पंजाब एंड हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या बेहद परेशान करने वाली: हाईकोर्ट ने जेंडर निर्धारण रैकेट चलाने के आरोपी डॉक्टर की अग्रिम जमानत खारिज की

Amir Ahmad

28 Aug 2024 10:07 AM GMT

  • पंजाब एंड हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या बेहद परेशान करने वाली: हाईकोर्ट ने जेंडर निर्धारण रैकेट चलाने के आरोपी डॉक्टर की अग्रिम जमानत खारिज की

    यह देखते हुए कि भारत में विशेष रूप से देश के इस हिस्से में कन्या भ्रूण हत्या एक बेहद परेशान करने वाला मुद्दा बना हुआ है, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोनों राज्यों में बड़े पैमाने पर अवैध लिंग निर्धारण रैकेट चलाने के आरोपी डॉक्टर को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया।

    जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा,

    "यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि भारत में विशेष रूप से देश के इस हिस्से में कन्या भ्रूण हत्या बहुत ही परेशान करने वाला मुद्दा बना हुआ है। विशेष रूप से चिंताजनक पहलू अनैतिक मेडिकल डॉक्टरों की संलिप्तता है, जो हिप्पोक्रेटिक शपथ का उल्लंघन करते हुए गुप्त रूप से जेंडर निर्धारण परीक्षण करते हैं, जिससे यह गंभीर अपराध संभव हो पाता है।"

    पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम में निषेध के बावजूद कुछ डॉक्टर अपनी नैतिक प्रतिबद्धताओं और चिकित्सा पद्धति के सिद्धांतों के साथ विश्वासघात करते हुए गुप्त रूप से ये टेस्ट करते हैं। न्यायाधीश ने कहा कि हिप्पोक्रेटिक शपथ मांग करती है कि डॉक्टर जीवन की रक्षा करें और कोई नुकसान न पहुंचाए। हालाकिं इनमें से कुछ डॉक्टर लालच से प्रेरित होकर कन्या भ्रूणों के विनाश में भागीदार बन जाते हैं।

    न्यायालय डॉ. अनंत राम की अग्रिम जमानत पर सुनवाई कर रहा था जिन पर हरियाणा के हिसार जिले में पूर्व-गर्भाधान एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 (पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम) की धारा 3, 4(1), 4(2), 4(3), 4(4), 5(2), 6, 18(1), 23, 25, 29 तथा आईपीसी की धारा 120-बी, 34 के तहत एफआईआर दर्ज है। डॉ. राम पर पंजाब और हरियाणा राज्यों में बड़े पैमाने पर अवैध जेंडर निर्धारण रैकेट चलाने का आरोप है, जिसमें अज्ञात स्थानों पर पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन का उपयोग किया जाता था। ग्राहकों को इन स्थानों पर ले जाने से पहले कथित तौर पर आंखों पर पट्टी बांध दी जाती थी, जिससे पता न चले।

    याचिकाकर्ता सात अन्य आपराधिक मामलों में भी शामिल था, जिनमें से पांच पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम के तहत समान अपराधों से संबंधित है। राज्य के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता के दिसंबर 2023 में जांच में शामिल होने के बावजूद वह पूरी तरह से असहयोगी रहा है और जेंडर निर्धारण परीक्षण करने में उसके द्वारा इस्तेमाल किए गए लैपटॉप और पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन को सौंपने में विफल रहा है।

    राज्य के वकील ने यह भी दावा किया कि भले ही याचिकाकर्ता को जांच में सहयोग करने के लिए कई अवसर दिए गए लेकिन चूंकि वह ऐसा करने में विफल रहा। इसलिए वर्तमान मामले में उसे हिरासत में लेकर पूछताछ की आवश्यकता है।

    दलीलें सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील की इस दलील खारिज की कि पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम के तहत अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती।

    न्यायाधीश ने हरदीप सिंह और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य (सीआरएम-एम-4211-2014) पर भरोसा करते हुए राय दी,

    "इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि एफआईआर वास्तव में दर्ज की जा सकती है। पुलिस याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित अपराधों की जांच कर सकती है।"

    अदालत ने दोनों राज्यों में बड़े पैमाने पर अवैध जेंडर निर्धारण रैकेट चलाने के गंभीर आरोपों पर भी विचार किया।

    जस्टिस कौल ने इस बात पर प्रकाश डाला,

    "अनैतिक चिकित्सकों की गुप्त जेंडर निर्धारण परीक्षण के माध्यम से इस अभ्यास को सुविधाजनक बनाने में संलिप्तता विशेष रूप से निंदनीय है, क्योंकि यह चिकित्सा पेशे के मूल सिद्धांतों के साथ विश्वासघात दर्शाता है।"

    राज्य के वकील की दलीलों पर गौर करते हुए कि जांच में शामिल होने के कई अवसरों के बावजूद याचिकाकर्ता ने सहयोग नहीं किया, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की हिरासत में पूछताछ आवश्यक होगी, क्योंकि पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन और लैपटॉप बरामद किए गए हैं, जो याचिकाकर्ता की अवैध गतिविधियों की पूरी सीमा को उजागर करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

    इसने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि एक बार याचिकाकर्ता जांच में शामिल हो गया तो केवल पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन और लैपटॉप की बरामदगी के उद्देश्य से उसकी हिरासत में पूछताछ अनावश्यक होगी, क्योंकि यह याचिकाकर्ता को संबंधित अपराध में अपनी संलिप्तता को स्वीकार करने के लिए मजबूर करने के बराबर होगा।

    सुमिता प्रदीप बनाम अरुण कुमार [2022 लाइव लॉ (एससी) 870] पर भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना कि हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता की अनुपस्थिति तकनीकी रूप से अग्रिम जमानत देने को उचित नहीं ठहराती। वर्तमान मामले में जांच अभी भी चल रही है और सक्षम न्यायालय के समक्ष उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा शिकायत दर्ज की जानी बाकी है।

    यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता प्रथम दृष्टया आदतन अपराधी के रूप में सामने आता है। न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल- डॉ. अनंत राम बनाम हरियाणा राज्य

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