IPC की धारा 307 | आरोप तय करने के लिए इरादा या ज्ञान का प्रत्यक्ष प्रमाण आवश्यक नहीं, परिस्थितियों से अनुमान लगाया जा सकता है: पटना हाईकोर्ट

Amir Ahmad

1 May 2025 12:37 PM IST

  • IPC की धारा 307 | आरोप तय करने के लिए इरादा या ज्ञान का प्रत्यक्ष प्रमाण आवश्यक नहीं, परिस्थितियों से अनुमान लगाया जा सकता है: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 307 (हत्या के प्रयास) के तहत आरोप तय करने के चरण पर यह आवश्यक नहीं है कि अभियुक्त के मृत्यु करने के इरादे या ज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध किया जाए। इसके बजाय, यदि उपलब्ध साक्ष्यों से इरादा या ज्ञान परिस्थितियों से अनुमानित हो सकता है तो वह पर्याप्त है।

    जस्टिस विवेक चौधरी ने इस मामले में कहा,

    “अब सवाल यह उठता है कि इरादे या ज्ञान को कैसे सिद्ध किया जा सकता है। आरोप तय करने की प्रारंभिक अवस्था में और यहां तक कि मुकदमे के दौरान भी प्रत्यक्ष साक्ष्य से अभियुक्त के इरादे या ज्ञान को सिद्ध करना बहुत कठिन, यदि असंभव नहीं, होता है, क्योंकि यह दोषपूर्ण मानसिक अवस्था से उत्पन्न होता है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हो सकता। इरादे को परिस्थितियों से पीड़ित को लगी चोट की प्रकृति से, हमले के तरीके से और उपयोग किए गए हथियार की प्रकृति से समझा जा सकता है।”

    उन्होंने आगे कहा,

    “ज्ञान को उस कार्य से अनुमानित किया जा सकता है जिसे अभियुक्त ने अंजाम देने की कोशिश की, लेकिन जो सफल नहीं हुआ। IPC की धारा 307 के अंतर्गत अभियोग सिद्ध करने के लिए यह भी आवश्यक नहीं है कि पीड़ित को चोट आई हो। यदि अभियोजन यह सिद्ध कर सके कि अभियुक्त ने ऐसा कोई स्पष्ट कार्य किया जो, यदि सफल होता, तो पीड़ित की हत्या का कारण बनता, तो अभियुक्त को धारा 307 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है।”

    मामले की पृष्ठभूमि:

    यह निर्णय एक क्रिमिनल रिवीजन याचिका में दिया गया, जिसमें 6 फरवरी, 2019 को अभियुक्तों ने कथित रूप से भूमि विवाद को लेकर सूचक के घर में घुसपैठ की, केस वापस लेने की धमकी दी और परिवार के कुछ सदस्यों के साथ मारपीट की। आरोप है कि अंकित दुबे ने अपने पिता शत्रुघ्न दुबे के निर्देश पर गोली चलाई जिससे सूचक की बाईं गाल पर गोली लगी और जबड़े की हड्डी टूट गई।

    याचिकाकर्ता ने सीवान के एडिशनल सेशन जज द्वारा पारित डिस्चार्ज आदेश को चुनौती दी जिसमें कहा गया कि IPC की धारा 307 के तहत आरोप तय करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं। जबकि पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से दिखाती है कि गोली लगने से जबड़े की हड्डी में फ्रैक्चर हुआ।

    हाईकोर्ट का अवलोकन:

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "चौंकाने वाली बात यह है कि एडिशनल सेशन जज-IX, सीवान ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी-X को 'आर्म्स एक्ट की धारा 27' के तहत आरोप तय करने का निर्देश दिया, जिससे यह स्पष्ट है कि उन्होंने माना कि घटना में आग्नेयास्त्र का प्रयोग हुआ। बावजूद इसके उन्होंने मेडिकल रिपोर्ट को नजरअंदाज किया।"

    कोर्ट ने यह भी कहा कि IPC की धारा 307 के अलावा, पीड़िता को गोली लगने से जबड़े में फ्रैक्चर होने के कारण IPC की धारा 326 के तहत भी आरोप तय किया जा सकता था, लेकिन इसके बजाय जज ने केवल IPC की धारा 323 (साधारण मारपीट) के तहत आरोप तय करने का निर्देश दिया, जो गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण है।

    कोर्ट ने टिप्पणी की,

    "विवादित आदेश न केवल अवैध है, बल्कि पूरी तरह से मनमाना है।”

    न्यायालय का निर्णय:

    इस आधार पर हाईकोर्ट ने आपराधिक पुनर्विचार याचिका स्वीकार करते हुए डिस्चार्ज आदेश रद्द कर दिया और अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, सीवान को निर्देश दिया कि वह रिकॉर्ड एडिशनल सेशन जज-IX, सीवान को भेजें ताकि IPC की धारा 307 के तहत आरोप तय किए जा सकें।

    केस टाइटल: पुष्पा देवी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

    Next Story