जिस अधिकारी के निर्णय को ही चुनौती दी जा रही है, उसकी रिपोर्ट के आधार पर अपील पर निर्णय लेना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: पटना हाइकोर्ट

Amir Ahmad

22 March 2024 9:27 AM GMT

  • जिस अधिकारी के निर्णय को ही चुनौती दी जा रही है, उसकी रिपोर्ट के आधार पर अपील पर निर्णय लेना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: पटना हाइकोर्ट

    पटना हाइकोर्ट ने आंगनवाड़ी सेविका को हटाने से संबंधित मामले में नए सिरे से जांच का निर्देश दिया, जिसमें कहा गया कि जिस अधिकारी के निर्णय को ही चुनौती दी जा रही है, उसकी रिपोर्ट के आधार पर अपील पर निर्णय लेना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

    इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस डॉ. अंशुमान ने कहा,

    "पक्षों की सुनवाई और दलीलों पर गौर करने के बाद इस न्यायालय को पता चला कि मूल आदेश जिला कार्यक्रम अधिकारी, बक्सर द्वारा पारित किया गया, जिसे जिला मजिस्ट्रेट बक्सर के समक्ष चुनौती दी गई। जिला मजिस्ट्रेट, बक्सर ने अंतिम आदेश पारित करने से पहले जिला कार्यक्रम अधिकारी, बक्सर से स्वयं रिपोर्ट मांगी है, जिनके आदेश को जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष चुनौती दी गई। न्यायालय ने इस प्रकार की स्थिति के विकास को देखते हुए पूर्वाग्रह के सिद्धांत के साथ-साथ प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के सिद्धांत के अनुसार निर्णय की जांच की है।”

    जस्टिस अंशुमान ने कहा,

    "इस न्यायालय की राय में अपील की सुनवाई के समय जिला मजिस्ट्रेट को उन लोगों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से पूछताछ करनी चाहिए, जिनके आदेश को उनके समक्ष चुनौती दी गई।"

    उपरोक्त निर्णय जिला मजिस्ट्रेट बक्सर द्वारा आंगनबाड़ी अपील में पारित आदेश रद्द करने के लिए दायर रिट याचिका में आया, जिसके द्वारा अपीलीय न्यायालय ने जिला कार्यक्रम अधिकारी आई.सी.डी.एस. बक्सर द्वारा शिकायत मामले में पारित आदेश की पुष्टि की, जिसके तहत याचिकाकर्ता को आंगनबाड़ी सेविका के पद से हटा दिया गया। याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता गरीब महिला है और 1990 से आंगनबाड़ी सेविका के पद पर काम कर रही थी और उक्त अवधि के दौरान, उसके खिलाफ एक भी शिकायत नहीं है।

    इसके अलावा यह प्रस्तुत किया गया कि अपीलीय निर्णय में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की घोर अवहेलना की गई, क्योंकि जिला मजिस्ट्रेट ने केवल जिला कार्यक्रम अधिकारी, बक्सर की रिपोर्ट के आधार पर निर्णय दिया, जिन्होंने शुरू में याचिकाकर्ता के खिलाफ फैसला सुनाया। उल्लेखनीय रूप से याचिकाकर्ता द्वारा चुनौती दिए गए मूल निर्णय से जुड़े लोगों के अलावा अन्य संबंधित व्यक्तियों से कोई इनपुट नहीं मांगा गया।

    राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति वर्ष 1999 में हुई, लेकिन निरीक्षण वर्ष 2017 में किया गया, जब 2016 का नियम अस्तित्व में है और उक्त नियम के अनुसार, जिला मजिस्ट्रेट अपीलीय प्राधिकारी हैं। उनका आदेश अंतिम है, इसलिए किसी भी हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।

    तदनुसार, न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट, बक्सर द्वारा आंगनबाड़ी अपील में पारित आदेश रद्द किया और जिला मजिस्ट्रेट, बक्सर को आदेश की प्रति प्रस्तुत करने की तिथि से 90 दिनों के भीतर जिला कार्यक्रम अधिकारी, बक्सर के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से जांच करने के बाद मामले में एक नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया।

    उपरोक्त अवलोकन और निर्देश के साथ रिट याचिका का निपटारा किया गया।

    केस टाइटल- रीता देवी बनाम बिहार राज्य और अन्य

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