कागज पर हस्ताक्षर की स्वीकृति मात्र से वसीयत की स्वीकृति नहीं हो जाती; यह साबित करना होगा कि वसीयतकर्ता को इसकी विषय-वस्तु के बारे में जानकारी थी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
Amir Ahmad
27 Feb 2025 3:42 PM IST

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि कागज पर हस्ताक्षर की स्वीकृति मात्र से वसीयत की स्वीकृति नहीं हो जाती, यह साबित करने के लिए कि वसीयतकर्ता ने वसीयत को निष्पादित किया है प्रस्तावक को निर्विवाद चरित्र का साक्ष्य प्रस्तुत करना होगा।
जस्टिस पंकज जैन ने कहा,
"कागज पर हस्ताक्षर की स्वीकृति मात्र से वसीयत की स्वीकृति नहीं हो जाती कानून में वसीयत एक अनूठा दस्तावेज है, जो वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद लिखा जाता है। न्यायिक विवेक को संतुष्ट होना चाहिए कि वसीयतकर्ता ने वसीयत की विषय-वस्तु के बारे में जानते हुए उस पर हस्ताक्षर किए। यह साबित करने के लिए कि वसीयत वास्तव में वसीयतकर्ता द्वारा निष्पादित की गई, प्रस्तावक को निर्विवाद चरित्र का सबूत पेश करना होगा।"
अदालत ने आगे कहा कि सत्यापन करने वाले गवाह को न्यायिक विवेक को संतुष्ट करना चाहिए कि उसने वसीयतकर्ता को वसीयत पर हस्ताक्षर करते हुए देखा था। उसे इसकी सामग्री के बारे में पता था।
ये टिप्पणियां 2014 में एडीजे कोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिसके तहत याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका, जिसमें याचिकाकर्ता के पिता सरवन सिंह धालीवाल द्वारा निष्पादित 26.01.1990 की वसीयत के लिए प्रशासन का पत्र मांगा गया था, को खारिज कर दिया गया।
अपीलकर्ता ने 26.01.1990 की अपंजीकृत वसीयत पेश की, जिसमें दावा किया गया कि इसे उनके पिता स्वर्गीय कर्नल सरवन सिंह धालीवाल ने निष्पादित किया। इसे इंद्रपाल सिंह वरैच और मलकियत सिंह ने देखा। वसीयत को साबित करने के लिए मलकियत सिंह को गवाह के रूप में परखा गया।
रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की जांच करने के बाद निचली अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि संदिग्ध परिस्थितियों के अलावा गवाह मलकियत सिंह- वसीयत के कथित प्रतिवादी गवाह ने सही बयान नहीं दिया।
कोर्ट ने पाया कि भले ही मलकियत सिंह ने अपनी मुख्य परीक्षा में दावा किया कि उसने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 63(सी) के अनुसार वसीयत को निष्पादित होते देखा है लेकिन उसकी जिरह ने मुख्य परीक्षा में बताए गए बयान को ध्वस्त कर दिया।इसमें कई तथ्य सूचीबद्ध किए गए जिसमें निष्पादनकर्ता सरवन सिंह धालीवाल की पत्नी प्रीतम कौर की मृत्यु के बारे में मलकियत सिंह की झूठी गवाही भी शामिल है। वह पटियाला के सिविल कोर्ट में पहले के मामले में अपनी गवाही के विपरीत गवाही देते हुए भी पकड़ा गया।
प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद कोर्ट ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 276 का हवाला दिया, जिसमें प्रोबेट के लिए याचिका का उल्लेख है और कविता कंवर बनाम पामेला मेहता एवं अन्य, 2020 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया गया, जिसमें रेखांकित किया गया कि संपत्ति का अनुचित निपटान या कानूनी उत्तराधिकारियों, विशेष रूप से आश्रितों का अनुचित बहिष्कार एक संदिग्ध परिस्थिति माना जाता है।
जस्टिस जैन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सत्यापनकर्ता गवाह को भरोसेमंद और सच्चा होना चाहिए। वर्तमान मामले में यह रिकॉर्ड पर आया कि सत्यापनकर्ता गवाह मलकीत सिंह को अविश्वसनीय पाया गया।
अदालत ने कहा,
"यह रिकॉर्ड पर साबित हो गया कि वह अपनी सुविधा के अनुसार अपना बयान बदलता रहा है। अन्य सत्यापनकर्ता गवाह की जांच नहीं की गई।"
परिणामस्वरूप न्यायालय ने कहा कि मलकीत सिंह की गवाही अपीलकर्ता के मामले को ध्वस्त करने के लिए पर्याप्त है। यह आवश्यक मानक को पूरा नहीं करती है।
उपरोक्त के आलोक में याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: राजिंदर पाल सिंह धालीवाल बनाम आम जनता और अन्य

