ISIS पर आशंका जताने मात्र से IPC की धारा 153 के तहत उकसावे का मामला नहीं बनता: पटना हाईकोर्ट ने केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय को दी राहत

Amir Ahmad

23 Jun 2025 6:13 AM

  • ISIS पर आशंका जताने मात्र से IPC की धारा 153 के तहत उकसावे का मामला नहीं बनता: पटना हाईकोर्ट ने केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय को दी राहत

    पटना हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि किसी राजनीतिक प्रतिद्वंदी के जीतने पर किसी क्षेत्र में ISIS जैसे आतंकी संगठन का आधार बनने की आशंका व्यक्त करना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153 के तहत 'उकसावे' (Provocative Speech) की श्रेणी में नहीं आता।

    जस्टिस चंद्र शेखर झा की एकल पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) अररिया द्वारा संज्ञान लेकर समन जारी करने के आदेश को रद्द कर दिया। उन पर IPC की धारा 153 तथा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 (वर्गों के बीच वैमनस्य फैलाने) के तहत मामला दर्ज किया गया।

    मामला क्या था?

    9 मार्च, 2018 को अररिया लोकसभा उपचुनाव प्रचार के दौरान जनसभा में नित्यानंद राय द्वारा कथित तौर पर दिए गए बयान को लेकर यह मामला दर्ज किया गया। आरोप है कि उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रत्याशी सरफराज आलम को निशाना बनाते हुए कहा कि यदि वे चुनाव जीतते हैं तो अररिया ISIS का गढ़ बन जाएगा।

    FIR किसी प्रत्यक्ष प्रत्याशी द्वारा नहीं बल्कि प्रशासनिक अधिकारी के कहने पर कराई गई, जिसे मंत्री ने राजनीतिक साजिश करार दिया।

    कोर्ट की टिप्पणियां:

    कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि राय का बयान न तो किसी धर्म, जाति, समुदाय या भाषा पर आधारित था और न ही इसमें कोई अवैध कार्य किया गया। ऐसे में यह बयान IPC की धारा 153 के अंतर्गत 'Malignantly' (द्वेषपूर्ण) या 'Wantonly' (लापरवाही से उकसाने) की परिभाषा में नहीं आता।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता द्वारा कोई अवैध कार्य नहीं किया गया। किसी पार्टी के प्रत्याशी की जीत से ISIS का आधार बनने की आशंका व्यक्त करना, न तो दुर्भावनापूर्ण वक्तव्य है और न ही 'वांटन' (अकारण उत्तेजक) जैसा कि धारा 153 की व्याख्या में बताया गया।"

    कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ISIS एक आतंकवादी संगठन है लेकिन उसका किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।

    निष्कर्ष:

    कोर्ट ने पाया कि संज्ञान आदेश सतही और बिना न्यायिक सोच के पारित किया गया, इसलिए इसे रद्द कर दिया गया। साथ ही इसके तहत चल रही सभी कार्यवाहियां भी रद्द कर दी गईं।

    केस टाइटल: नित्यानंद राय @ नित्यानंद राय बनाम बिहार राज्य

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