गुरुद्वारा पटना साहिब में प्रबंधन समिति के नामांकन को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से हाईकोर्ट का इनकार

Amir Ahmad

23 March 2024 8:31 AM GMT

  • गुरुद्वारा पटना साहिब में प्रबंधन समिति के नामांकन को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से हाईकोर्ट का इनकार

    पटना हाईकोर्ट ने श्री तख्त हरिमंदिर जी पटना साहिब की देखरेख करने वाली प्रबंधक समिति में पटना के जिला न्यायाधीश द्वारा किए गए नामांकन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि याचिकाकर्ता, जो मुख्य रूप से धार्मिक स्थल के प्रबंधन से संबंधित हैं, वे हाशिए पर पड़े या दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, जिसके लिए अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

    चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस राजीव रॉय की खंडपीठ ने कहा,

    "रिट याचिका जनहित याचिका के रूप में दायर की गई। हमें इस पर विचार करने का कोई कारण नहीं मिला। याचिकाकर्ता धार्मिक स्थल के प्रबंधन से संबंधित हैं। यह नहीं कहा जा सकता है कि जिस समुदाय का संस्थान के मामलों और इसके प्रबंधन में भी हित है, वह या तो हाशिए पर है या दलित है, इसलिए इस न्यायालय को अन्य उपलब्ध उपायों को दरकिनार करते हुए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण विवेकाधीन उपाय लागू करने की आवश्यकता है।"

    खंडपीठ ने कहा,

    "याचिकाकर्ता सिख कलेक्टिव (सिख) है, जिसे समाज या संघ के रूप में रजिस्टर्ड नहीं बताया गया और उस परिस्थिति में इसे कानूनी इकाई नहीं माना जा सकता। इसके अलावा, प्रतिवादी तीन नामांकित व्यक्ति हैं। समुदाय से कोई भी प्रतिनिधि की हैसियत में नहीं है।"

    याचिकाकर्ता - सिख कलेक्टिव ने अपनी दलील में तर्क दिया कि जिला न्यायाधीश पटना को चुनाव समाप्त होने से पहले तीन नामांकन नहीं करने चाहिए, क्योंकि यह समिति के गठन को नियंत्रित करने वाले संविधान और उप-नियमों के प्रावधानों के विरुद्ध है। इससे समिति के सदस्यों के चुनाव की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को निराशा होगी।

    अपने फैसले में न्यायालय ने देखा कि संविधान और उप-नियम अनुलग्नक-1 में प्रस्तुत किए गए और नोट किया कि जिला न्यायाधीश द्वारा नामांकन उनकी पदेन क्षमता में हुआ। न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नामांकन अध्याय IV के खंड 9 के तहत किया जाता है और प्रबंध समिति में 15 सदस्य होते हैं, जिनमें से 14 विभिन्न निकायों द्वारा नामित होते हैं, जिनमें से तीन जिला न्यायाधीश द्वारा नामित होते हैं।

    इसके अतिरिक्त तीन सदस्यों का चुनाव पटना जिले के स्थानीय सिखों द्वारा किया जाता है तथा शेष सदस्य को 14 समिति सदस्यों द्वारा सहयोजित किया जाता है।

    न्यायालय ने संकेत दिया कि चुनाव के पश्चात नामांकन की कोई आवश्यकता नहीं है तथा बताया कि वर्तमान समिति के किसी भी सदस्य को रिट याचिका में शामिल नहीं किया गया।

    न्यायालय ने प्रथम दृष्टया पाया,

    "चुनाव के पश्चात नामांकन करने के लिए कोई अनिवार्यता नहीं है। इसके अतिरिक्त, वर्तमान समिति के किसी भी अन्य सदस्य को वर्तमान रिट याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया।"

