पटना हाईकोर्ट ने बिहार विधान परिषद से राम बली सिंह की अयोग्यता बरकरार रखी
Amir Ahmad
6 July 2024 12:29 PM IST
पटना हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता राम बली सिंह को बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराया जाना बरकरार रखा।
बिहार विधान परिषद के अध्यक्ष द्वारा पारित आदेश के तहत याचिकाकर्ता को अयोग्य ठहराया गया था। याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ सार्वजनिक बयान देने के लिए थी, जिन्हें विधानमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया, जबकि याचिकाकर्ता की पार्टी उस समय सरकार का हिस्सा थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अध्यक्ष के आदेश में प्रक्रियागत अनियमितताएं हैं, जो बिहार विधान परिषद (दल-बदल के आधार पर अयोग्यता) नियम, 1994 ('बिहार नियम') के नियम 6(6) और 7 का उल्लंघन करता है। नियम 6 के अनुसार बिहार विधान परिषद के किसी सदस्य के खिलाफ प्रत्येक शिकायत/याचिका पर शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर होने चाहिए और दलीलों के सत्यापन के लिए CPC में निर्धारित तरीके से उसका सत्यापन किया जाना चाहिए (ओवीआई आर15 सीपीसी)। नियम 7 के अनुसार यदि याचिका नियम 6 की आवश्यकता का अनुपालन नहीं करती है तो अध्यक्ष उसे खारिज कर सकते हैं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि शिकायत आदेश VI नियम 15 सीपीसी के तहत आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती, क्योंकि शिकायत के साथ कोई हलफनामा नहीं दिया गया। उन्होंने इसे अध्यक्ष के समक्ष प्रारंभिक आपत्ति के रूप में उठाया, लेकिन अध्यक्ष ने इसे खारिज कर दिया।
चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सारथी की खंडपीठ ने कहा कि नियम 6 के तहत आवश्यकता केवल प्रक्रियागत है। न्यायालय ने कहा कि इसके तहत निर्धारित प्रक्रियाएं निर्देशात्मक हैं और अनिवार्य नहीं हैं।
न्यायालय ने डॉ. महाचंद्र प्रसाद सिंह बनाम बिहार विधान परिषद के अध्यक्ष एवं अन्य (एआईआर 2005 एससी 69) का संदर्भ दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार नियम अधीनस्थ विधान होने के कारण मूल प्रावधान, दसवीं अनुसूची, जो दलबदल विरोधी कानून से संबंधित है, उसकी विषय-वस्तु और दायरे को प्रतिबंधित नहीं कर सकते। दसवीं अनुसूची में यह नहीं कहा गया कि सदन के अध्यक्ष या अध्यक्ष के पास किसी सदस्य की अयोग्यता के संबंध में आदेश देने का अधिकार नहीं है, जब तक कि CPC नियमों के अनुसार याचिका प्रस्तुत नहीं की जाती।
इस प्रकार हाईकोर्ट ने कहा,
"हमें यह पता लगाना है कि विधान परिषद के अध्यक्ष के समक्ष प्रारंभिक आपत्ति के रूप में उठाई गई प्रक्रियात्मक अनियमितता संधारणीय नहीं है।"
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अध्यक्ष के समक्ष शिकायत में लगाए गए आरोपों के खिलाफ कोई विवाद नहीं उठाया। भले ही इस मुद्दे पर कोई विवाद नहीं उठाया गया, लेकिन न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों से संकेत मिलता है कि विधायी निकाय के सदस्य को अपनी पार्टी के अनुशासन संविधान और नियमों का पालन करना चाहिए।
हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के कार्यों से पता चलता है कि उसने अपनी राजनीतिक पार्टी को स्वेच्छा से त्याग दिया, जिसके कारण उसे बिहार नियमों के तहत अयोग्य घोषित किया गया।
इस प्रकार न्यायालय ने याचिकाकर्ता को अयोग्य घोषित करने के अध्यक्ष के आदेश को बरकरार रखा।
केस टाइटल- प्रो. (डॉ.) राम बली सिंह बनाम बिहार विधान परिषद (सीडब्ल्यूजेसी संख्या 3501/2024)