प्रथम दृष्टया 'विधायक ने कानून तोड़ा': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने नूंह हिंसा मामले में अलग से सुनवाई के खिलाफ MLA मम्मन खान की याचिका खारिज की
Amir Ahmad
19 Dec 2024 3:20 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने जुलाई 2023 के नूंह हिंसा मामले के संबंध में नूंह की निचली अदालत द्वारा अन्य आरोपियों से उनके मुकदमे को अलग करने के खिलाफ कांग्रेस विधायक मम्मन खान द्वारा दायर याचिका खारिज की।
जस्टिस महावीर सिंह सिंधु ने कहा,
"निचली अदालत द्वारा लगाए गए आरोपों के मद्देनजर प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता विधायक होने के नाते कानून तोड़ा है। साथ ही आम आदमी के विश्वास को बनाए रखने के साथ-साथ कानून के शासन को बनाए रखने के लिए अगर निर्वाचित प्रतिनिधि को शीघ्र न्याय के कटघरे में लाया जाता है तो कोई नुकसान नहीं होगा।"
खान ने अगस्त में एडिशनल सेशन जज नूंह द्वारा पारित आदेश रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें अभियोजन पक्ष को खान के खिलाफ अलग से आरोप-पत्र दाखिल करने और नूंह हिंसा मामले में अन्य से मुकदमे को अलग करने का निर्देश दिया गया था।
खान ने 25 नवंबर, 2024 के आदेश को भी चुनौती दी, जिसके तहत उनके खिलाफ आरोप तय किए गए। यह आरोप लगाया गया कि खान ने गौरक्षकों के हाथों दो व्यक्तियों, नासिर और जुनेद (घाटमीका, भरतपुर, राजस्थान के निवासी) की हत्या का बदला लेने के लिए अन्य सह-आरोपियों के साथ मिलकर सोशल मीडिया के साथ-साथ व्यक्तिगत रूप से दंगा, डकैती, आगजनी और आपराधिक धमकी के अपराधों को अंजाम देने की आपराधिक साजिश रची। आईपीसी की धारा 107, 120-बी, 180, 153ए, 201, 379ए, 395, 427, 436, 506, 148 सहपठित धारा 149 के तहत FIR दर्ज की गई।
ट्रायल कोर्ट ने पाया कि एक या दूसरे आरोपी की अनुपस्थिति के कारण मामला आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
आदेश में आगे कहा गया,
"दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देश के अनुसार, सांसदों/विधायकों के मामलों को दिन-प्रतिदिन के आधार पर प्राथमिकता के आधार पर तय किया जाना है।"
ट्रायल कोर्ट ने कहा कि मामले को वर्तमान कार्ययोजना के लिए चिन्हित किया गया। इसलिए न्याय और परिस्थितियों के हित में आरोपी मम्मन खान के मामले की सुनवाई अलग से की जानी चाहिए।
प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद न्यायालय ने कहा,
"28.08.2024 को मुकदमे के पृथक्करण के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ 25.11.2024 को आरोप तय किए गए; 11.12.2024 को अभियोजन पक्ष के दो गवाहों की जांच की गई। इस तरह मुकदमा सुचारू रूप से चल रहा है।"
जस्टिस सिंधु ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता का मामला ऐसा नहीं है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा तय किए गए आरोप उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया नहीं बनते हैं।
न्यायाधीश ने कहा,
"ऐसी तथ्यात्मक स्थिति में केवल ट्रायल के पृथक्करण से याचिकाकर्ता के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा, न ही यह तर्क दिया जा सकता है कि ट्रायल कोर्ट के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है बल्कि संहिता की धारा 223 के प्रावधानों के मद्देनजर, ट्रायल कोर्ट को मुकदमे को अलग करने का पूरा अधिकार है।”
न्यायालय ने कहा कि सुनवाई दिन-प्रतिदिन नहीं की जा रही है बल्कि यह उचित गति से चल रही है और इस प्रकार यह नहीं कहा जा सकता है कि कार्यवाही अनुचित जल्दबाजी में की जा रही है या खान को कोई पूर्वाग्रह पैदा कर रही है।
उपर्युक्त के आलोक में न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के मुकदमे को अलग करने और मामले में तेजी से आगे बढ़ने के लिए ट्रायल कोर्ट पूरी तरह से उचित था।
केस टाइटल: मम्मन खान बनाम हरियाणा राज्य और अन्य।