स्थायी निष्कासन 'शैक्षणिक और व्यावसायिक मृत्यु' समान: पटना हाईकोर्ट ने MBBS स्टूडेंट्स की सज़ा को कम किया
Amir Ahmad
8 Oct 2025 4:17 PM IST

पटना हाईकोर्ट ने परीक्षाओं में प्रतिरूपण के कारण स्थायी निष्कासन की सज़ा झेल रहे पांच MBBS स्टूडेंट को राहत देते हुए आर्यभट्ट ज्ञान यूनिवर्सिटी की कार्रवाई को अत्यधिक कठोर और अत्यंत असंगत करार दिया।
जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा की पीठ ने कहा कि ऐसी चरम कार्रवाई युवा स्टूडेंट्स पर शैक्षणिक और व्यावसायिक मृत्यु थोपने के समान है और यूनिवर्सिटी प्रशासन ने स्टूडेंट्स में सुधार की संभावना को नज़रअंदाज़ कर दिया।
जस्टिस सिन्हा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जहां शैक्षणिक अनुशासन बनाए रखना सर्वोपरि है, वहीं स्टूडेंट्स को सुधार और पुनर्वास का अवसर देने के समान रूप से महत्वपूर्ण लक्ष्य को पूरी तरह से बाहर नहीं किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं पर जिन्होंने मेरिट के आधार पर प्रवेश लिया था और अपने पाठ्यक्रम का एक बड़ा हिस्सा पूरा कर लिया था, उन पर प्रतिरूपण का आरोप था जिसके बाद अनुचित साधन समिति की सिफारिश पर विश्वविद्यालय ने प्रवेश रद्द करने और स्थायी निष्कासन की अधिकतम सज़ा दी थी।
कोर्ट ने पाया कि उपकुलपति ने बिना कोई कारण दर्ज किए या स्वतंत्र विवेक का प्रयोग किए समिति की सिफारिश को यांत्रिक रूप से स्वीकार कर लिया था।
न्यायालय ने कहा कि यह विवेक का अभाव अधिकतम सज़ा थोपने के साथ मिलकर, न्यायिक हस्तक्षेप की माँग करता है। आनुपातिकता के सिद्धांत का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ताओं पर लगाया गया स्थायी निष्कासन उनके एडमिशन रद्द करने के साथ मिलकर चरम कठोरता की कार्रवाई है। यह सुधार के सभी रास्ते बंद कर देता है और एक ही झटके में युवा स्टूडेंट्स के शैक्षणिक भविष्य को समाप्त कर देता है।
कोर्ट ने ऐसी सज़ा की तुलना सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग की अस्वीकृति से करते हुए कहा कि किसी स्टूडेंट का स्थायी निष्कासन भी इसी तरह शैक्षणिक और व्यावसायिक मृत्यु के समान है।
न्यायालय ने यह देखते हुए कि उपकुलपति विवेक का प्रयोग करने में विफल रहे हैं। स्वयं सज़ा को संशोधित कर दिया।
भावेश कुमार भास्कर और अभिषेक कुमार (फाइनल ईयर के स्टूडेंट) उनकी सज़ा को उपकुलपति के आदेश की तारीख से तीन साल के लिए निष्कासन में बदल दिया गया और उनके फाइनल ईयर के परिणाम रोके रखे जाएंगे।
अफजल आज़ाद और आशीष रंजन (तीसरे वर्ष के स्टूडेंट): उनके परीक्षा परिणाम रोके रखे जाएंगे और वे उसी तारीख से तीन साल के लिए निष्कासित रहेंगे।
विशाल कुमार (MBBS और इंटर्नशिप पूरी कर चुके): कोर्ट ने निर्देश दिया कि उन्हें दो साल तक डिग्री प्रदान नहीं की जाएगी। उन्हें इस अवधि की समाप्ति से पहले यूनिवर्सिटी को 5 लाख का जुर्माना देना होगा।
निष्कर्ष में जस्टिस सिन्हा ने स्टूडेंट को चेतावनी दी कि वे इस संशोधन को नरमी न समझें, क्योंकि चिकित्सा पेशे में ईमानदारी और करुणा की उच्च मांग होती है।
कोर्ट ने प्रत्येक याचिकाकर्ता को तीन महीने के भीतर यूनिवर्सिटी को मुकदमे की लागत के रूप में 25,000 का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।

