शिक्षा का व्यावसायीकरण न हो: पटना हाइकोर्ट ने प्राइवेट स्कूल फीस रेगुलेट करने वाला कानून बरकरार रखा

Amir Ahmad

2 Feb 2024 7:48 AM GMT

  • शिक्षा का व्यावसायीकरण न हो: पटना हाइकोर्ट ने प्राइवेट स्कूल फीस रेगुलेट करने वाला कानून बरकरार रखा

    पटना हाइकोर्ट ने एसोसिएशन ऑफ इंडिपेंडेंट स्कूल्स बिहार द्वारा दायर रिट आवेदन खारिज करते हुए बिहार के प्राइवेट स्कूल फीस रेगुलेट एक्ट, 2019 की संवैधानिकता की पुष्टि की।

    रिट आवेदन खारिज करते हुए हाइकोर्ट ने कहा कि सरकार मुनाफाखोरी को रोकने के लिए फीस को रेगुलेट कर सकती है और राज्य सरकार को राजस्थान के फीस विनियमन अधिनियम (Rajasthan's Fees Regulation Act) के प्रावधानों को अपनाने का निर्देश दिया।फीस विनियमन अधिनियम 2019 (Fee Regulation Act, 2019) सभी निजी और गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को पिछले शैक्षणिक वर्ष में इकट्ठा की गई फीस के 7% से अधिक फीस बढ़ाने से रोक लगाता है।

    चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस राजीव रॉय की खंडपीठ ने कहा

    “यह सच है, विषय कानून में विभिन्न कारकों का आकलन करने के लिए कोई दिशानिर्देश निर्धारित नहीं हैं, जो उचित फीस के निर्धारण की ओर ले जाएंगे, जो धारा 8 में उपलब्ध है। राजस्थान अधिनियम के नियमों में दिए गए अतिरिक्त कारकों से बचाव किया गया। दिशानिर्देशों की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप बनाए गएअधिनियम को वास्तव में अमान्य नहीं किया जा सकता। विशेष रूप से रेगुलेशन की प्रकृति में यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कि शिक्षा का कमरसालइजेशन न हो और इसे केवल मुनाफाखोरी के साधन तक सीमित न किया जाए।"

    “राज्य सरकार को विषय अधिनियम के तहत नियम बनाने की पर्याप्त शक्ति दी गई, जो आज तक नहीं बनाई गई। राज्य सरकार को नियम बनाने का निर्देश देना पर्याप्त होगा और तब तक राजस्थान अधिनियम और नियमों से अपनाई जाने वाली फीस निर्धारित करने के कारकों का पालन किया जाएगा।”

    याचिकाकर्ता एसोसिएशन ऑफ इंडिपेंडेंट स्कूल्स बिहार राज्य में निजी स्कूलों का संघ राज्य द्वारा कानून के माध्यम से किए गए फीस नियामक उपाय से व्यथित है जैसा कि फीस विनियमन अधिनियम 2019 से स्पष्ट है।

    याचिकाकर्ताओं ने फीस विनियमन अधिनियम की धारा 3, 4 और 5 को अधिकारहीन घोषित करने की मांग की और क्षेत्रीय उप निदेशक शिक्षा विभाग, पटना द्वारा जारी पत्र दिनांक 08-11-2019 रद्द करने की भी प्रार्थना की, जिसमें पटना के भीतर निजी स्कूलों को पिछले शैक्षणिक वर्ष से लागू छात्रों से प्राप्त फीस में 7% से अधिक की वृद्धि नही करने के लिए निर्देश दिया गया।

    क्षेत्रीय उपनिदेशक द्वारा जारी निर्देश के संबंध में अन्य खंडपीठ द्वारा दिनांक 19-12-2019 के आदेश द्वारा यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया गया।

    न्यायालय ने कहा,

    ''उक्त निर्देश के आधार पर फीस विनियमन अधिनियम (Fee Regulation Act ) निष्क्रिय बना हुआ और अब तक क्षेत्रीय उप निदेशक के संचार के खिलाफ चुनौती टिक नहीं सकती, क्योंकि निर्देश स्वयं ही काम कर चुका है। हम खुद को सीमित रखेंगे। प्रावधानों के अधिकारेतर होने के आधार पर उठाया गया।"