    न्यायालय ने कहा,

    "हमें लगता है कि संविधान में जिला न्यायाधीश की भूमिका पदेन व्यक्ति होने के कारण वह उस भूमिका में कोई न्यायिक कार्य नहीं करते हैं, जहां तक ​​पटना साहिब के संविधान तथा उपनियमों का संबंध है। किसी भी पीड़ित व्यक्ति के लिए उपाय सिविल उपाय है, जिसमें समुदाय का भी प्रतिनिधित्व करना होगा।"

    इसी संस्था से संबंधित समान मुद्दे के संबंध में पूर्व न्यायालय के आदेश का हवाला दिया, जिसे न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका के रूप में लाया गया था। उस मामले में न्यायाधीशों ने चिंता व्यक्त की कि पटना के जिला न्यायाधीश के पद पर लगातार पदधारी विभिन्न मुकदमों के कारण मंदिर के संविधान और उपनियमों से जुड़ने के लिए अनिच्छुक uwx, जिनमें से कुछ ने जिला न्यायाधीश को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाया।

    इसके जवाब में अदालत ने टिप्पणी की,

    “हमें लगता है कि यह उन मुकदमों में से एक है, जिनका उल्लेख डेढ़ दशक पहले डिवीजन बेंच ने किया। समय बीतने के साथ स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया, जैसा कि हम देखते हैं, समान रूप से चिंता के साथ। फिर से जजों ने उम्मीद जताई और राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे उच्चतम स्तर से उचित आदेश प्राप्त करें और नए मुकदमे सहित संभावित तरीकों और साधनों की खोज करें, जिससे पटना साहिब में स्थित बहुत प्रसिद्ध और सम्मानित मंदिर के मामलों को कुशलतापूर्वक प्रबंधित किया जा सके, जिससे न केवल सिख समुदाय बल्कि पूरे राज्य और राष्ट्र के हित में काम किया जा सके।”

    न्यायालय ने आगे कहा,

    “हमें नहीं लगता कि डिवीजन बेंच द्वारा व्यक्त की गई पवित्र इच्छा का पालन किया गया। किसी भी स्थिति में हम यह नोटिस करने से नहीं चूक सकते कि न्यायाधीशों ने सीडब्ल्यूजेसी संख्या 18827/2018 में कोई सकारात्मक निर्देश पारित नहीं किया, जिसका निपटारा 07.12.2010 को हो चुका है।”

    वर्तमान रिट याचिका पर आते हुए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि उसे जनहित याचिका में जिला न्यायाधीश के आदेशों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला।

    न्यायालय ने गुरुवायूर देवस्वोम प्रबंध समिति बनाम सी.के. राजन (2003) 7 एससीसी 546 पर भरोसा करते हुए कहा कि जनहित याचिकाओं की रूपरेखा और जिन परिस्थितियों में संवैधानिक न्यायालय सक्रिय भूमिका निभाते हैं, उन्हें रेखांकित किया गया।

    न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण शक्ति का प्रयोग करने से मना करते हुए तथा रिट याचिका खारिज करते हुए कहा,

    "हमें उपरोक्त मामले में जनहित में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण शक्ति का प्रयोग करने का कोई अच्छा कारण नहीं मिला; जिसमें प्रस्तुत शिकायत को उचित सिविल फोरम में उठाया जाना चाहिए।"

    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसने केवल विवेकाधिकार अस्वीकार किया तथा नामांकन को वैध नहीं ठहराया, जिसके साथ यदि कोई व्यक्ति या निकाय पक्षपातपूर्ण है तो उसे उचित सिविल फोरम के समक्ष उठाना होगा।

    न्यायालय ने रिट याचिका को खारिज करते हुए निष्कर्ष निकाला,

    "जब ऐसी कार्यवाही शुरू की जाती है तो आवेदक के अधिकार क्षेत्र तथा ऐसी कार्यवाही की स्थिरता पर निर्णय लेने के लिए फोरम से संपर्क किया जाएगा; तथा यदि इन पहलुओं पर विचार किया जाता है, तो गुण-दोष पर निर्णय लिया जाएगा।"

    केस टाइटल- सिख कलेक्टिव बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

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