पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने इमीग्रेशन धोखाधड़ी में चौंकाने वाली बढ़ोतरी पर जताई चिंता, कड़े प्रतिरोधात्मक कदमों की जरूरत बताई
Amir Ahmad
11 April 2025 3:02 PM IST

इमीग्रेशन धोखाधड़ी रैकेट के बढ़ते प्रचलन को चिन्हित करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे आचरण को रोकने के लिए सख्त दृष्टिकोण अपनाने की तत्काल आवश्यकता है।
जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा,
“इमीग्रेशन धोखाधड़ी से जुड़े अपराध हाल के वर्षों में खतरनाक स्तर पर पहुंच गए हैं। अनजान व्यक्तियों को अक्सर विदेश में नौकरी या शिक्षा का वादा करके बहकाया जाता है और उनसे जीवन की बड़ी बचत छीन ली जाती है।"
न्यायालय ने कहा कि ये धोखाधड़ी अक्सर एजेंटों और दलालों द्वारा की जाती है, जो विनियामक जाल से बाहर काम करते हैं। कई मामलों में पीड़ित या तो फंस जाते हैं ठगे जाते हैं या इससे भी बदतर विदेशी अधिकार क्षेत्र में खुद को कानूनी संकट में पाते हैं।
इस न्यायालय ने कहा,
"यह न्यायालय ऐसे रैकेट के बढ़ते प्रचलन और ऐसे आचरण को रोकने के लिए सख्त दृष्टिकोण अपनाने की तत्काल आवश्यकता के बारे में सचेत है।"
ये टिप्पणियां भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 482 के तहत अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान की गईं, जिसमें IPC की धारा 420, 120-बी के तहत मामला दर्ज किया गया।
यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता गुरबीर सिंह ने सह-आरोपियों के साथ मिलकर शिकायतकर्ता से उसके बेटे को यूनाइटेड किंगडम भेजने के बहाने बड़ी रकम ठगी है।
सिंह के वकील ने कहा कि वह केवल एक ट्रैवल एजेंट है, जो हवाई टिकट बुक करने का काम करता है, न कि वीजा सलाहकार या इमिग्रेशन एजेंट।
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को केवल एक सह-आरोपी रमनदीप सिंह से मिलवाया, जो कथित तौर पर एक वीजा कंसल्टेंसी फर्म चला रहा था और याचिकाकर्ता से परिचित होने के कारण शिकायतकर्ता ने 07.12.2023 और 26.06.2024 के बीच याचिकाकर्ता के खाते में 23,50,000 रुपये की राशि जमा की, जिसे बाद में याचिकाकर्ता ने अपना कमीशन रखने के बाद सह-आरोपी रमनदीप सिंह को ट्रांसफर कर दिया।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप गंभीर और विशिष्ट हैं।
न्यायालय ने कहा कि वह केवल एक दर्शक या लेन-देन में एक आकस्मिक कड़ी नहीं है बल्कि एक बड़ी राशि का प्रत्यक्ष प्राप्तकर्ता है, जिसे कथित तौर पर झूठे बहाने के तहत एकत्र किया गया।
जस्टिस कौल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत यह दलील कि याचिकाकर्ता ने केवल मध्यस्थ के रूप में काम किया उसे दोषमुक्त नहीं करती, खासकर तब जब प्रथम दृष्टया धन-संकट की शुरुआत और अंत उसके साथ ही हुआ हो तथा शिकायतकर्ता के बेटे को विदेश भेजने का अंतिम उद्देश्य पूरा नहीं हुआ हो।
परिणामस्वरूप, यह पाया गया कि प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता ने वित्तीय लेनदेन में सक्रिय रूप से भाग लिया तथा धोखाधड़ी की गई राशि का प्रारंभिक संरक्षक होने के कारण उसे जांच से बचने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
यह कहते हुए कि अपनाई गई कार्यप्रणाली के अनुसार यह न्यायालय याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत की असाधारण रियायत देना उचित नहीं समझता। न्यायालय ने राहत देने से इनकार कर दिया।
”यह ध्यान देने योग्य है कि अगर वीजा धोखाधड़ी को अनदेखा किया गया तो इससे वैश्विक स्तर पर देश की प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है। आव्रजन प्रणालियों की अखंडता और वैधता को नुकसान पहुंच सकता है, जहां पहले से ही प्रतिकूल परिस्थितियां देखी जा सकती हैं।”
हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब ऐसा मामला दर्ज किया जाता है तो संबंधित एजेंसी को दावे और शिकायतकर्ता की साख को सत्यापित करना चाहिए।
टाइटल: गुरबीर सिंह बनाम पंजाब राज्य