    सीनियर वकील बिंध्याचल सिंह ने तर्क दिया कि फीस वृद्धि पर 7% की सीमा लगाना स्वाभाविक रूप से मनमाना है। उन्होंने निजी स्कूलों के अनुरोधों के मूल्यांकन में फीस नियामक समिति (FRC) के लिए स्पष्ट दिशानिर्देशों की अनुपस्थिति पर प्रकाश डाला। साथ ही सुझाव दिया कि फीस राशि निर्धारित करने में स्कूल के ग्रामीण या शहरी स्थान जैसे कारकों पर विचार किया जाना चाहिए।

    वकील विंध्याचल सिंह ने तर्क दिया कि FRC के पास फीस निर्धारण के लिए विशिष्ट दिशानिर्देशों का अभाव है, जिसके पास अनियंत्रित शक्ति है, जिससे निजी स्कूलों के प्रति पूर्वाग्रह पैदा होने और बच्चों की शिक्षा खतरे में पड़ने का खतरा है। भले ही माता-पिता निर्धारित फीस का भुगतान करने को तैयार हों। उन्होंने वार्षिक वृद्धि को 7% तक सीमित करने वाले विधायी प्रावधान की आलोचना करते हुए कहा कि एक्ट की धारा 4(4) और 4(5) असंगत हैं और अस्पष्टता पैदा करते हैं।

    सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि शैक्षणिक संस्थानों, विशेषकर अल्पसंख्यक संस्थानों की वित्तीय स्वायत्तता निर्विवाद है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये निर्णय सीधे वर्तमान मामले पर लागू होते हैं।

    वकील सिंह ने जोर देकर कहा कि फीस विनियमन भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) का उल्लंघन करता है। FRC के लिए दिशानिर्देशों की अनुपस्थिति के अलावा उन्होंने अपीलीय उपाय की कमी की ओर भी इशारा किया। इसके अतिरिक्त सिंह ने राजस्थान राज्य बनाम भारतीय स्कूल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें प्रश्नगत कानून द्वारा केंद्रीय स्कूल शिक्षा बोर्ड के नियामक तंत्र पर अतिक्रमण पर प्रकाश डाला गया।

    न्यायालय की टिप्पणी

    न्यायालय की राय थी कि यह मुद्दा पूरी तरह से इंडियन स्कूल में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कवर होता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "जो कानून इंडियन स्कूल में विचार के लिए आया, अगर उसकी तुलना मौजूदा कानून से की जाए तो इस मामले में उठाए गए आधारों का समाधान हो जाएगा।"

    कोर्ट ने देखा कि भारतीय स्कूल मे राजस्थान स्कूल फीस का विनियमन अधिनियम, 2016 राजस्थान अधिनियम ने स्कूल स्तरीय फीस कमेटी (SLFC) का गठन किया, जो स्कूल के भीतर गठित होने वाली आंतरिक समिति है।

    इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि बिहार का फीस रेगुलेशन कानून लगभग राजस्थान जैसा ही है, जिसे 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक ठहराया गया।

    कोर्ट ने कहा कि राजस्थान अधिनियम ने स्कूल स्तरीय फीस कमेटी (SLFC) का गठन किया, जो स्कूल के भीतर गठित होने वाली आंतरिक कमेटी है।

    न्यायालय ने आगे कहा कि फीस लगाए जाने के संबंध में प्रबंधन का प्रस्ताव शैक्षणिक वर्ष शुरू होने से कम से कम छह महीने पहले SLFC के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है और फीस केवल की मंजूरी से ही लगाया जा सकता है। SLFC के पास नए सिरे से फीस तय करने का भी अधिकार होगा।

    हालांकि वर्तमान मामले में चुनौती दिए गए विषय कानून में न्यायालय ने पाया कि कोई SLFC नहीं है, जैसा कि राजस्थान राज्य में गठित किया गया, जो स्कूल के भीतर आंतरिक कमेटी थी।

    वास्तव में इंडियन स्कूल में प्रबंधन ने तर्क दिया कि समिति में शिक्षकों के होने से उचित प्रशासन में बाधा उत्पन्न होगी, क्योंकि नामांकित शिक्षक माता-पिता के साथ जुड़ सकते हैं। कोर्ट ने बताया कि किस तर्क को कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया।

    न्यायालय ने कहा,

    ''वर्तमान अधिनियम की योजना को राजस्थान अधिनियम के साथ तुलना करते हुए यह पाया जाना चाहिए कि विषय अधिनियम में उल्लिखित प्रक्रिया को प्रभावित करने वाली कोई मनमानी नहीं है। जबकि राजस्थान अधिनियम में स्कूल को प्रत्येक वर्ष की शुरुआत में अपनी आंतरिक समिति 'SLFC' से संपर्क करने की आवश्यकता होती है। चाहे विषय अधिनियम में वृद्धि हो या नहीं प्रबंधन को फीस बढ़ाने की स्वायत्तता दी गई है। हर साल इसे पिछले वर्ष लगाए गए शुल्क के 7% से कम तक सीमित रखा जाएगा।''

