पटना हाईकोर्ट का सख्त रुख : छह दिन की अवैध हिरासत पर 2 लाख रुपये का मुआवज़ा, IG जेल को दिशानिर्देश जारी करने का आदेश
Amir Ahmad
17 Nov 2025 4:25 PM IST

पटना हाईकोर्ट ने अहम फैसले में राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह एक आरोपी को छह दिन तक अवैध रूप से हिरासत में रखने के लिए 2 लाख रुपये का मुआवज़ा दे।
अदालत ने माना कि यह घटना न केवल न्यायिक आदेशों की अवहेलना है, बल्कि सीधे-सीधे व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद और जस्टिस सौरेंद्र पांडेय की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। आरोपी बिहार निषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2016 के तहत गिरफ्तार था। 29 सितंबर 2025 को स्पेशल एक्साइज जज ने उसकी जमानत मंज़ूर की और रिहाई वारंट केंद्रीय कारा, गया भेज दिया गया। इसके बावजूद उसे 4 अक्टूबर 2025 तक जेल में ही रखा गया और वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में प्रस्तुत हुआ, जिससे साफ हुआ कि उसे छह दिन तक अवैध रूप से बंद रखा गया।
अवैध हिरासत की वजह पूछने पर जेल महानिरीक्षक (IG Prisons) ने सफाई दी कि दुर्गा पूजा अवकाश के कारण रिहाई में विलंब हुआ।अदालत ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह स्पष्ट रूप से अधिकारों का हनन है और यह प्रथा लगातार चली आ रही है, जिस पर रोक लगाना आवश्यक है।
अदालत ने कहा कि एक संवैधानिक न्यायालय होने के नाते वह मूक दर्शक नहीं रह सकता।
मुआवज़े की राशि तय करने के लिए अदालत ने पहले IG से सुझाव मांगा। उन्होंने मात्र 10,000 रुपये का प्रस्ताव रखा। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने जोरदार आपत्ति जताते हुए कहा कि यह मामला गंभीर संवैधानिक उल्लंघन का है और कम से कम 1 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाना चाहिए।
अदालत ने विभिन्न हाईकोर्ट के निर्णयों का उल्लेख करते हुए पाया कि छह दिन की गैर-कानूनी कैद एक गंभीर हनन है। इसलिए अदालत ने 2 लाख रुपये का मुआवज़ा तय किया।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यह राशि राज्य सरकार आरोपी को देगी लेकिन इसे बाद में उस जिम्मेदार अधिकारी से वसूल किया जाएगा, जिसकी लापरवाही से यह स्थिति उत्पन्न हुई। साथ ही, IG Prisons को दो सप्ताह के भीतर सभी जेल अधीक्षकों को विस्तृत दिशानिर्देश जारी करने का आदेश दिया गया ताकि भविष्य में किसी भी जेल में इस तरह की घटना दोबारा न हो।
अंत में अदालत ने कहा कि जेल अधीक्षकों द्वारा न्यायालय के आदेशों की अनदेखी और संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन की यह प्रवृत्ति तत्काल रोकी जानी चाहिए और याचिका को स्वीकार करते हुए स्पष्ट निर्देश जारी किए।

