पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कई मामलों में DNA प्रोफाइलिंग के परिणाम प्राप्त करने में ढिलाई का स्वतः संज्ञान लिया
Amir Ahmad
26 Aug 2024 11:59 AM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कई मामलों में DNA प्रोफाइलिंग के परिणाम प्राप्त करने में जांच एजेंसी द्वारा दिखाई गई सुस्त ढिलाई का स्वतः संज्ञान लिया।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने पूछा,
"क्या पंजाब, हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में राज्य और क्षेत्रीय स्तर पर पर्याप्त संख्या में फोरेंसिक साइंस लैब (FSL) स्थापित की गई हैं और उनमें पर्याप्त स्टाफ़ हैं, जिससे वे केस लोड को संभाल सकें?"
न्यायालय ने निम्नलिखित प्रश्न भी तैयार किए:
1. क्या यात्रा में लगने वाले श्रमदिवसों को बचाने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा के माध्यम से DNA रिपोर्ट के बारे में विशेषज्ञों और डॉक्टरों की राय प्राप्त की जा सकती है?
2. क्या प्रत्येक हितधारक द्वारा पालन की जाने वाली समय-सीमा और प्राप्त सैम्पल के उचित प्रबंधन के लिए कोई विशिष्ट दिशा-निर्देश और विनियमन लागू किए गए?
3. क्या FSL को सैम्पल समय पर प्रस्तुत करने और संबंधित न्यायालयों को रिपोर्ट प्रस्तुत करने की निगरानी के लिए जिला स्तर पर निगरानी प्रकोष्ठ स्थापित किए जाने की आवश्यकता है?
4. क्या संबंधित राज्यों और यू.टी. चंडीगढ़ द्वारा सैंपल के संग्रह और संरक्षण के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की गई, जिससे उनकी अखंडता से समझौता न हो?
यह घटनाक्रम POCSO मामले में DNA रिपोर्ट को पूर्व निर्धारित करने के निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान हुआ, जिसमें न्यायालय ने कहा कि बड़ी संख्या में मामलों में जांच एजेंसी ने DNA सैंपल के परिणाम प्राप्त करने में उदासीन दृष्टिकोण दिखाया है।
जस्टिस बरार ने इस बात पर प्रकाश डाला कि DNA प्रत्येक व्यक्ति के लिए अद्वितीय है। इसका पता लगाने से जांच एजेंसी को सही आरोपी पर दोष लगाने में सुविधा होगी। आरोपी के अपराध और निर्दोषता को साबित करने के लिए इस तरह की वैज्ञानिक पद्धति आवश्यक है।
अदालत ने कहा,
"एक तरफ POCSO Act के तहत समयसीमा निर्धारित की गई । फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की स्थापना की गई, जो विशेष रूप से उक्त कानून के दायरे में आने वाले अपराधों से निपटते हैं। वहीं दूसरी तरफ, जांच और मुकदमे में देरी हो रही है। यह उदासीन दृष्टिकोण शामिल अधिकारियों की संवेदनशीलता की कमी और समय पर जांच के लिए बुनियादी ढांचे की कमी का संकेत देता है।”
इसने यह भी नोट किया कि फरीदाबाद के पुलिस आयुक्त द्वारा प्रस्तुत हलफनामे के अनुसार,
"पिछले 5 वर्षों में अकेले फरीदाबाद में 73 मामलों में DNA रिपोर्ट का इंतजार है। इनमें से 40 मामलों में आरोपी वर्तमान में हिरासत में हैं। हरियाणा राज्य के वकील ने भी अदालत को सूचित किया है कि वर्तमान में 10,000 से अधिक अज्ञात शवों की DNA प्रोफाइलिंग लंबित है।"
न्यायाधीश ने कहा,
"जांच एजेंसी की ओर से इस तरह की सुस्ती आपराधिक न्याय प्रशासन तंत्र को काफी हद तक अवरुद्ध करने की क्षमता रखती है। जांच और मुकदमे को आरोपी की कीमत पर हमेशा के लिए लटकाए रखने और उसके सिर पर खतरे की तलवार लटकाए रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"
DNA रिपोर्ट प्रस्तुत करने में इस तरह की देरी जिसके परिणामस्वरूप विचाराधीन कैदियों की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगता है, किसी भी कल्याणकारी लोकतांत्रिक राज्य के लिए अनुचित है। न्यायालय ने कहा कि नकारात्मक निष्कर्ष देने वाली DNA रिपोर्ट आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करने में सहायक हो सकती है। हालांकि, देरी से रिपोर्ट प्राप्त होने पर निर्दोष व्यक्ति को अनुचित रूप से कैद किया जा सकता है।
इसने स्पष्ट किया कि देरी की प्रथा पीड़ित के त्वरित न्याय पाने के अधिकार को भी कुचलती है। खासकर इस तथ्य के मद्देनजर कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों के त्वरित निपटान के उद्देश्य से विशेष कानून बनाए गए हैं।
मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि मामले को उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।
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