ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए कि इसे अनपढ़ व्यक्ति भी समझ सके: मेघालय हाइकोर्ट

Amir Ahmad

9 March 2024 10:02 AM GMT

  • ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए कि इसे अनपढ़ व्यक्ति भी समझ सके: मेघालय हाइकोर्ट

    मेघालय हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सीआरपीसी की धारा 313 (आरोपी से पूछताछ करने की शक्ति) के उद्देश्य के प्रति अपने कर्तव्य के निर्वहन में ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को ऐसे रूप में शामिल किया जाना चाहिए, जिसे कोई अज्ञानी या अनपढ़ व्यक्ति सराहना कर समझें सके।

    जस्टिस बी भट्टाचार्जी की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अनपढ़ आरोपी का बयान दर्ज करते समय अदालत को सावधान और चौकस दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

    अदालत ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) की धारा 3 (ए)/4 के तहत दोषी ठहराए गए आरोपी की आपराधिक अपील की अनुमति देते हुए ये टिप्पणियां कीं। उक्त व्यक्ति को 7 (सात) साल की कठोर सजा सुनाई गई थी।

    मामला संक्षेप में

    अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार 17-08- 2018 की आधी रात को आरोपी ने 10 वर्षीय लड़के (पीड़ित) का यौन उत्पीड़न किया। जांच पूरी होने के बाद अपीलकर्ता के खिलाफ POCSO Act धारा 5 (एम)/6 के तहत आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।

    ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता को पेश करने पर उसे राज्य बचाव वकील प्रदान किया गया और दोनों पक्षों को सुनने के बाद 16-08-2019 को अपीलकर्ता के खिलाफ धारा 5 (एम)/6 POCSO Act के तहत आरोप तय किया गया।

    अभियोजन पक्ष ने 8 गवाहों से पूछताछ की और अपने मामले के समर्थन में ट्रायल कोर्ट के समक्ष 6 दस्तावेज़ और 2 सामग्री प्रदर्शित कीं।

    अभियोजन पक्ष की गवाही पूरी होने के बाद अपीलकर्ता से 313 सीआरपीसी के तहत पूछताछ की गई। हालांकि, उसने किसी भी बचाव गवाह को पेश करने से इनकार किया।

    इसके बाद अंततः ट्रायल कोर्ट द्वारा मामले की सुनवाई की गई और आक्षेपित निर्णय और दोषसिद्धि का आदेश और सजा का आदेश पारित किया गया।

    हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    अपील में हाइकोर्ट ने सबूतों पर गौर करने के बाद कहा कि पीड़ित को अपने साक्ष्य दर्ज करने के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश नहीं किया गया और ट्रायल कोर्ट ने सजा के अपने आदेश को मुख्य रूप से पीडब्लू 1 यानी पीड़ित की मां के बयान पर आधारित किया। सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता का बयान पीडब्लू 2 यानी मेडिकल एक्सपर्ट का साक्ष्य धारा 161 सीआरपीसी के तहत दिया गया पीड़िता का बयान सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपीलकर्ता का बयान और धारा 29 के तहत अनुमान की सहायता लेकर POCSO Act के तहत हुआ।

    कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत सर्वाइवर द्वारा दिए गए बयान का हवाला दिया। भले ही यह प्रावधान जांच के दौरान किसी भी व्यक्ति द्वारा पुलिस अधिकारी को दिए गए बयान की स्वीकार्यता पर स्पष्ट प्रतिबंध लगाता है।

    कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश में भी खामियां पाईं, जिसमें मेडिकल सबूतों से पुष्टि करके सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए सर्वाइवर के बयान पर भरोसा किया गया।

    न्यायालय ने कहा,

    “ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपने बयान में पीडब्लू1 ने जीवित बचे व्यक्ति की चोट या रक्तस्राव के बारे में कुछ नहीं कहा है। उसके साक्ष्य में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि उसने स्वयं सर्वाइवर की शारीरिक बनावट/गति में कोई असुविधा देखी हो। ऐसी स्थिति में ट्रायल कोर्ट के लिए सीआरपीसी की धारा 164 और 161164 सीआरपीसी के तहत और मेडिकल साक्ष्य सर्वाइवर के बयान से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर अपीलकर्ता को दोषी ठहराना बेहद अनुचित है।”

    सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपी के बयान के संबंध में अदालत ने कहा कि अपने बयान में आरोपी ने केवल यह कहा कि वह घटना स्थल पर मौजूद था। यह भी कि वह उस रात पीड़िता के साथ सोया हालांकि उसने कथित अपराध किया, इससे इनकार किया।

    कोर्ट ने कहा कि ऑर्डर शीट से पता चला है कि अपीलकर्ता 12 अप्रैल, 2022 को सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपना बयान दर्ज करने के समय अदालत के सामने शारीरिक रूप से मौजूद था। हालांकि, उसने बयान के सभी 4 पन्नों पर अपने अंगूठे का निशान लगाया। सहायक अधीक्षक, जिला जेल और सुधार सेवाएं जोवाई की उपस्थिति में, जिन्होंने 20-04-2022 को सभी पृष्ठों पर हस्ताक्षर भी किए।

    इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने पाया कि यदि अपीलकर्ता-अभियुक्त की भौतिक उपस्थिति में ट्रायल कोर्ट द्वारा 12-04-2022 को बयान दर्ज किया गया तो बयान पर 20-04-2022 को असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट की उपस्थिति में अपीलकर्ता के अंगूठे का निशान लेने का कोई औचित्य नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    “अंतिम पृष्ठ पर अस्सिटेंट सुपरिडेंट द्वारा किए गए हस्ताक्षर और नोट की तारीख का मतलब यह होगा कि अपीलकर्ता ने अपना अंगूठा भी 20-04-2022 को लगाया, न कि 12- 04-2022 को, यानी जिस दिन उसने सीआरपीसी की धारा 313 अपना बयान दिया। इसके अलावा, धारा 281(5) सीआरपीसी आदेश दिया गया कि अभियुक्त के बयान के ज्ञापन पर केवल अभियुक्त और मजिस्ट्रेट या पीठासीन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे।”

    कोर्ट ने कहा कि यह तथ्य गंभीर सवाल उठाता है कि अपीलकर्ता का बयान सीआरपीसी की धारा 313 के तहत कैसे और कब दर्ज किया गया।

    यह देखते हुए कि अपीलकर्ता अनपढ़ व्यक्ति है और उसके बयान की रिकॉर्डिंग के समय ट्रायल कोर्ट के सावधानीपूर्वक और चौकस दृष्टिकोण की आवश्यकता है, अदालत ने पाया कि मामले में कानून की प्रक्रिया के उचित अनुप्रयोग का अभाव है, जिससे अपीलकर्ता का पूरा बयान दोषपूर्ण हो गया।

    परिणामस्वरूप न्यायालय ने राय दी कि अपीलकर्ता के सीआरपीसी की धारा 313 के तहत उसके बयान में दिए गए उत्तरों पर सुनवाई योग्यता न्यायालय द्वारा आक्षेपित निर्णय और दोषसिद्धि का आदेश पारित करते समय दिया गया विचार मान्य नहीं है।

    इसे देखते हुए अदालत ने उनकी अपील स्वीकार कर ली और ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई दोषसिद्धि और सजा का आदेश रद्द कर दिया।

    अदालत ने आदेश जारी करते हुए आगे कहा,

    “हमारी न्याय प्रणाली के तहत किसी भी व्यक्ति को तब तक दंडित नहीं किया जा सकता, जब तक कि अदालत में यह साबित करने के लिए कानूनी सबूत पेश नहीं किया जाता कि उसने वह अपराध किया है, जिसके लिए उस पर आरोप लगाया गया है। संदेह चाहे कितना ही प्रबल क्यों न हो, कानूनी प्रमाण नहीं माना जाता। कानूनी सबूत के अभाव में कि अपीलकर्ता ने अपराध किया है। अदालत के पास अपीलकर्ता को संदेह का लाभ देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।”

    केस टाइटल - अर्जुन बोरो बनाम मेघालय राज्य

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