"परीक्षा नियमों को चुनौती नहीं दी तो मदद नहीं कर सकते": पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने AIBE फीस के खिलाफ याचिका खारिज की

Amir Ahmad

13 May 2025 3:02 PM IST

  • परीक्षा नियमों को चुनौती नहीं दी तो मदद नहीं कर सकते: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने AIBE फीस के खिलाफ याचिका खारिज की

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा ली जाने वाली फीस को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता से कहा कि वह परीक्षा नियम को चुनौती दे ताकि न्यायालय शिकायतों पर गौर कर सके।

    चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुमित गोयल की खंडपीठ ने एडवोकेट एक्ट की धारा 24 का हवाला देते हुए कहा कि व्यक्ति को राज्य रोल पर एडवोकेट के रूप में भर्ती किया जा सकता है, अधिनियम के प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों के अधीन व्यक्ति को राज्य रोल पर एडवोकेट के रूप में भर्ती होने के लिए योग्य होना चाहिए। यह सब नियमों के अधीन है। आप नियमों को चुनौती दें, यदि आप परीक्षा नियमों को चुनौती नहीं देते हैं तो हम कैसे मदद कर सकते हैं?

    परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता ने BCI द्वारा तैयार किए गए परीक्षा नियमों को चुनौती देने के लिए नई याचिका दायर करने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस लेने की मांग की।

    पेशे से वकील तुषार तंवर ने जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि BCI को AIBE के लिए परीक्षा शुल्क लेने का अधिकार देने के लिए कानून के तहत कोई सक्षम प्रावधान नहीं है।

    इसमें यह घोषित करने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई कि BCI द्वारा AIBE के लिए आवेदन शुल्क के रूप में सामान्य/ओबीसी उम्मीदवारों से 3500 रुपये और अन्य आकस्मिक शुल्क तथा SC/ST उम्मीदवारों से 2500 रुपये और अन्य आकस्मिक शुल्क लिया जाना एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 24(1)(एफ) का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। साथ ही गौरव कुमार बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है।

    राज्य बार नामांकन शुल्क पर स्पष्ट सीमा निर्धारित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गौरव कुमार मामले में स्पष्ट किया कि वकीलों से नामांकन के लिए पूर्व शर्त के रूप में उनके द्वारा एकत्र की गई कोई भी राशि नामांकन शुल्क के बराबर होगी।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि बार काउंसिल को नामांकित वकीलों से उनकी सेवाओं के लिए फीस वसूलने के अन्य तरीके खोजने चाहिए।

    खंडपीठ ने SBC और BCI को फीस वसूलने के लिए उचित तरीके विकसित करने की सलाह दी थी। इन तरीकों में नए लॉ ग्रेजुएट और पहले से नामांकित वकीलों दोनों पर विचार किया जाना चाहिए।

    याचिका का विरोध करते हुए BCI की ओर से उपस्थित वकील ने प्रस्तुत किया कि शुरू मे AIBE के लिए कोई प्रावधान नहीं था। यही कारण है कि एडवोकेट एक्ट में इसका उल्लेख नहीं किया गया। हालांकि, यह देखते हुए कि विधि एक महान पेशा है और पेशेवर मानकों को बढ़ाने के लिए बाद में BCI द्वारा AIBE नियमों के तहत परीक्षा शुरू की गई।

    उन्होंने आगे प्रस्तुत किया कि गौरव कुमार का निर्णय नामांकन-पूर्व प्रक्रिया पर लागू होता है लेकिन AIBE नामांकन के बाद की प्रक्रिया है। इसलिए AIBE के लिए ली जाने वाली फीस उन्हें नामांकित करने की पूर्व शर्त नहीं है जो'नामांकन शुल्क' के बराबर होगी।

    यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता को AIBE नियमों को चुनौती देने की आवश्यकता है। न्यायालय ने याचिका को वापस लेने की अनुमति दी और नई याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी।

    केस टाइटल: तुषार तंवर बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया

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