चौंकाने वाला, एकदम मनमाना: रिटायर कर्मचारी को पदावनत करने पर हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार पर 2 लाख का जुर्माना लगाया

Amir Ahmad

6 July 2024 7:04 AM GMT

  • चौंकाने वाला, एकदम मनमाना: रिटायर कर्मचारी को पदावनत करने पर हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार पर 2 लाख का जुर्माना लगाया

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने इसे अजीब और चौंकाने वाला पाते हुए हरियाणा सरकार पर अपने कर्मचारी को लोअर डिवीजन क्लर्क (LDC) के पद से रिटायर होने के बाद टाइपिंग टेस्ट पास करने के लिए कहने पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

    राज्य ने उसे रिटायरमेंट के बाद चौकीदार के पद पर पदावनत कर दिया क्योंकि वह अनिवार्य परीक्षा पास करने में विफल रहा।

    जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह ने कहा,

    "प्रतिवादियों की कार्रवाई बिल्कुल मनमानी और चौंकाने वाली है, जिसमें चीफ इंजीनियर रैंक के अधिकारी द्वारा याचिकाकर्ता के पति को निर्देश दिया गया कि वह रिटायरमेंट के बाद टाइपिंग टेस्ट पास करें अन्यथा उसे वापस कर दिया जाएगा। उसके बाद उपरोक्त कार्रवाई की गई। इसलिए प्रतिवादियों की कार्रवाई स्पष्ट रूप से अवैध है।"

    न्यायालय ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि किसी कर्मचारी की रिटायरमेंट के बाद मालिक और नौकर का रिश्ता खत्म हो जाता है। यदि किसी भूतपूर्व कर्मचारी की रिटायरमेंट के पश्चात कोई कार्रवाई की जानी है तो वह हमेशा तभी की जा सकती है, जब कानून का स्पष्ट प्राधिकार हो तथा कानून का प्रावधान हो।

    न्यायाधीश ने कहा,

    "दूसरे शब्दों में रिटायर कर्मचारी के विरुद्ध तभी कार्रवाई की जा सकती है, जब कानून किसी विशेष तरीके से ऐसा करने की अनुमति देता हो लेकिन मनमाने तरीके से नहीं।”

    न्यायालय हरियाणा विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा जारी किए गए पत्र को रद्द करने के लिए एक विधवा की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसके तहत प्रतिवादियों द्वारा उसके पति की पेंशन कम कर दी गई तथा उससे 5.65 लाख रुपए से अधिक की राशि वसूलने की मांग की गई।

    संक्षेप में तथ्य

    याचिकाकर्ता का पति प्रतिवादी निगम में चौकीदार के रूप में कार्यरत था तथा उसके पश्चात 1989 में उसे लोअर डिविजन क्लर्क (LDC) के पद पर पदोन्नत किया गया। नियमों के तहत शर्त थी कि पदोन्नत किए जाने वाले व्यक्ति को निश्चित अवधि के भीतर टाइपिंग टेस्ट पास करना होता था।

    याचिकाकर्ता के पति को टाइपिंग टेस्ट पास करने के संबंध में बार-बार सूचित किया गया तथा याचिकाकर्ता के पति भी छूट की मांग कर रहे थे लेकिन न तो उन्होंने टाइपिंग टेस्ट पास किया और न ही उन्हें कोई छूट दी गई। अंततः वे 2012 में रिटायर हो गए।

    रिटायरमेंट के बाद ही चीफ इंजीनियर ने याचिकाकर्ता के पति को 2013 में पत्र लिखकर निर्देश दिया कि वे तीन महीने की अवधि के भीतर अनिवार्य टाइपिंग टेस्ट पास करें अन्यथा उन्हें चौकीदार के पद पर वापस कर दिया जाएगा।

    कर्मचारी टेस्ट पास नहीं कर सका और उसकी पेंशन और पेंशन संबंधी लाभों को फिर से तय किया गया।

