केवल FIR दर्ज होने से कदाचार नहीं होता, इस आधार पर वार्षिक वेतन वृद्धि रोकना गलत: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Amir Ahmad

23 Oct 2025 11:42 AM IST

  • केवल FIR दर्ज होने से कदाचार नहीं होता, इस आधार पर वार्षिक वेतन वृद्धि रोकना गलत: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी कर्मचारी के खिलाफ केवल FIR दर्ज होना कदाचार नहीं माना जा सकता। इसलिए यह वार्षिक वेतन वृद्धि को रोकने का वैध आधार नहीं हो सकता।

    जस्टिस हरप्रीत सिंह बरार ने इस सिद्धांत पर जोर दिया कि वेतन वृद्धि कर्मचारी द्वारा पिछले वर्ष में सफलतापूर्वक दी गई सेवाओं की एक स्वीकृति है।

    उन्होंने कहा,

    "कर्मचारी द्वारा अर्जित वेतन वृद्धि पिछली अवधि के दौरान उचित रूप से दी गई सेवाओं की स्वीकृति के रूप में है। यह प्रदर्शन के दौरान अर्जित एक निहित अधिकार है, जो भविष्य के किसी भी आचरण के आकलन से अलग है।"

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानूनी सुरक्षा उपायों को देखते हुए केवल FIR का पंजीकरण कदाचार या दोष के बराबर नहीं है बल्कि यह केवल भविष्य की जांच का संकेत है, जिसका परिणाम अनिश्चित है।

    न्यायालय ने कहा कि इस अनुमानित आधार पर वेतन वृद्धि को रोकना निष्पक्षता के सिद्धांत को बाधित करता है, क्योंकि यह किसी व्यक्ति को निर्णायक निर्धारण के बिना दंडित करता है।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल औपचारिक अनुशासनात्मक प्रक्रिया के बाद लगाए गए दंडात्मक फैसले ही वेतन वृद्धि को रोकने के लिए न्यायसंगत आधार प्रदान करते हैं।

    यह फैसला पंजाब स्टेट सिविल सप्लाइज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (PUNSUP) में क्लर्क के रूप में नियुक्त एक याचिकाकर्ता की याचिका पर आया।

    याचिकाकर्ता की वार्षिक वेतन वृद्धि और पदोन्नति एक लंबित FIR के कारण रोक दी गई। इस आधार पर कि FIR के कारण उसकी परिवीक्षा अवधि स्वीकृत नहीं हुई थी।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि उसने तीन साल की सेवा संतोषजनक ढंग से पूरी कर ली थी, जो PUNSUP के सेवा नियमों के तहत अधिकतम परिवीक्षा अवधि थी। इस तरह उसे स्थायी माना जाना चाहिए।

    हालांकि उसने टाइपिंग टेस्ट भी पास कर लिया लेकिन FIR के कारण उसकी वेतन वृद्धि और पदोन्नति रोक दी गई।

    हाईकोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि वेतन वृद्धि केवल तभी रोकी जा सकती है, जब यह दंड के तौर पर हो या कर्मचारी ने कार्य कुशलता से न किया हो।

    इन निष्कर्षों के आलोक में हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार की और विवादास्पद आदेश रद्द कर दिया।

    कोर्ट ने सक्षम प्राधिकारी को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को टाइप टेस्ट पास करने की तारीख से वार्षिक वेतन वृद्धि प्रदान की जाए। इसके अतिरिक्त प्रतिवादियों को परिवीक्षा अवधि पूरी होने पर याचिकाकर्ता को स्थायी करने और कानून के अनुसार उसकी पदोन्नति और एसीपी योजना के मामले पर विचार करने का भी निर्देश दिया गया।

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