    कोर्ट ने कहा,

    “इस परिप्रेक्ष्य में देखे जाने पर राजस्थान अधिनियम में स्कूल की आंतरिक समिति द्वारा किए गए किसी भी अनुमोदन या अस्वीकृति पर निर्णय लेने के लिए दो बाहरी अधिकारियों या स्वतंत्र समितियों का गठन किया गया। यहां लगाए गए कानून में केवल जब स्कूल का प्रबंधन 7% से अधिक फीस बढ़ाने का फैसला करता है तो उसे 'FRC' से संपर्क करना पड़ता है और विधिवत गठित अपीलीय प्राधिकरण को अपील की जाती है।”

    आगे बढ़ते हुए कोर्ट ने बताया कि दोनों अधिनियम स्कूल के निर्णय की निगरानी के लिए मूल और अपीलीय अधिकारियों के पदानुक्रम में दो मंच प्रदान करते हैं। वह भी तब जब बिहार और राजस्थान राज्य में स्कूल स्तरीय फीस नियामक समिति राज्य में फीस पिछले शैक्षणिक वर्ष के 7% से अधिक हो।

    कहा गया,

    “दोनों अधिनियमों की तुलना करने पर जब आंतरिक समिति के निर्णय को दो प्राधिकरणों के समक्ष चुनौती दी जा सकती है। विषय कानून के अनुसार, स्कूल का निर्णय अधिनियम के तहत गठित स्वतंत्र समिति की मंजूरी के साथ होना चाहिए और राज्य द्वारा गठित स्वतंत्र अपीलीय प्राधिकरण को फिर से अपील की जा सकती है।”

    यह देखते हुए कि राज्य सरकार को विषय अधिनियम के तहत नियम बनाने की पर्याप्त शक्ति दी गई, जो आज तक नहीं बनाई गई, न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार को नियम बनाने का निर्देश देना पर्याप्त होगा और तब तक इसके लिए कारक फीस का निर्धारण राजस्थान अधिनियम एवं नियमों से अपनाकर किया जाएगा।

    न्यायालय ने कहा,

    भारतीय स्कूल में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मानपूर्वक पालन करते हुए हम फीस नियामक अधिनियम को निम्नलिखित के अधीन वैध पाते हैं:

    (i) संभागीय आयुक्त द्वारा 'FRC' में दो अभिभावक प्रतिनिधियों का नामांकन केवल उन बच्चों के माता-पिता का होगा, जो शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के लाभकारी प्रावधानों के हकदार नहीं हैं। निजी स्कूलों के प्रतिनिधियों और अभिभावकों का कार्यकाल दो साल की अवधि के लिए होगा। यदि वार्ड प्रभाग के भीतर किसी भी निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल में नहीं पढ़ रहा है तो अभिभावक प्रतिनिधि को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जाएगी। नामांकित माता-पिता के पास बुनियादी शिक्षा और वित्त में कुछ अनुभव होना चाहिए।

    (ii) प्रभागीय आयुक्त द्वारा नामित प्रबंधन के प्रतिनिधियों में से अल्पसंख्यक संस्थान से होगा यदि प्रभाग में कोई है।

    (iii) 'FRC' और अपीलीय समिति उचित फीस निर्धारित करने में राजस्थान अधिनियम से आने वाले और ऊपर पैराग्राफ 22 में निर्दिष्ट कारकों पर विचार करेगी। हालांकि, राज्य नियमों द्वारा ऐसी शर्तों को निर्धारित करेगा।

    अधिनियम रद्द करने का कोई कारण नहीं पाते हुए न्यायालय ने उपरोक्त निर्देशों के साथ रिट याचिका खारिज कर दी।

    अपीयरेंस

    याचिकाकर्ताओं के लिए वकील- बिंध्याचल सिंह, प्रशांत सिन्हा और संचित सिंह।

    प्रतिवादियों के लिए वकील- बिनय के आर पांडे, एसी टू जीए-2।

    केस नंबर- 2019 का सिविल रिट क्षेत्राधिकार केस नंबर 25418

    केस टाइटल- एसोसिएशन ऑफ इंडिपेंडेंट स्कूल्स बिहार एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य



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