पूर्व सैन्य नर्सों को सरकारी रोजगार के लिए 'पूर्व सैनिक' माना जाता है: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

Amir Ahmad

6 Feb 2024 9:00 AM GMT

  • पूर्व सैन्य नर्सों को सरकारी रोजगार के लिए पूर्व सैनिक माना जाता है: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पूर्व सैन्य नर्सिंग अधिकारी को पंजाब पूर्व सैनिक भर्ती नियम, 1982 के संदर्भ में 'पूर्व सैनिक' की परिभाषा में शामिल किया जाएगा।

    सैन्य नर्सिंग अधिकारी, जो सैन्य नर्सिंग सेवा अध्यादेश 1943 (Military Nursing Service Ordinance 1943) के तहत शासित को पांच साल की अवधि के लिए शॉर्ट सर्विस कमीशन के लिए नियुक्त किया गया था, बाद में जब उन्होंने पंजाब राज्य सिविल सेवा संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा, 2020 में 'पूर्व सैनिक' श्रेणी के तहत पद के लिए आवेदन किया तो उनकी उम्मीदवारी अस्वीकार कर दी गई।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस अमन चौधरी की खंडपीठ ने 1982 के नियमों के खंड 2 (C) (iv) का अवलोकन करते हुए कहा,

    "उपरोक्त प्रावधान एक्सप्रेसिस वर्बिस को पढ़ने से पता चलता है कि परिभाषा के अंतर्गत आने वाला एकमात्र मानदंड सेवा से मुक्त होने पर ग्रेच्युटी प्राप्त करना, जो अपीलकर्ता ने किया तथ्य जो निर्विवाद रहा।"

    उनकी नियुक्ति अध्यादेश के तहत की गई है, सेवा सेना अधिनियम 1950 (Army Act 1950) द्वारा शासित होती है और राजपत्र अधिसूचना में नियमित सेना के शीर्षक के तहत सैन्य नर्सिंग सेवा' को दर्शाया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्हें इसके तहत कवर किया जाएगा।

    खंडपीठ ने कहा,

    "पूर्व सैनिक की श्रेणी और इस प्रकार उक्त भर्ती में विचार किए जाने का हकदार है।"

    अदालत अपने एकल पीठ के आदेश के खिलाफ लेटर्स पेटेंट अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अदालत ने कहा कि सैन्य नर्सिंग अधिकारी पंजाब पूर्व सैनिक भर्ती नियम, 1982 के संदर्भ में पूर्व सैनिक की परिभाषा में नहीं आएंगे।

    पंजाब राज्य सिविल सेवा संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा 2020 में पूर्व सैनिक श्रेणी के तहत एक पद के लिए आवेदन करने के बाद अपीलकर्ता की उम्मीदवारी खारिज कर दी गई।

    न्यायालय ने इस प्रश्न पर विचार किया कि क्या अपीलकर्ता, जो सैन्य नर्सिंग सेवा अध्यादेश 1943 द्वारा शासित सैन्य नर्सिंग सेवा का कमीशन अधिकारी था, पंजाब में पूर्व सैनिकों की भर्ती के संदर्भ में 'पूर्व सैनिक नियम, 1982 की परिभाषा में आता है।

    जस्टिस चौधरी ने खंडपीठ की ओर से बोलते हुए कहा,

    "भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा" का गठन 1943 में किया गया और इसे संघ के सशस्त्र बलों के हिस्से के रूप में और सैन्य बलों के साथ सेवा के लिए स्थापित और बनाए रखा गया।"

    सेवा के सदस्यों को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त कमीशन रैंक दिया जाएगा और वे केवल सेना अधिनियम 1950 के अधीन बलों और व्यक्तियों के साथ सेवा के लिए उत्तरदायी होंगे। न्यायालय ने कहा कि भारतीय सैन्य बलों के संबंध में रेगुलशन द्वारा निर्धारित कर्तव्य प्रशिक्षण लेने के लिए बाध्य होंगे, जिससे प्रदर्शन किया जा सके।

    कोर्ट ने राज्य का यह तर्क खारिज कर दिया कि पात्रता की शर्तें और आरक्षण आदि के संबंध में दिए जाने वाले लाभ नियोक्ता का विशेषाधिकार है।

    कोर्ट ने कहा,

    "केंद्रीय सैनिक बोर्ड रक्षा मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली से निदेशक राज्य सैनिक बोर्ड, पंजाब, चंडीगढ़ को प्राप्त संचार पर निर्भरता के संबंध में राज्य वकील द्वारा उठाए गए अनुरोध को हमारे द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता। एकमात्र कारण यह है कि प्रासंगिक रूप से पात्रता की शर्तें और आरक्षण आदि के संबंध में दिए जाने वाले लाभ नियोक्ता का विशेषाधिकार है, जो वर्तमान मामले में केंद्र सरकार नहीं, बल्कि पंजाब सरकार है, जिसने अपने स्वयं के 1982 नियमों को अधिसूचित किया है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 234 और 318 के साथ पठित अनुच्छेद 309 के परंतुक के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए बनाया गया।”

    इसमें कहा गया कि स्थापित कानून के अनुसार, इसे पंजाब सरकार के प्रशासनिक निर्देशों के जरिए खारिज नहीं किया जा सकता, केंद्र सरकार के निर्देशों के जरिए तो बिल्कुल भी नहीं।

    उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका स्वीकार की,

    "अपीलकर्ता की उम्मीदवारी यदि योग्यता में पाई जाती है तो उसे तुरंत नियुक्ति दी जाए। हालांकि वह केवल सेवा के काल्पनिक लाभों की हकदार होगी।"

    अपीलकर्ता की ओर से वकील-नवदीप सिंह और रूपन अटवाल उपस्थित हुए।

    प्रतिवादी नंबर 1 और 2 के लिए वकील- सौरव वर्मा।

    प्रतिवादी नंबर 3 यूनियन ऑफ इंडिया के लिए- शिवोय धीर

    प्रतिवादी नंबर 4 के लिए- एमएस दोआबिया

    साइटेशन- लाइव लॉ (पीएच) 34 2024

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