NDPS Act | जांच एजेंसी अदालत से कार्यवाही नहीं छिपा सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने FSL द्वारा उठाई गई आपत्ति को छिपाने पर आरोपी को बरी किया
Amir Ahmad
2 April 2024 3:51 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस अधिनियम (NDPS Act) के तहत मामले में दोषसिद्धि इस आधार पर रद्द कर दी कि अभियोजन पक्ष ने ट्रायल कोर्ट से यह छिपाया कि जांच एजेंसी द्वारा भेजे गए सैंपल पर फोरेंसिक लैब द्वारा आपत्तियां उठाई गई थीं।
जस्टिस पंकज जैन ने कहा,
"जांच एजेंसी न्यायालय से कार्यवाही को छिपा नहीं सकती। जांच एजेंसी का दायित्व अपराध की जांच करना है न कि यह सुनिश्चित करना कि आरोपी को सजा मिले। आखिरकार खोज सत्य की ही है। अभियोजन पक्ष से जांच की निष्पक्षता की अपेक्षा न केवल अभियोजन पक्ष के रुख के आधार पर की जाती है, बल्कि बचाव पक्ष के दृष्टिकोण से भी की जाती है।"
कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मादक दवाओं और मनोदैहिक पदार्थों से जुड़े मुकदमों में सैंपल के साथ-साथ फोरेंसिक रिपोर्ट भी महत्वपूर्ण होती हैं।
फोरेंसिक लैब द्वारा जब आपत्ति की गई तो अभियोजन पक्ष का यह कर्तव्य है कि वह उक्त आपत्ति पर सफाई दे। उन्होंने कहा कि आरोपी से इस महत्वपूर्ण तथ्य को छिपाना अभियोजन पक्ष के लिए घातक है और निष्पक्ष सुनवाई के पूरे उद्देश्य को विफल करता है।
न्यायालय NDPS Act की धारा 22 के तहत रजिस्टर्ड विशेष न्यायालय द्वारा 2016 में पारित दोषसिद्धि और सजा के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था।
अपीलकर्ता ज़ोरावर सिंह को 400 माइक्रोलिट टैबलेट के अनधिकृत कब्जे का दोषी पाए जाने के बाद NDPS Act की धारा 22 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया और उसे 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ 3 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद यह पाया गया कि NDPS Act की धारा 22 का उल्लेख सभी केस मेमो में पहले से ही किया गया। न्यायाधीश ने कहा कि बरामदगी से पहले ही अपराध का उल्लेख करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि जांच अधिकारी (IO) "उस अपराध के बारे में जानता था जिसके लिए अपीलकर्ता और सह-आरोपी पर मामला दर्ज किया जाना है।"
अदालत ने कहा,
"जब संदिग्ध की सहमति प्राप्त की गई, उस समय प्रतिबंधित पदार्थ की बरामदगी से पहले ही IO को आरोप लगाने वाली धारा के बारे में पता था, जो अभियोजन पक्ष से अपेक्षित निष्पक्षता के अनुरूप नहीं है।"
इसके अलावा न्यायालय ने पाया कि फोरेंसिक लैब को भेजे गए नमूने पर आपत्ति थी और इसे गुप्त रखा गया। ट्रायल कोर्ट को इसकी जानकारी नहीं दी गई, जिसे हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक बताया।
जस्टिस जैन ने कहा कि मुकदमे की निष्पक्षता की मांग है कि आरोपी को उसके खिलाफ सभी परिस्थितियों से अवगत कराया जाना चाहिए। एफएसएल द्वारा उठाई गई आपत्तियों को न्यायालय तथा आरोपी से छिपाए रखने से यह निष्कर्ष निकलता है कि अपीलकर्ता पर निष्पक्ष रूप से मुकदमा नहीं चलाया गया।
उपर्युक्त के आलोक में न्यायालय ने निर्णय लिया कि वर्तमान अपील स्वीकार किए जाने योग्य है तथा सजा तथा दोषसिद्धि आदेश रद्द किया गया।
केस टाइटल- जोरावर सिंह @ शेंटी बनाम पंजाब राज्य