबन के लिए आवेदन आदि) इस हाईकोर्ट के समक्ष विचारणीय है, बशर्ते याचिकाकर्ता अभियुक्त ने आत्मसमर्पण न किया हो या हिरासत में न रहा हो, क्योंकि हाईकोर्ट के मौजूदा नियमों/आदेशों में ऐसी विचारणीयता को प्रतिबन्धित करने वाला कोई नियम नहीं है।"

    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यद्यपि ऐसी पुनर्विचार याचिका आदि सख्त अर्थों में सुनवाई योग्य होगी लेकिन उस पर विचार करने की वांछनीयता ऐसे याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए कारण पर निर्भर करेगी।

    उपमा के रूप में कहें तो याचिका की स्वीकार्यता" और "याचिका पर विचार करने की वांछनीयता" के बीच का अंतर उतना ही स्पष्ट है, जितना कि चाक और पनीर के बीच का अंतर।

    अदालत ने आगे कहा,

    "ऐसी याचिका पर विचार करने की वांछनीयता स्वतः नहीं होती बल्कि कई कारकों पर निर्भर करती है, जिनमें याचिकाकर्ता-अभियुक्त का समग्र आचरण अपीलीय न्यायालय के समक्ष उपस्थित न होने के लिए दिए गए कारणों की पर्याप्तता और सदाशयता; न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र और प्राधिकार के प्रति याचिकाकर्ता-अभियुक्त का स्पष्ट समर्पण शामिल है लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं है। इस संदर्भ में न्यायालय को अपने पुनर्विचार अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय केवल प्रक्रियात्मक अवरोध के अभाव से निर्देशित नहीं होना है बल्कि विवेकपूर्ण विवेक का प्रयोग करने का आदेश दिया गया।"

    न्यायालय भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 और 34 के तहत धोखाधड़ी के मामले में दोषी द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें दोषसिद्धि को चुनौती दी गई। साथ ही आत्मसमर्पण के लिए समय देने और वर्तमान आपराधिक पुनर्विचार याचिका के लंबित रहने के दौरान मूल सजा के निलंबन के लिए अन्य आवेदन भी दायर किया गया।

    इन दलीलों पर सुनवाई के बाद न्यायालय ने आपराधिक पुनर्विचार याचिका और आत्मसमर्पण के लिए समय बढ़ाने और/या सजा के निलंबन के लिए आवेदन की स्वीकार्यता पर विचार किया, जब आवेदक/याचिकाकर्ता ने आत्मसमर्पण नहीं किया और वह हिरासत में नहीं है।

    यह कहते हुए कि ऐसी दलीलें स्वीकार्य होंगी न्यायालय ने आगे कहा कि केवल पुनर्विचार याचिका (और साथ ही सजा के निलंबन के लिए आवेदन) की स्वीकार्यता स्वतः ही, उसकी वांछनीयता में परिवर्तित नहीं होती है।

    जस्टिस गोयल ने कहा कि जहां याचिकाकर्ता-अभियुक्त का आचरण कानून की प्रक्रिया के प्रति उपेक्षा या अवज्ञा को दर्शाता है, वहां न्यायालय को सजा के निलंबन के विरुद्ध जाना चाहिए, अन्यथा यह न्यायिक प्रक्रिया की अकथनीय अवहेलना को क्षमा करने के समान हो सकता है।

    वर्तमान मामले में यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता हृदय रोग से पीड़ित है और उसकी आयु 62 वर्ष है न्यायालय ने उसे न्यायालय में उपस्थित होने का समय दिया और निलंबन एवं पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए मामले को स्थगित कर दिया।

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