पटना हाईकोर्ट ने वकीलों पर हमले के मामले में DB-3 की स्वतः संज्ञान लेने की क्षमता पर उठाए सवाल, जांच पर मांगी रिपोर्ट
Amir Ahmad
10 Sept 2025 12:56 PM IST

पटना हाईकोर्ट ने बुधवार को DPS पटना के बाहर दो वकीलों पर हुए कथित हमले के मामले में स्वतः संज्ञान लेने वाली डिवीज़न बेंच-3 की अधिकारिता पर सवाल खड़े किए।
अदालत ने कहा कि जिस विषय पर किसी बेंच को रोस्टर ही आवंटित नहीं है। उस पर वह स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई कैसे कर सकती है।
यह मामला 9 सितंबर को जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद और जस्टिस सौरेंद्र पांडे की खंडपीठ द्वारा क्रिमिनल रिट स्वतः संज्ञान के रूप में दर्ज किया गया, जो बुधवार को एक्टिंग चीफ जस्टिस पीबी बजंथ्री और जस्टिस आलोक कुमार सिन्हा की खंडपीठ के समक्ष आया।
सुनवाई की शुरुआत में ही एक्टिंग चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि पक्षकार भले ही किसी भी बेंच के समक्ष मामले का उल्लेख कर सकते हैं लेकिन मूल प्रश्न यह है कि बिना रोस्टर वाली बेंच न्यायिक संज्ञान लेकर उसे आगे कैसे बढ़ा सकती है।
राज्य सरकार की ओर से पेश एडवोकेट जनरल ने भी इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि यह मामला कल (मंगलवार) बेंच के समक्ष कैसे आया।
उन्होंने बताया कि 9 सितंबर को दोपहर 1:30 बजे वकील, जिनमें कथित पीड़ित भी शामिल थे, उनसे मिले थे और उन्होंने तुरंत ही सीनियर पुलिस अधीक्षक से बात की थी।
उनका कहना था कि इस प्रकार के अपराधों की जांच पुलिस का क्षेत्राधिकार है। यदि शिकायतकर्ता को संतोष न हो तो उसके पास मजिस्ट्रेट के समक्ष विधिक उपाय उपलब्ध हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी विशेष ढंग से जांच कराने के लिए रिट क्षेत्राधिकार का सहारा नहीं लिया जा सकता।
एक्टिंग चीफ जस्टिस ने भी अदालत की सीमाओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि अदालत के पास पुलिस को गिरफ्तारी का निर्देश देने का अधिकार नहीं है और न ही ऐसा कोई आदेश पारित किया जाएगा।
इस बीच याचिकाकर्ता पक्ष के वकील ने दलील दी कि 9 सितंबर को दोपहर 3:30 बजे तक FIR दर्ज नहीं की गई थी और महिला वकील के साथ अभद्रता भी हुई थी। इसलिए मामले को अदालत के संज्ञान में लाना आवश्यक था। उन्होंने आग्रह किया कि केवल निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाए।
अदालत ने इस तर्क पर सवाल उठाया कि अभी से कैसे मान लिया जा रहा है कि जांच निष्पक्ष नहीं होगी। खंडपीठ ने कहा कि प्रशासन को कार्रवाई करने के लिए समय दिया जाना चाहिए।
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि इस समय शिकायत स्पष्ट नहीं है, क्योंकि सीनियर एडवोकेट द्वारा कोई औपचारिक आवेदन भी प्रस्तुत नहीं किया गया।
इसके साथ ही अदालत ने निर्देश दिया कि अगली सुनवाई पर वकीलों को पहले यह स्पष्ट करना होगा कि क्या डिवीज़न बेंच-3 जिसके पास इस विषय का रोस्टर ही नहीं था, सीनियर एडवोकेट की मौखिक प्रस्तुति के आधार पर स्वतः संज्ञान लेकर आगे बढ़ सकती थी और क्या इसके लिए एक्टिंग चीफ जस्टिस की प्रशासनिक स्वीकृति लेनी चाहिए थी। साथ ही यह भी स्पष्ट करना होगा कि वास्तव में इस मामले में किस प्रकार की राहत की मांग की जा रही है।
अदालत ने जांच अधिकारी द्वारा अब तक उठाए गए कदमों की अद्यतन रिपोर्ट भी अगली तारीख पर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया और मामले को एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।

