अग्रिम जमानत की अर्जी विदेश से दी जा सकती है लेकिन अंतिम सुनवाई से पहले आरोपी का भारत आना अनिवार्य: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
Amir Ahmad
30 May 2025 12:06 PM IST

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही अग्रिम जमानत (Pre-arrest Bail) के लिए अर्जी विदेश में रह रहा व्यक्ति भी दे सकता है, लेकिन अंतिम सुनवाई से पहले आवेदक का भारत में होना अनिवार्य है, जिससे कोर्ट द्वारा जमानत की शर्तों को लागू किया जा सके।
जस्टिस नमित कुमार ने अपने आदेश में कहा,
"विदेश में आरामकुर्सी पर बैठा व्यक्ति भारत जैसे सबसे बड़े लोकतंत्र की न्याय प्रणाली को इतनी हल्की दृष्टि से नहीं ले सकता कि उसे क्षेत्रीय अदालत द्वारा जांच में शामिल होने की शर्त के साथ संरक्षण दिया गया हो। फिर भी वह उस आदेश का पालन न करे और बिना किसी उचित या ठोस कारण के हाईकोर्ट से फिर वही राहत मांगे।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि विदेश में रह रहे याचिकाकर्ता का ऐसा व्यवहार समाज, विशेषकर NRI वर्ग में गलत संदेश भेजेगा और भारत के विधिक प्रक्रियाओं के प्रति सम्मान में गिरावट ला सकता है।
जस्टिस कुमार ने टिप्पणी की,
"कनाडा में रह रहे याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत की सुरक्षा का अधिकार इस तरह नहीं दिया जा सकता जैसे वह अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी ट्रेन पर सवार होना चाहता हो। इससे न्यायिक प्रणाली की गरिमा और न्यायालय के आदेशों के पालन की बाध्यता कमजोर होगी।"
यह मामला एक पति की अग्रिम जमानत से जुड़ा है, जिस पर धोखाधड़ी और दहेज उत्पीड़न (IPC की धारा 406, 420, 498-A, 506) के आरोप लगे हैं।
शिकायतकर्ता (पत्नी) ने आरोप लगाया कि वे दोनों कनाडा में रह रहे थे और उसे पति द्वारा दहेज के कारण प्रताड़ित किया गया। साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि पति के परिवार ने केवल इसलिए विवाह किया ताकि उनका बेटा कनाडा में बस सके, और इस प्रकार उससे धोखा किया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि FIR केवल वैवाहिक विवाद के कारण की गई। आरोप सामान्य प्रकृति के हैं।
कोर्ट ने यह पाया कि निचली अदालत (एडिशनल सेशन जज) ने पहले ही याचिकाकर्ता को जांच में शामिल होने का निर्देश दिया था लेकिन उसने आदेश का पालन नहीं किया जिसके कारण उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई।
हाईकोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता ने कनाडा में रहते हुए अग्रिम जमानत की याचिका दायर की और अब तक वह भारत नहीं आया है।
कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले Anu Mathew बनाम केरल राज्य का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया,
"कोर्ट को यह संतुष्ट होना चाहिए कि संबंधित व्यक्ति भारत में है या अंतिम सुनवाई से ठीक पहले भारत आ सकता है। यदि वह भारत में नहीं है तो कोर्ट धारा 438(2) के तहत यह शर्त नहीं लगा सकती कि उसे कोर्ट की अनुमति के बिना भारत छोड़ने की अनुमति नहीं होगी।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का व्यवहार दर्शाता है कि उसका उद्देश्य सिर्फ “Blanket Order” (सर्वसुलभ आदेश) प्राप्त करना है ताकि वह भारत किसी और उद्देश्य से आ सके, न कि जांच में सहयोग के लिए।
न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि कनाडा में रह रहे व्यक्ति को अग्रिम जमानत की सुरक्षा इस तरह नहीं दी जा सकती, जैसे कि वह अपने मनपसंद समय पर भारत आने का विकल्प रखता हो। इसके साथ ही याचिका खारिज कर दी गई।