    इसके बाद याचिकाकर्ता के पति की 2018 में मृत्यु हो गई और याचिकाकर्ता, जो एक विधवा है, उसकी पारिवारिक पेंशन और अन्य लाभ भी उसके पति के चौकीदार के रूप में वेतन के आधार पर तय किए गए।

    प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने कहा,

    "जब याचिकाकर्ता का पति सेवा में था, यद्यपि पदोन्नति पाने के उद्देश्य से या पदोन्नति के बाद भी समय सीमा के भीतर टाइपिंग टेस्ट पास करने का प्रावधान हो सकता था, नियमों के अनुसार, उसे रिवर्ट किया जा सकता था। लेकिन यह ऐसा मामला है, जहां याचिकाकर्ता के पति को सेवा में रहते हुए कभी रिवर्ट नहीं किया गया और वह LDC के पद से रिटायर हुआ।"

    जस्टिस पुरी ने इस बात पर प्रकाश डाला,

    "चीफ इंजीनियर स्तर के अधिकारी द्वारा जारी की गई भाषा को पढ़ना बहुत ही अजीब और चौंकाने वाला है, जिसमें उन्होंने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह अपनी सेवानिवृत्ति के बाद टाइपिंग टेस्ट पास करे अन्यथा उसे रिवर्ट कर दिया जाएगा। उसके बाद उसे वास्तव में रिवर्ट कर दिया गया। हालाँकि रिकॉर्ड पर रिवर्ट करने का कोई आदेश नहीं है लेकिन यह स्वीकृत पद है। इसके बाद पूरे लाभ की पुनर्गणना चौकीदार के पद के अनुसार की गई।"

    न्यायालय ने यह भी कहा कि जब कानून का कोई प्रावधान नहीं है या कानून का कोई प्राधिकार नहीं है या सेवानिवृत्ति के बाद इस तरह का कोई प्रत्यावर्तन नहीं किया जा रहा है और सेवानिवृत्त कर्मचारी को टाइपिंग टेस्ट पास करने का निर्देश दिया जा रहा है तो प्रतिवादियों की कार्रवाई मनमानी स्पष्ट रूप से अवैध है। इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।

    संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन न्यायालय ने कहा कि विधवा को न केवल अपने वैधानिक अधिकारों बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत परिकल्पित अपने संवैधानिक अधिकारों को लागू करने के उद्देश्य से इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने याचिकाकर्ता के पति के LDC के पद से रिटायर होने के समय से पेंशन और सभी पेंशन संबंधी लाभों को फिर से निर्धारित करने और याचिकाकर्ता जो उसकी विधवा है, उसको उन लाभों के संबंध में सभी परिणामी लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया, जिनके लिए याचिकाकर्ता के पति LDC के रूप में हकदार थे साथ ही 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी दिया जाना चाहिए।

    न्यायालय ने कहा,

    “याचिकाकर्ता या उसके पति से की गई वसूली, यदि कोई हो, तो उसे आज से तीन महीने की अवधि के भीतर 6% प्रति वर्ष (साधारण) ब्याज के साथ याचिकाकर्ता को वापस किया जाएगा। इसी तरह, याचिकाकर्ता की पारिवारिक पेंशन और पेंशन लाभ और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ भी इस तरह से तय किए जाएंगे, जैसे कि याचिकाकर्ता के पति एलडीसी के पद से सेवानिवृत्त हुए हों और याचिकाकर्ता को 6% प्रति वर्ष ब्याज के साथ भुगतान किया जाए।”

    याचिका का निपटारा करते हुए न्यायालय ने कहा,

    "याचिकाकर्ता विधवा होने के कारण 2,00,000/- (केवल दो लाख रुपये) की लागत की हकदार होगी, जिसे प्रतिवादियों द्वारा याचिकाकर्ता को तीन महीने की अवधि के भीतर भुगतान किया जाएगा।"

    केस टाइटल- माया देवी बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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