हरियाणा गोहत्या विरोधी कानून का उद्देश्य गोमांस की खपत पर अंकुश लगाना, मुकदमेबाजी में वृद्धि से पता चलता है कि राज्य इसे ठीक से लागू नहीं कर रहा: हाईकोर्ट
Amir Ahmad
14 Jan 2025 12:58 PM IST

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा गोवंश संरक्षण एवं गोसंवर्धन अधिनियम के तहत मुकदमेबाजी में वृद्धि पर चिंता व्यक्त की। कहा कि इस अधिनियम का उद्देश्य शक्तिशाली मांस लॉबी द्वारा गोमांस का उपभोग एवं बिक्री करने से उत्पन्न गोमांस की खपत को कम करना था लेकिन राज्य इसे ठीक से लागू नहीं कर रहा है।
न्यायालय ने आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की, जो कथित तौर पर वध के लिए गायों को ले जाने के लिए इस्तेमाल किए गए पिकअप वाहन का मालिक होने के कारण गिरफ्तारी की आशंका जता रहा था।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने कहा,
"हरियाणा गौवंश संरक्षण एवं गौसंवर्धन अधिनियम 2015 का मुख्य उद्देश्य शक्तिशाली मांस लॉबी द्वारा अपनी तृप्ति के लिए गौहत्या, गौमांस के उपभोग की समस्या को कम करना है। लेकिन इस तरह के मुकदमों में वृद्धि के साथ चिंताजनक स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि राज्य अपनी वास्तविक भावना में ठीक से काम नहीं कर रहा है।"
याचिकाकर्ता खालिद ने IPC की धारा 148, 149, 186, 429, 307 और हरियाणा गौवंश संरक्षण एवं गौसंवर्धन अधिनियम 2015 की धारा 13(2), 17 और शस्त्र अधिनियम 1959 की धारा 25 के तहत अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी जो फरीदाबाद के धौज में पंजीकृत है।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि खालिद को FIR में गलत तरीके से फंसाया गया और उसे सह-आरोपी साकिर और साबिर के खुलासे के बयानों के आधार पर ही इस मामले में फंसाया गया। इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता पिकअप चला रहा था। यह भी दावा किया गया कि याचिकाकर्ता को मौके से गिरफ्तार नहीं किया गया। साथ ही इस तथ्य को भी जोड़ा गया कि उसकी हिरासत से कुछ भी बरामद नहीं किया जाना है।
जमानत का विरोध करते हुए राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता का नाम सह-आरोपी के खुलासे के बयान में सामने आया है, इसके अलावा वह अपराध के लिए इस्तेमाल किए गए पिकअप वाहन का मालिक भी है। उसकी भूमिका का पता लगाने के लिए उसे हिरासत में लेकर पूछताछ की आवश्यकता है। साथ ही हथियार की बरामदगी अभी तक नहीं की गई।
प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद न्यायालय ने कहा कि केवल इस तथ्य से कि याचिकाकर्ता मौके पर नहीं मिला याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने का अधिकार नहीं मिल जाता, खासकर तब जब अन्य प्रासंगिक कारक हैं जो सुनवाई योग्य हैं।
जस्टिस मौदगिल ने कहा,
"जैसा कि हो सकता है, वर्तमान मामले के तथ्यों से पता चला है कि सह-आरोपी के बयान के आधार पर याचिकाकर्ता को तत्काल FIR में शामिल किया गया, क्योंकि उसने पिकअप वाहन चलाया था जो वास्तव में उसके नाम पर पंजीकृत है। इसके अलावा याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध में सक्रिय रूप से भाग लेने के गंभीर आरोप हैं।"
उन्होंने कहा कि अपराधियों को सजा दिलाना जरूरी है, जिसके लिए अदालतों को नरम रुख अपनाने से बचना चाहिए।
अदालत ने कहा,
"अग्रिम जमानत पर सुनवाई करने वाली अदालत के लिए सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात अपराध की गंभीरता और आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले पर विचार करना है।"
उपरोक्त के मद्देनजर याचिका खारिज कर दी गई।