पटना हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति की सजा रद्द की
Amir Ahmad
15 Oct 2024 3:36 PM IST
2019 में 5 वर्षीय लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के लिए व्यक्ति को दोषी ठहराने वाले आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति देते हुए पटना हाईकोर्ट ने कहा कि कथित घटना को देखने वाले और अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन करने वाले बच्चे के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं थे, क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने उसके बयान से पहले बच्चे की साक्ष्य देने की क्षमता का ट्रायल नहीं किया था।
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष कथित अपराधों के मूलभूत तथ्यों को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है। साथ ही कहा कि बाल गवाह के कमजोर साक्ष्य के आधार पर व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
जस्टिस जितेंद्र कुमार और जस्टिस आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा,
"उपर्युक्त साक्ष्यों के अवलोकन से हम स्पष्ट रूप से पाते हैं कि अभियोजन पक्ष के मामले को न तो पीड़िता और न ही उसके माता-पिता ने अपीलकर्ता के खिलाफ समर्थन दिया। पीड़िता के निजी अंग पर चोट पाई गई लेकिन क्या यह चोट अपीलकर्ता द्वारा बलात्कार के कारण हुई। यह अभियोजन पक्ष द्वारा उचित संदेह से परे साबित नहीं किया जा सका। पीड़िता या उसके माता-पिता के साक्ष्य में अपीलकर्ता के खिलाफ एक भी शब्द नहीं है।”
एक बाल गवाह के बयान के संबंध में हाईकोर्ट ने उसके साक्ष्य को देखने के बाद कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि गवाह से शपथ पर पूछताछ की गई। साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 के तहत उसकी गवाही देने की क्षमता का परीक्षण किए बिना।
प्रावधान में कहा गया कि सभी व्यक्ति गवाही देने के लिए सक्षम होंगे, जब तक कि न्यायालय यह न समझे कि उन्हें उनसे पूछे गए प्रश्नों को समझने या कम उम्र, अत्यधिक बुढ़ापे, बीमारी, चाहे शरीर या दिमाग की, या इसी तरह के किसी अन्य कारण के कारण प्रश्नों के तर्कसंगत उत्तर देने से रोका गया।
इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा,
"एक बाल गवाह ने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया लेकिन इसके लिए कोई सबूत नहीं है। गवाही देने से पहले गवाही देने की क्षमता के बारे में ट्रायल कोर्ट द्वारा उसके ट्रायल के अभाव में, उसके साक्ष्य पर भरोसा नहीं किया जा सकता था। इसके अलावा पीड़िता और उसके माता-पिता के मुंह से किसी भी तरह के दोषपूर्ण साक्ष्य के अभाव में अपीलकर्ता को एक बाल गवाह के कमजोर साक्ष्य के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता था।”
अपील एडिशनल जिला जज-सह-स्पेशल जज (POCSO) भागलपुर के फैसले के खिलाफ दायर की गई, जिसमें व्यक्ति को धारा 376 IPC और धारा 6 POCSO Act के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को 1 लाख रुपये के जुर्माने के साथ 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।
अक्टूबर 2019 में बच्ची की मां द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई। जांच के बाद कानून की संबंधित धाराओं के तहत आरोप तय किए गए। सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता ने खुद को निर्दोष बताया और दावा किया कि उसे झूठा फंसाया गया। अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य में उचित संदेह से परे कथित अपराध में उसकी संलिप्तता को स्थापित करने के लिए पर्याप्त सामग्री का अभाव था।
वकील ने दावा किया कि बलात्कार के आरोपों का समर्थन करने के लिए आवश्यक मूलभूत तथ्य अभियोजन पक्ष द्वारा साबित नहीं किए गए। उन्होंने तर्क दिया कि दोषसिद्धि का विवादित निर्णय और सजा का आदेश कानून में टिकने योग्य नहीं था और इसे पलट दिया जाना चाहिए।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों के वकील ने कहा कि चुनौती दिए जा रहे फैसले में कोई अवैधता या कमी नहीं है। उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता को सही तरीके से दोषी ठहराया गया और उचित सजा दी गई।
हाईकोर्ट ने कहा कि हालांकि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि कथित घटना की तारीख पर लड़की की उम्र पांच साल थी। फिर भी अभियोजन पक्ष को POCSO Act के प्रावधानों के आवेदन के लिए अपीलकर्ता द्वारा बलात्कार के कथित अपराध के संबंध में मूलभूत तथ्य साबित करने की आवश्यकता है।
बयानों पर ध्यान देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सभी तीन बचाव पक्ष के गवाहों ने बयान दिया कि अपीलकर्ता को इंफॉर्मेंट द्वारा बाहरी विचार के लिए झूठा फंसाया गया।
न्यायालय ने आगे टिप्पणी की,
"हम पाते हैं कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता द्वारा पीड़िता के खिलाफ कथित बलात्कार के मूल तथ्यों को उचित संदेह से परे साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है। इस प्रकार, POCSO Act या IPC की धारा 376 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।"
व्यक्ति की अपील स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने उसे रिहा करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: प्रमोद मंडल बनाम बिहार राज्य