पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने वकील के रूप में कथित कदाचार के कारण निष्कासित हुए जज को बहाल किया
Amir Ahmad
18 Jan 2025 6:41 AM

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एडिशनल एवं सेशन जज को परिणामी लाभ के साथ बहाल करने का निर्देश दिया, जिन्हें संदिग्ध निष्ठा के कारण परिवीक्षा अवधि के दौरान सेवा से हटा दिया गया था। तत्कालीन प्रशासनिक न्यायाधीश द्वारा दर्ज वर्ष 2015-16 के लिए वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में न्यायाधीश के खिलाफ की गई शिकायत के आधार पर OSD (सतर्कता) हरियाणा ने अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट (दिनांक 28.05.2016) में निष्कर्ष निकाला कि न्यायाधीश के कार्य और आचरण, जब वह एक वकील के रूप में अभ्यास कर रहे थे, पेशेवर कदाचार के बराबर थे। रिपोर्ट पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने उनकी सेवा समाप्त कर दी थी।
चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुधीर सिंह की खंडपीठ ने कहा कि शिकायत के अलावा रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि याचिकाकर्ता की ईमानदारी किसी बाहरी विचार या अन्यथा के कारण संदिग्ध थी।
खंडपीठ की ओर से बोलते हुए जस्टिस सुधीर सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 2021 में पारित फुल कोर्ट के फैसले और 2022 में की गई भर्ती और पदोन्नति समिति (उच्च न्यायिक सेवा) की सिफारिशों को, जिसे 2022 में फुल कोर्ट द्वारा अनुमोदित किया गय, उन्होंने दायर शिकायत में कार्यवाही को छोड़ने पर ध्यान नहीं दिया और याचिकाकर्ता की ACR को वर्ष 2014-15 के लिए 'बी+गुड' के रूप में अंतिम माना।
खंडपीठ ने कहा,
"उसी अनुपात को लागू करते हुए, जिसे वर्ष 2014-15 के लिए ACR में दर्ज अनंतिम टिप्पणियों को अंतिम मानने के लिए आधार बनाया गया, वर्ष 2015-16 के लिए एसीआर में दर्ज टिप्पणियां आधार नहीं रखती हैं। इसलिए शिकायत के अलावा कोई सामग्री नहीं होने के कारण कार्यवाही जिसमें छोड़ दिया गया, उक्त टिप्पणियों को आधार नहीं बनाया जा सकता।"
एडिशनल एवं सेशन जज के खिलाफ शिकायत की गई कि जब वह एक वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रहे थे तो उनके साथ मिलीभगत करके महिला ने झूठा बलात्कार का मामला दर्ज कराया और यह आरोप लगाया गया कि अधिकारी (जो उस समय वकील थे) ने मामले को निपटाने के लिए आरोपी से संपर्क किया और 1.50 लाख रुपये प्राप्त किए। ओएसडी (सतर्कता) हरियाणा की 28.05.2016 की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में पाया गया कि बरनाला में एक वकील के रूप में प्रैक्टिस करते समय याचिकाकर्ता का आचरण पेशेवर कदाचार के बराबर था।
आगे बताया गया कि 2015-16 की एसीआर में याचिकाकर्ता की समग्र ग्रेडिंग सी (ईमानदारी संदिग्ध) दर्ज की गई। ईमानदारी कॉलम में यह दर्ज किया गया कि उसकी ईमानदारी संदिग्ध होने के कारण वह सेवा में बने रहने के योग्य नहीं है।
इसके बाद याचिकाकर्ता की परिवीक्षा अवधि के समापन पर विचार करने के मामले को भर्ती और पदोन्नति समिति (सीनियर न्यायिक सेवा) के समक्ष रखा गया और उक्त समिति ने 11.02.2022 को आयोजित अपनी बैठक में सिफारिश की कि याचिकाकर्ता को अपनी परिवीक्षा अवधि सफलतापूर्वक उत्तीर्ण नहीं करने वाला माना जाए और उसकी सेवाओं को समाप्त कर दिया जाए।
समिति की उपरोक्त रिपोर्ट फुल कोर्ट के समक्ष रखी गई, जिसने 07.03.2022 को आयोजित अपनी बैठक में याचिकाकर्ता की सेवाओं को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने और इस बीच याचिकाकर्ता से न्यायिक कार्य वापस लेने का संकल्प लिया।
इस प्रकार, यह दावा किया गया कि चूंकि याचिकाकर्ता की ईमानदारी संदिग्ध थी। उनकी परिवीक्षा उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के परिणाम के अधीन थी, इसलिए उनकी सेवाओं को समाप्त करना उचित था। प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद न्यायालय ने हाईकोर्ट का प्रतिनिधित्व करने वाले तर्क को खारिज कर दिया कि एसीआर में दर्ज की गई संदिग्ध ईमानदारी केवल शिकायत पर आधारित नहीं थी यह कहते हुए कि यह तर्क कानून की नजर में मान्य नहीं है, क्योंकि उपरोक्त शिकायत के अलावा रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे बाद में स्वीकार किया गया, जिससे यह संकेत मिलता हो कि याचिकाकर्ता की ईमानदारी संदिग्ध थी।
उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता की वर्ष 2015-16 की एसीआर को अपग्रेड करने और सभी परिणामी लाभों के साथ उसे तत्काल प्रभाव से सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: प्रेम कुमार बनाम पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट, चंडीगढ़ और अन्य