पहले जांच अधिकारी की गवाही न होना अभियोजन के लिए घातक नहीं, यदि घटना स्थल अन्य साक्ष्यों से साबित हो: पटना हाईकोर्ट

Amir Ahmad

4 Dec 2025 1:13 PM IST

  • पहले जांच अधिकारी की गवाही न होना अभियोजन के लिए घातक नहीं, यदि घटना स्थल अन्य साक्ष्यों से साबित हो: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि यदि किसी आपराधिक मामले में घटना स्थल को अन्य साक्ष्यों के माध्यम से साबित किया जा सकता है तो पहले जांच अधिकारी (IO) की गवाही न होना अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक नहीं होगा।

    जस्टिस आलोक कुमार पांडे की सिंगल बेंच भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304B (दहेज मृत्यु) के तहत दोषसिद्धि और दस साल के कठोर कारावास की सजा के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी।

    तथ्यों के अनुसार शिकायतकर्ता की बेटी की शादी अपीलकर्ता से 28.03.2014 को हुई। आरोप था कि शादी के लगभग छह महीने बाद अपीलकर्ता और अन्य ससुराल वालों ने दहेज के रूप में मोटरसाइकिल और 2,50,000 की मांग की और शिकायतकर्ता की बेटी को क्रूरता का शिकार बनाया। बाद में मकान की छत डलवाने और अपीलकर्ता के विदेश यात्रा के लिए 2,50,000 नकद की और मांग की गई जिसका पीड़िता ने विरोध किया।

    13.07.2018 को दोपहर करीब 2.00 बजे शिकायतकर्ता अपनी बेटी के ससुराल गए और उसे एक चारपाई पर मृत पाया। ससुराल पक्ष के सभी सदस्य कथित तौर पर घर से फरार थे। अपीलकर्ता ने दावा किया कि यह घटना आत्महत्या का मामला था। अपीलकर्ता ने विशेष रूप से यह तर्क दिया कि पहले जांच अधिकारी की गवाही न होने के कारण अभियोजन पक्ष घटना स्थल को साबित नहीं कर पाया और यह अभियोजन मामले के लिए घातक है।

    हाईकोर्ट ने दोहराया कि IPC की धारा 304B के तहत दोषसिद्धि के लिए यह सिद्ध होना आवश्यक है कि महिला की मृत्यु जलने शारीरिक चोट या सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा हुई हो। इसके साथ ही यह भी सिद्ध करना होगा कि मृत्यु विवाह के सात साल के भीतर हुई हो। तीसरा तत्व यह है कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले उसे उसके पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न का शिकार बनाया गया हो, और चौथा ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न दहेज की मांग के संबंध में हुई हो।

    अदालत ने गौर किया कि शादी 2014 में हुई और मृत्यु विवाह के पांच साल के भीतर हुई जो विवादित नहीं था। पंचनामा और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से स्पष्ट था कि मृत्यु सामान्य परिस्थितियों में नहीं हुई। FIR में लगातार दहेज की मांगें (मोटरसाइकिल और नकद) दर्ज थीं।

    कोर्ट ने टिप्पणी की:

    “जिन मामलों में यह सिद्ध हो जाता है कि यह न तो प्राकृतिक मृत्यु थी और न ही आकस्मिक मृत्यु,तो स्पष्ट निष्कर्ष यही निकलता है कि यह अप्राकृतिक मृत्यु थी चाहे वह हत्या हो या आत्महत्या। हालांकि, यह मानते हुए भी कि यह आत्महत्या का मामला है तब भी यह अप्राकृतिक परिस्थितियों में हुई मृत्यु होगी। ऐसे मामले में भी IPC की धारा 304(B) आकर्षित होती है।”

    हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पहले जांच अधिकारी की गवाही न होने से बचाव पक्ष को गंभीर पूर्वाग्रह हुआ, क्योंकि घटना का प्रारंभिक स्थान साबित नहीं हो सका।

    कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि दूसरे जांच अधिकारी की गवाही ली गई, और घटना स्थल को सभी गवाहों द्वारा अन्यथा सिद्ध किया गया। कोर्ट ने कहा कि घटना स्थल पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि यह स्पष्ट है कि मृत्यु अपीलकर्ता के घर पर हुई थी।

    कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि कई मामलों में जहां जांच अधिकारी की भी गवाही नहीं ली गई, वहां अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता।

    हाईकोर्ट ने पूर्व के फैसलों पर अपीलकर्ता की निर्भरता को वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से अलग बताते हुए अस्वीकार कर दिया।

    अंततः हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि और सजा बरकरार रखी और आपराधिक अपील खारिज कर दी।

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